Saturday 30 March 2013

दादा दादी के नुस्खे

रोज़ एक दादी माँ का घरेलु नुस्खा अपनाएं और भूल जाए डॉक्टरों के पास जाना.

INDEX/MENU

1. मुँहासे त्वचा देखभाल और चमक चेहरा
2. जोड़ो. व घुटनों के दर्द से छुटकारा हमेशा के लिए.
3. अब कम करे कोलेस्ट्रॉल को ..
4. हर पेट के रोग के लिए देसी रामबाण होम उपाय.
5. भूलकर. भी इन चीजों को एक साथ ना खाये वरना बन जाएगा जहर.
6. होम उपाय घुटने के दर्द से छुटकारा हमेशा के लिए प्राप्त करने के लिए.
7. नारियल पेट की कई बीमारियों को करे अकेले रफू चक्कर.
8. लहसुन आप आज खतरनाक रोग से बचा सकता है.
9. एलर्जी के लिए बिल्कुल सही देसी होम उपाय.
10. मधुमेह के लिए देशी आयुर्वेदिक उपचार :डाइबिटीज के लिए देसी आयुर्वेदिक नुस्खे .
11. दादी मां के देसी घरेलु रोज़ मर्रा के नुस्खे.
12. स्वादिष्ट घरेलु दादी माँ के नुस्खे पेट दर्द दूर भगाने के लिए.
13. अब छोटी - छोटी परेशानियों के लिए बार - बार डॉक्टर क्लिनिक के चक्कर लगाने की जरूरत नहीं.
14. सर्दी स्पेशल - ऐसा क्या खाएं की सालभर बीमारियां छू भी नहीं पाएं.
15. सूखे अदरक के ये अनोखे प्रयोग कर देंगे इन सारे रोगों की छुट्टी.
16. मैथी के घर पर तैयार लड्डू से महिलाएं पाएं चिरयौवन और रहे निरोग.
17. विशेष महिला दादी मां की देसी घर उपाय कमजोरी सभी प्रकार काबू करने के लिए.
18. विवाहित जीवन का आनंद लें घर पर हर्बल पाउडर तैयार.
19. हमेशा रहे तरोताजा कम्प्यूटर पर कई घंटो तक काम करने के बाद भी.
20. प्राकृतिक होम युक्तियाँ द्वारा भव्य चमक चेहरे के साथ सुंदर बनें.
21. नीम बहुउद्देशीय सफेद बाल, मधुमेह और कई रोग के इलाज के लिए ट्री.


मुँहासे त्वचा देखभाल और चमक चेहरा
1. नीबू का रस - 2 नींबू का रस 2 बूँदें गुलाब जल के साथ मिश्रित की बूँदें लागू करें. एक घंटे के बाद अपना चेहरा धो लो, यह आपकी त्वचा मुँहासे (दाना) को मुक्त कर देगा.

2. नीम - . नीम के पत्ते का पेस्ट भी मुँहासे प्रवण क्षेत्र पर लागू किया जा सकता है, यह भी मुँहासे का इलाज बहुत प्रभावी घर उपाय है. ख. नीम और चेहरे पर पाउडर ताजा हल्दी प्रकंद की चमक त्वचा के लिए स्नान से पहले एक लगाएँ और निशान हटाने.

3. Pudina (ताजा टकसाल) - चेहरा या जायफल (Jaiphal) के पेस्ट करने के लिए pimples इलाज पर pudina का रस (ताजा टकसाल) लागू होते हैं.

4. लहसुन - कच्चे लहसुन बहुत मुँहासे के लिए पूरी मदद है. दादी माँ मुँहासे के लिए विशेष घर उपाय: Pimples निशान के बिना गायब हो जाएगा जब कच्चे लहसुन के साथ कई बार एक दिन मलवाना.

5. संतरे का रस - शहद की एक चम्मच संतरे का रस के 2 बूँदें जोड़ें और तन हटाने के चेहरे पर लागू होते हैं.

6. मुसब्बर वेरा - . लागू मुसब्बर वेरा चेहरे पर हल्दी पाउडर के साथ मिश्रित रंग में सुधार की लुगदी. ख. मिक्स मुसब्बर वेरा जेल, गेंदा फूल, नींबू का रस, संतरे का रस और कुछ मिनट के लिए चेहरे पर मालिश और आधे घंटे के लिए छुट्टी का पेस्ट. (दादी माँ चेहरा चमक के लिए विशेष टिप)

7. तुलसी या तुलसी के पत्तों - चेहरे पर तुलसी मिश्रित गुलाब पानी की एक पेस्ट लागू भी अद्भुत है.

आहार और पोषण उचित आहार के लिए अंत में अपने समय के रूप में हम हमेशा हमारे हर लेख में सुझाव दिया है. ऊपर की रोकथाम और घरेलू उपचार बहुत मददगार रहे हैं, लेकिन उचित और स्वस्थ आहार के बिना वे ज्यादा प्रभावी हो अभ्यस्त. सेब उनके विटामिन और कंघी के समान आकार की वजह से अच्छे हैं. पेक्टिन त्वचा से अस्वस्थ तेलों और विषाक्त पदार्थों को अवशोषित में मदद करता है और भी जिगर त्वचा हानिकारक विषाक्त पदार्थों को बेअसर करने में मदद करता है. अनार, संतरे, नींबू, और Keenu जैसे फल विटामिन सी है कि आपकी त्वचा की उम्र बढ़ने से लड़ने में मदद करता है. विटामिन सी लोच है कि नरम, कोमल, गैर झुर्रियों त्वचा के लिए आवश्यक है बनाता है. ब्रोकोली, पालक, हरी पत्तेदार सब्जियों और सलाद में विटामिन ए, जो त्वचा की मरम्मत के लिए आवश्यक है के लिए व्यापारियों सहित कई विटामिन प्रदान करते हैं. गाजर, टमाटर और लाल सब्जियों वर्णक इन सब्जियों में पाया लाइकोपीन त्वचा की मरम्मत के लिए आवश्यक है. बादाम और सूरजमुखी के बीज महत्वपूर्ण पौष्टिक त्वचा के लिए आवश्यक तेलों होते हैं. एक रस है कि टमाटर, गाजर, अदरक, टकसाल, और lauki शामिल कई महत्वपूर्ण विटामिन को जोड़ती है और भी एंटीऑक्सीडेंट है कि लड़ाई त्वचा हानिकारक मुक्त कण. Top

जोड़ो. व घुटनों के दर्द से छुटकारा हमेशा के लिए-

1. सवेरे मैथी दाना के बारीक चुर्ण की एक चम्मच की मात्रा से पानी के साथ फंक्की लगाने से घुटनों का दर्द समाप्त होता है. विशेषकर बुढ़ापे में घुटने नहीं दुखते.
2. सवेरे भूखे पेट तीन चार अखरोट की गिरियां निकालकर कुछ दिन खाने से मात्र ही घुटनों का दर्द समाप्त हो जाता है.
3. नारियल की गिरी अक्सर खाते रहने से घुटनों का दर्द होने की संभावना नहीं रहती.

जोड़ों के दर्द आस्टीयो - आर्थराईटीस पर शोध: यदि आप जोड़ों के दर्द आस्टीयो - आर्थराईटीस से हैं, परेशान तो निशानचीखेलों घबराएं विशेषज्ञों की मानें तो आहार में कुछ परिवर्तन के साथ नियमित व्यायाम इस प्रकार के जोड़ों के दर्द 50 को प्रतिशत से अधिक कम कर सकता है. वेक फारेस्ट यूनिवर्सिटी के स्टीफन पी मेसीयर. के एक शोध में यह जानकारी दी गयी है, जिसे हाल ही में अमेरिकन कालेज आफ रयूमेटोलोजी के सालाना वैज्ञानिक सत्र में प्रस्तुत किया गया है. आस्टीयो - आर्थराईटीस में सामन्यतया घुटनों की उपास्थि नष्ट हो जाती है, तथा वजन में बढ़ोत्तरी, एवं उम्र चोट, जोड़ों में तनाव एवं पारिवारिक इतिहास आदि कारण इसे बढाने का काम करते हैं. ऐसे रोगियों में नियंत्रित आहार से वजन कम करना जोड़ों के दर्द को कम करने का कारगर उपाय है. यह 154 अध्धयन ओवरवेट लोगों में किया गया, जिनमें आस्टीयो आर्थराईटीस के कारण घुटनों का दर्द बना हुआ था, इस शोध में लोगों को रेंडमली चुना गया, तथा उन्हें केवल आहार नियंत्रण एवं आहार नियंत्रण के साथ नियमित व्यायाम कराया गया और इन समूहों को एक कंट्रोल समूह से तुलना कर अध्ययन किया गया. इस अध्ययन से यह बात सामने आयी, कि आस्टीयो - आर्थराईटीस से पीडि़त रोगियों में वजन कम करना घुटनों के दर्द से राहत पाने का एक अच्छा विकल्प है.Top

अब कम करे कोलेस्ट्रॉल को ..

बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल निशानी है हृदय रोग की. हृदय रोग होने का मतलब है जीवन को खतरा है. हमें जानकारी होनी चाहिए कि क्यों बढ़ता है रक्त का कोलेस्ट्रॉल. कैसे पाएं इससे छुटकारा? कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना, हृदय रोग का होना आमतौर पर बंशानुगत रोग है. फिर भी खानपान की गलतियों के कारण किसी को भी हो सकता है. कोलेस्ट्रॉल का अपना रंग पीला है. हल्का पीला रंग होता है. यह चर्बी व वसा लिये होता है. कोलेस्ट्रॉल का होना जरूरी है. किन्तु सामान्य से अधिक हो तो हानिकारक. व्यक्ति के भोजन 30 का प्रतिशत तक का भाग कोलेस्ट्रॉल ही है. कैसे करें कोलेस्ट्रॉल को कम:

1. कोलेस्ट्रॉल कम करने का अर्थ है हृदय रोग का सही उपचार. इसके लिए प्रतिदिन प्रातः अंकुरित अनाज, मुट्ठी भर जरूर खाएं. अंकुरित दालें भी खानी आरम्भ करें.
2. सोयाबीन का तेल अवश्य प्रयोग करें. यह भी उपचार है.
3. लहसुन, प्याज, इनके रस उपयोगी हैं - नीम्बू, आंवला जैसे भी ठीक लगे, प्रतिदिन लें.
4. शराब या कोई नशा मत करें, बचें.
5. ईसबगोल के बीजों का तेल आधा चम्मच दिन में दो बार.
6. रात के समय धनिया के दो चम्मच एक गिलास पानी में भिगों दें. प्रातः हिलाकर पी लें. धनिया भी चबाकर निगल जाएं.
7. यदि आप अपने रक्त में कोलेस्ट्रॉल की ठीक मात्रा रख सकें. जो सामान्य तक रहे. बढ़े नहीं. ऐसे में यह रोग होगा ही नहीं. इन सब जानकारियों की चर्चा पहले ही अपने चिकित्सक से कर लें तो बेहतर होगा.

व्यायाम:
1. योगासन जिस में प्राणायाम भी हो हल्के व्यायाम, खेलना, तैरना, पैदल चलना.
2. बड़े कदमों से सैर, साइकिल चलाना, कम से कम समय आराम करना, शरीर चलाए रखना.
परहेज:
1. अनाज व तले पदार्थों की जगह अधिक फलों का प्रयोग, फल ऐसे हों जो पेड़ पर ही पके हों.
2. हरी सब्जियां खाना, सैर करना, लेटे नहीं रहना, जिन कारणों से यह रोग होता है, उसे निकाल फेकें.Top

हर पेट के रोग के लिए देसी रामबाण होम उपाय

चिकित्सा के में क्षेत्र दुनिया ने काफी तरक्की कर ली है. लेकिन आज भी स्वास्थ्य कि में क्षेत्र प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेद और योग को सर्वाधिक भरोसेमंद और अचूक माना जाता है. ऐलोपैथिक दवाइयां रोग के लक्षणों को दबाती और नष्ट करती है, जबकि प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेद और योग का लक्ष्य बीमारी को दबाना नहीं बल्कि शरीर को अंदर से मजबूत करके हर बीमारी को जड़ से मिटाना होता होता है. आयुर्वेद के अंतर्गग नीबू के प्रयोग को बेहद फायदेमंद और गुणकारी माना गया है. नीबू में ऐसे कई दिव्य गुण होते हैं जो पेट संबंधी अधिकांस बीमारियों को दूर करने में बेहद कारगर होता है. खुल कर भूख न लगना, कब्ज रहना, खाया हुआ पचाने में समस्या आना, खट्टी डकारें आना, जी मचलाना, एसिडिटी होना, पेट में जलन होना .... ऐसी ही कई बीमारियों में नीबू का प्रयोग बहुत फयदेमंद और कारगर सिद्ध हुआ है.

सावधानियां (सावधानियां)
1. निबू की तासीर ठंडी मानी गई है, इसलिये शीत प्रकृति के लोगों को इसका प्रयोग कम मात्रा में ही करना चाहिये.
2. जहां तक संभव हो नीबू का प्रयोग दिन में ही करना चाहिये, शाम को या रात में प्रयोग करने से सर्दी - जुकाम होने की संभावना रहती है.
3. व्यक्ति अगर किसी अन्य बीमारी से ग्रसित हो तो उसे किसी जानकार आर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श के बाद ही नीबू का सेवन करना चाहिये.
चिकित्सा के में क्षेत्र दुनिया ने काफी तरक्की कर ली है. लेकिन आज भी स्वास्थ्य कि में क्षेत्र प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेद और योग को सर्वाधिक भरोसेमंद और अचूक माना जाता है. ऐलोपैथिक दवाइयां रोग के लक्षणों को दबाती और नष्ट करती है, जबकि प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेद और योग का लक्ष्य बीमारी को दबाना नहीं बल्कि शरीर को अंदर से मजबूत करके हर बीमारी को जड़ से मिटाना होता होता है. आयुर्वेद के अंतर्गग नीबू के प्रयोग को बेहद फायदेमंद और गुणकारी माना गया है. नीबू में ऐसे कई दिव्य गुण होते हैं जो पेट संबंधी अधिकांस बीमारियों को दूर करने में बेहद कारगर होता है. खुल कर भूख न लगना, कब्ज रहना, खाया हुआ पचाने में समस्या आना, खट्टी डकारें आना, जी मचलाना, एसिडिटी होना, पेट में जलन होना .... ऐसी ही कई बीमारियों में नीबू का प्रयोग बहुत फयदेमंद और कारगर सिद्ध हुआ है.

सावधानियां (सावधानियां) 1. निबू की तासीर ठंडी मानी गई है, इसलिये शीत प्रकृति के लोगों को इसका प्रयोग कम मात्रा में ही करना चाहिये.
2. जहां तक संभव हो नीबू का प्रयोग दिन में ही करना चाहिये, शाम को या रात में प्रयोग करने से सर्दी - जुकाम होने की संभावना रहती है.
3. व्यक्ति अगर किसी अन्य बीमारी से ग्रसित हो तो उसे किसी जानकार आर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श के बाद ही नीबू का सेवन करना चाहिये.Top

भूलकर. भी इन चीजों को एक साथ ना खाये वरना बन जाएगा जहर.

जाने - अनजाने में हम कुछ खाने की चीजों का साथ में खा लेते हैं आयुर्वेद के अनुसार जिनका सेवन आपके लिए घातक हो सकता है. आज दादी माँ आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसी ही चीजों के बारे में जिन्हें एक साथ खाना आपके लिए जहर का काम कर सकता है और आपकी तबीयत बिगड़ सकती है.
1. आलू और चावल एक साथ नहीं खाना चाहिए. इससे कब्ज की समस्या हो सकती है.
2. बैंगन का भरता और दूध की बनी कोई चीज
3. आइस्क्रीम के तुरंत बाद पानीपूरी.
4. पिपरमेंट को कभी भी कोल्डड्रिंक पीने से पहले पुदीने दोनों को मिलाने पर साइनाइड बनता है जो कि जहर के समान कार्य करता है.
5. दूध में नींबु या संतरे का छिंटा भी पड़ जाए तो दूध फट जाता है दोनों का एक साथ सेवन करने पर एसीडिटी हो जाती है.
6. चिकन के साथ ज्यूस या मिठाई आदि का शौक रखने वालों को भी इसके सेवन से बचना चाहिए क्योंकि इसके सेवन से पेट खराब हो सकता है. इस कारण बदहजमी हो जाती है. जहां तक हो सके ऊपर बताए गई सभी चीजों को एक साथ खाने से बचना चाहिए नहीं तो ये आपको नुकसान पहुंचा सकते हैं.
7. मिठाई या किसी भी प्रकार के चॉकलेट शराब पीते वक्त या उसके बाद नहीं खाना चाहिये. आम तौर पर लोग सोचते हैं कि मिठा खाने से शराब जयादा चढ़ती है, जबकि सही मायने में मीठी चीजें शराब के जहर को और ज्यादा बढ़ाती हैं.
8. शहद कभी किसी गर्म चीज के साथ निशानचीखेलों लें जहर समान हो जाता है.
9. तेलकी चीजें खाने के तुरंत बाद पानी नही पीना चाहिये बल्कि एक डेढ़ घंटे बाद पीना चाहिये.Top

होम उपाय घुटने के दर्द से छुटकारा हमेशा के लिए प्राप्त करने के लिए

1. सवेरे मैथी दाना के बारीक चुर्ण की एक चम्मच की मात्रा से पानी के साथ फंक्की लगाने से घुटनों का दर्द समाप्त होता है. विशेषकर बुढ़ापे में घुटने नहीं दुखते.
2. सवेरे भूखे पेट तीन चार अखरोट की गिरियां निकालकर कुछ दिन खाने से मात्र ही घुटनों का दर्द समाप्त हो जाता है.
3. नारियल की गिरी अक्सर खाते रहने से घुटनों का दर्द होने की संभावना नहीं रहती.

जोड़ों के दर्द आस्टीयो - आर्थराईटीस पर शोध:
यदि आप जोड़ों के दर्द आस्टीयो - आर्थराईटीस से हैं, परेशान तो निशानचीखेलों घबराएं विशेषज्ञों की मानें तो आहार में कुछ परिवर्तन के साथ नियमित व्यायाम इस प्रकार के जोड़ों के दर्द 50 को प्रतिशत से अधिक कम कर सकता है. वेक फारेस्ट यूनिवर्सिटी के स्टीफन पी मेसीयर. के एक शोध में यह जानकारी दी गयी है, जिसे हाल ही में अमेरिकन कालेज आफ रयूमेटोलोजी के सालाना वैज्ञानिक सत्र में प्रस्तुत किया गया है.
आस्टीयो - आर्थराईटीस में सामन्यतया घुटनों की उपास्थि नष्ट हो जाती है, तथा वजन में बढ़ोत्तरी, एवं उम्र चोट, जोड़ों में तनाव एवं पारिवारिक इतिहास आदि कारण इसे बढाने का काम करते हैं. ऐसे रोगियों में नियंत्रित आहार से वजन कम करना जोड़ों के दर्द को कम करने का कारगर उपाय है. यह 154 अध्धयन ओवरवेट लोगों में किया गया, जिनमें आस्टीयो आर्थराईटीस के कारण घुटनों का दर्द बना हुआ था, इस शोध में लोगों को रेंडमली चुना गया, तथा उन्हें केवल आहार नियंत्रण एवं आहार नियंत्रण के साथ नियमित व्यायाम कराया गया और इन समूहों को एक कंट्रोल समूह से तुलना कर अध्ययन किया गया. इस अध्ययन से यह बात सामने आयी, कि आस्टीयो - आर्थराईटीस से पीडि़त रोगियों में वजन कम करना घुटनों के दर्द से राहत पाने का एक अच्छा विकल्प है.Top

नारियल पेट की कई बीमारियों को करे अकेले रफू चक्कर.

नारियल एक ऐसा फल है जो आसानी से कहीं भी मिल जाता है. इसकी सहायता से आप घर पर ही विभिन्न बीमारियों को ठीक कर सकते हैं. विशेषतः यह पेट के लिए बहुत उपयोगी है.
मुंह के छाले
मुंह के छाले होने पर नारियल की सफेद गिरी का टुकड़ा और एक चम्मच भर चिरोंजी मुंह में डालकर धीरे - धीरे चबाना व चूसना चाहिए.
एसीडिटी
एसीडिटी से ग्रसित होने पर सीने व पेट में जलन, जी मचलाना, उल्टी होने जैसा जी करना या उल्टी होना, मुंह में छाले होना, सिरदर्द, होना पतले दस्त लगना आदि लक्षण प्रकट होते हैं. कच्चे नारियल की सफेद गिरी, खस और सफेद चंदन का बुरादा दस - दस ग्राम ले. एक गिलास पानी में डाल कर शाम को रख दें. सुबह इसे मसल कर छान कर खाली पेट पीने से एसीडिटी धीरे - धीरे खत्म होने लगेगी.
पेट के कीड़े
बड़ी के उम्र व्यक्ति को अगर पेट में कृमि की समस्या है तो सूखे गोले का ताजा बूरा 10 ग्राम मात्रा में लेकर खूब चबा - चबाकर खा लें. इसके तीन घंटे बार सोते समय दो चम्मच केस्टर आइल, आधा कप गुनगुने गर्म दूध में डालकर तीन दिन तक पीएं. पेट के कीड़े मल के साथ निकल जाएंगे.
आधा सीसी
आधा सीसी वाला दर्द हो तो नारियल का पानी ड्रापर से नाक के दोनों तरफ दो - दो बूंद टपकाने से आधा सीसी का दर्द दूर होता है.
नारियल (नारियल) क्या है:
नारियल को भारतीय सभ्यता में शुभ और मंगलकारी माना गया है. इसलिए पूजा - पाठ और मंगल कार्यों में इसका उपयोग किया जाता है. किसी कार्य का शुभारंभ नारियल फोड़कर किया जाता है. पूजा के प्रसाद में इसका प्रयोग किया जाता है. इसका उपयोग काड लिवर आइल के स्थान पर सेवन में किया जा सकता है. यह कच्चा और पका हुआ दो अवस्थाओं में मिलता है. नारियल का पानी पिया जाता है. इसका पानी मूत्र, प्यास व जलन शांत करने वाला होता है | Top

लहसुन आप आज खतरनाक रोग से बचा सकता है

जानलेवा बीमारियों को मिटायें लहसुन की सिर्फ दो कलीयां.
लहसुन खून में बढ़ी चर्बी कोलेस्ट्रोलको कम करने का काम करता है. उच्च रक्तचाप भी अनेक मारक रोगों का बढ़ा कारण माना जाता है. लहसुन का प्रयोग इन दोनों ही बीमारियों को जड़ से नष्ट करने की क्षमता रखता है. बस इसमें एक ही कमी हैं, वह है इसकी दुर्गंध. लेकिन इसमें कोलेस्ट्रोल को ठीक करने की गजब की क्षमता होती है.
दादी माँ का देसी nuskha:
रोज सबेरे बिना कुछ खाए - पीए दो पुष्ट कलियां छीलकर टुकड़े करके पानी के साथ चबाकर खा ले निगल जाए. इस साधारण से प्रयोग को नित्य करते रहने से रक्त में बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रोल तो कम होगा ही, साथ ही उच्च रक्तचाप रोगियों का रोग भी नियंत्रित हो जाएगा. शरीर में कही भी ट्युमर होने की संभावना दूर हो जाती है.
लहसुन (लहसुन) क्या है:
जो कुछ भी हम रोजमर्रा के आहार में खाते - पीते हैं. उन सभी के अपने गुण - दोष होते हैं. रोटी, चावल, दाल, सब्जी, तथा उनमें डाले जाने वाले मसाले आदि सभी के कुछ निशानचीखेलों कुछ गुण हैं. अब जैसे लहसुन में एक नहीं अनगिनत गुण हैं. ऐसे ही लहसुन के एक गुणकारी प्रयोग की जानकारी उपर वर्णित है. Top

एलर्जी के लिए बिल्कुल सही देसी होम उपाय

एलर्जी एक ऐसा शब्द है, जिसका प्रयोग व्यापक रूप से होता आया है, आपने यह भी कहते हुए सुना होगा कि यार मुझे उससे बात करने में एलर्जी होती है. ऐसा ही कुछ हमारे सजीव शरीर में भी होता है, एलर्जी हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधकक्षमता के अतिसक्रियता के कारण उत्पन्न होने वाले एक प्रतिक्रिया है, खासकर तब जब प्रतिक्रिया किसी सामान्य एवं हानिरहित पदार्थ से हो रही हो तो वह पदार्थ एलर्जन कहलाता है. ये प्रतिक्रियाएं एक्वयार्ड, प्रेडिकटेबल एवं होती तीव्र हैं. आयुर्वेद शरीर रूपी को क्षेत्र एलर्जन रूपी बीज के प्रभाव से प्रतिरोधक क्षमता को संतुलित करने के सिद्धांत पर कार्य करता है, अत: हानिरहित औषधियां एलर्जी से बचाव में अत्यंत कारगर सिद्ध होती हैं.
दादी मां के Nuskhe:
सर्दी हो या गर्मी सुबह उठते ही नाक बंद हो जाने और लगातार छिंक आने से वे परेशान हैं तो केवल नियमित रूप से गिलोय की ताजी डंठलों का रस तथा ताजे आंवलें का रस निकालकर, उन्हें नियमित रूप से 2-3 चम्मच की मात्रा में सेवन करें या करायें निश्चित लाभ मिलेगा गुनगुने पानी में एक चम्मच शहद, आधा चम्मच नींबू का रस को कुछ महीनों तक लगातार लें, देखें आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में संतुलन हम सो जाएगा, और आपको एलर्जी से सम्बंधित परेशानियों में अवश्य ही लाभ मिलेगा. Top

मधुमेह के लिए देशी आयुर्वेदिक उपचार :डाइबिटीज के लिए देसी आयुर्वेदिक नुस्खे

तनाव हमारे जीवन को एक अभिन्न पहलू बनता जा रहा है थोड़ा बहुत तनाव जीवन में स्वाभाविक होता है, परन्तु जब तनाव अपनी पराकाष्ठा को पार कर जाय, तो मानसिक विकारों के साथ - साथ हृदय सहित डाइबिटीज जैसे रोगों को निमंत्रण देता है. दुनिया में डाइबिटीज जैसे शारीरिक विकारों की उत्पत्ति के पीछे भी अनियमित खानपान एवं तनावयुक्त दिनचर्या एक बड़ा कारण है, आज दुनिया में जिस प्रकार डाइबिटीज के रोगी बढ़ रहे हैं, भारत भी इस मामले में एक कदम आगे है पुरी दुनिया योग एवं आयुर्वेद को अपना कर यह साबित कर रही है, कि हमारे आचार्यों का विज्ञान तथ्यों से पूर्ण था. आयुर्वेद में सदियों पूर्व प्रमेह रोग के रूप में डाइबिटीज को समाहित किया था, एवं इसके मूल कारणों में आरामतलबी जीवन एवं खानपान को बतलाया गया था. आइए आज हम कुछ ऐसे उपायों पर चर्चा करेंगे जिससे आपको इस विकृति को शरीर में सुकृति के रूप में स्थापित करने में मदद मिलेगी.
1. कफ बढाने वाले खान - पान से बचें
2. दिन में सोने से बचें.
3. नियमित व्यायाम करें, इससे से आप डाइबिटीज सहित हृदय रोगों से भी बचे रह सकते हैं
4. इसके लिए योग अभ्यास (पश्चिमोत्तासन एवं हलासन का अभ्यास) एक महत्वपूर्ण साधन है.
5. संतुलित भोजन को प्राथमिकता दें.
6. रोज खाने के बाद थोड़ी देर जरूर टहले.
7. धूम्रपान व मद्यपान से बचें.
8. जामुन के गुठली का चूर्ण, नीम के का पत्र चूर्ण, बेल के पत्र का चूर्ण, शिलाजीत, गुडमार, करेला बीज एवं त्रिफला का चूर्ण चिकित्सक के परामर्श से लेना डाइबिटीज के रोगियों के लिए फायदेमंद होगा. Top

दादी मां के देसी घरेलु रोज़ मर्रा के नुस्खे

छोटी - मोटी समस्याएं हम सभी को हो सकती है. कुछ समस्याएं ऐसी होती है जिनके लिए डॉक्टर के पास भी नहीं जाया जा सकता है. ऐसी ही कुछ समस्याओं के लिए हम आपको बताने जा रहे है कुछ घरेलु नुस्खे:
1. गैस की तकलीफ से तुरंत राहत पाने के लिए लहसुन 2 की कली 2 छीलकर चम्मच शुद्ध घी के साथ चबाकर खाएं फौरन आराम होगा.
2. ताजा हरा धनिया मसलकर सूंघने से छींके आना बंद हो जाती हैं.
3. प्याज का रस लगाने से मस्सो के छोटे - छोटे टुकड़े होकर जड़ से गिर जाते हैं.
4. यदि नींद निशानचीखेलों आने की शिकायत है, तो रात्रि में सोते समय तलवों पर सरसों का तेल लगाएं.
5. प्याज के रस में नींबू का रस मिलाकर पीने से उल्टियां आना तत्काल बंद हो जाती हैं.
6. सूखे तेजपान के पत्तों को बारीक पीसकर हर तीसरे दिन एक बार मंजन करने से दांत चमकने लगते हैं.
7. हिचकी चलती हो 1-2 तो चम्मच ताजा शुद्ध घी, गरम कर सेवन करें.
8. यदि आवाज बैठी हुई है या गले में खराश है, तो सुबह उठते समय और रात को सोते समय छोटी इलायची चबा - चबाकर खाएं तथा गुनगुना पानी पीएं. Top

स्वादिष्ट घरेलु दादी माँ के नुस्खे पेट दर्द दूर भगाने के लिए.

पेट दर्द दूर भगाने के नुस्खे:
1. दो चम्मच मेथी दाना में नमक मिलाकर सुबह - शाम दो बार गर्म पानी से लें.
2. सौंफ और सेंधा नमक मिलाकर पीसकर दो चम्मच गर्म पानी से लें.
3. काली मिर्च, हींग, सौंठ समान मात्रा में पीसकर सुबह शाम गर्म पानी से आधा चम्मच लें.
4. पिसी लाल मिर्च गुड़ में मिलाकर खाने से पेट दर्द में लाभ होता है.
5. दो इलायची पीसकर शहद मिलाकर चाटने से लाभ होता है.
6. अनार के दानों पर काली मिर्च और नमक डाल कर चूसें.
7. नींबू की फांक पर काला नमक, काली मिर्च व जीरा डालकर गर्म करके चूसें.
8. 2 ग्राम अजवाइन में एक ग्राम नमक मिलाकर गर्म पानी से लें.
बचाव: पेट में दर्द होने के अनेक कारण हो सकते हैं. लेकिन अधिकतर पेट दर्द का कारण भोजन न पचना होता है. पेट में किसी भी तरह का दर्द हो बोतल में गर्म पानी भरकर सेंकने से आराम मिलता है. जब तक पेटदर्द शांत न हो जाए तब तक कुछ नहीं खाना चाहिए. अपच होने पर पेट भारी होकर फूल जाता है, इससे पेट दर्द और बैचेनी जलन और कभी कभी मितली आने लगती है, खट्टी डकारें आती है, पेट में भारीपन महसूस होता है, पेटदर्द और उल्टी आदि की शिकायतें होती है. पेटदर्द मिटाने के लिए कड़वी दवाईयां ले लेकर आप परेशान हो चूके हैं तो आजमाइए पेट दर्द दूर भगाने वाले उपरोक्त टेस्टी नुस्खे. Top

अब छोटी - छोटी परेशानियों के लिए बार - बार डॉक्टर के क्लिनिक के चक्कर लगाने की जरूरत नहीं.

ऐसी ही कुछ समस्याओं के बारे में हम बात कर रहे हैं. जो सामान्य रूप से किसी के भी साथ हो सकती है. हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसे ही छोटे आसान और बेहद काम के सरल दादी माँ के घरेलू उपायों के विषय में जो कई समस्याओं से छुटकारा दिलाने में बड़े अचूक होते हैं
- हिचकी का घरेलु उपाय (हिचकी के लिए प्राकृतिक उपचार) हिचकी चलती हो 1-2 तो चम्मच ताजा शुद्ध घी, गरम कर सेवन करें. छींक का घरेलु उपाय (छींक के लिए प्राकृतिक देसी उपाय)
- ताजा हरा धनिया मसलकर सूंघने से छींके आना बंद हो जाती हैं. कैसे हटायें मस्से
- प्याज का रस लगाने से मस्सो के छोटे - छोटे टुकड़े होकर जड़ से गिर जाते हैं. तुरंत गैस से राहत (फास्ट गैस राहत)
- गैस की तकलीफ से तुरंत राहत पाने के लिए लहसुन 2 की कली 2 छीलकर चम्मच शुद्ध घी के साथ चबाकर खाएं फौरन आराम होगा. कैसे हों उल्टियां बंद (उल्टी रोकने के लिए)
- प्याज के रस में नींबू का रस मिलाकर पीने से उल्टियां आना तत्काल बंद हो जाती हैं.  अब घर पर चमकाएं दांत (दांत चमक के लिए प्राकृतिक उपचार) Top
- सूखे तेजपान के पत्तों को बारीक पीसकर हर तीसरे दिन एक बार मंजन करने से दांत चमकने लगते हैं. शीतकालीन विशेष प्राकृतिक होम पूरे वर्ष के लिए प्रतिरक्षण प्राप्त

सर्दी स्पेशल - ऐसा क्या खाएं की सालभर बीमारियां छू भी नहीं पाएं.

सर्दियों में अपनी आयु और शारीरिक अवस्था को ध्यान में रख कर उचित और आवश्यक मात्रा में, पौष्टिक शक्तिवर्धक चीजों को लेना हमारे शरीर को सालभर के लिए एनर्जी देता है. आयु और शारीरिक अवस्था के मान से अलग - अलग पदार्थ सेवन करने योग्य होते हैं. लेकिन ठंड में पौष्टिक पदार्थों का सेवन शुरू करने से पहले पेट शुद्धि यानी कब्ज दूर करना आवश्यक है.
क्योंकि इन्हें पचाने के लिए अच्छी पाचन शक्ति होना जरूरी है. वरना पौष्टिक पदार्थों या औषधियों का सेवन करने से लाभ ही नहीं होगा. ऐसी तैयारी करके, सुबह शौच जाने के नियम का पालन करते हुए, हर व्यक्ति को अपना पेट साफ रखना चाहिए. ठीक 32 समय बार चबा चबा कर भोजन करना चाहिए. आज हम पहले ऐसे पौष्टिक पदार्थों की जानकारी दे रहे हैं. जो किशोरवस्था से लेकर प्रोढ़ावस्था तक के स्त्री - पुरुष सर्दियों में सेवन कर अपने शरीर को पुष्ट, सुडौल, व बलवान बना सकते हैं.
सर्दियों के खास नुस्खे:
1. सोते समय एक गिलास मीठे कुनकुने गर्म दूध में एक चम्मच शुद्ध घी डालकर पीना चाहिए.
2. दूध में मलाई और पिसी मिश्री मिलाकर पीना चाहिए.
3. एक बादाम पत्थर घिस कर दूध में मिला कर उसमें पीसी हुई मिश्री मिलाकर पीना चाहिए.
4. सप्ताह में दो दिन अंजीर का दूध लें.
5. लमखाना.
6. सफेद मुसली.
7. ठंडे दूध में एक केला और एक चम्मच शहद.
8. उड़द की दाल दूध पका कर बनाई हुई खीर.
9. प्याज का रस.
10.असगंध चूर्ण
11.उड़द की दाल.
12.रोज सेवफल खाएं.
13.कच्चे नारियल की सफेद गरी.
14.प्याज का रस दो चम्मच, शहद एक चम्मच, घी पाव चम्मच. Top

सूखे अदरक के ये अनोखे प्रयोग कर देंगे इन सारे रोगों की छुट्टी

भोजन ठीक तरह से नहीं पचता है, भोजन के ठीक से नहीं पचने के कारण शरीर में कितने ही रोग पैदा हो जाते है, अनियमित खानपान से गैस और कफ दूषित हो जाते हैं. सोंठ कब्ज एवं कफवात नाशक, आमवात नाशक है. उदररोग, वातरोग, बावासीर, आफरा, आदि रोगों का नाश करती है. सोंठ में कफनाशक गुण होने के कारण यह खांसी और कफ रोगों में उपयोगी है.
सोंठ का उपयोग प्राचीनकाल से ही होता आ रहा है. सोंठ एक उष्ण जमीकंद हैं जो अदरक के रूप में जमीन से खोदकर निकाली जाती है और सुखाकर सोंठ बनती है. मनुष्य में जीने की शक्ति और रोगों से लडऩे की प्रतिरोधक क्षमता पैदा करती हैं. यह औषधी उत्तेजक, पाचक और शांतिकारक हैं. इसके सेवन से पाचन क्रिया शुद्ध होती है. सोंठ उष्ण होने से वायु के कुपित होने पर होने वाले रोगों को नष्ट करती है.
आधा सिरदर्द - सोंठ का चंदन की घिसकर लेप करें.
आंखों के रोग सोंठ नीम के पत्ते या निंबोली पीसकर उसमें थोड़ा सा सेंधा नमक डालकर गोलियां बना लें. गोली को मामूली गर्म कर आंखों पर बांधने से आंखों की पीड़ा कम होती है.
कमरदर्द - कमरदर्द में सोंठ का चूर्ण आधा चम्मच दो कप पानी में उबालकर आधा कप रह जाए. तब छानकर ठंडाकर उसमें दो चम्मच अरण्डी तेल मिला क रोज रात को पीएं.
उदर रोग - चार ग्राम सोंठ का काढ़ा बनाकर पिलाएं एवं साथ में अजवाइन की बनाकर पिलाएं. साथ में अजवाइन की फक्की लगाने से उदर रोग नष्ट होता है.
खांसी - सोंठ चूर्ण के साथ मुलहटी का चूर्ण एक चम्मच गुनगुने पानी में लेने पर छाती में जमा कफ बाहर निकलता है और खांसी में आराम मिलता है.
कब्ज - सोंठ का चूर्ण एक चम्मच गरम पानी को उबालकर पिलाएं.
मंदाग्रि - सोंठ चूर्ण गुड़ में मिलाकर खाने से पाचन क्रिया बढ़ती है.
प्रसव के बाद सोंठ एवं सफेद मूसली का चूर्ण, कतीरा गोंद के साथ खाने पर प्रसव की कमजोरी एवं कमर दर्द में कमी हम सो जाती है Top

मैथी के घर पर तैयार लड्डू से महिलाएं पाएं चिरयौवन और रहे निरोग

ठंड में आने वाली सारी हरे पत्तेदार सब्जियों को स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी माना गया है. अगर बात मेथी की हो तो मेथी तो वो सब्जी है जो खाने के स्वाद को और ज्यादा बड़ा देती है. मसालों, सब्जियों के बघार में, अचार में, पत्तियों की सब्जी और मेथी के पराठे बहुत चाव से खाए जाते हैं. मेथी का दवाई के रूप में उपयोग हजारों सालों से किया जाता रहा है. कमर दर्द, गठिया दर्द, प्रसव के बाद, डाइबिटीज के साथ ही जोड़ों के दर्द, आंखों की कमजोरी, शारीरिक दुर्बलता, संबंधी मूत्र विकार ये सब दूर होते हैं. इसका सेवन हर साल करते रहना चाहिए.
स्त्रियां के लिए विशेष:
स्त्रियां भी इस लड्डू के सेवन करके सदैव स्वस्थ रह सकती हैं एवं चिरयौवन प्राप्त कर सकती हैं. हर साल सर्दियों के मौसम में इसे लाग के रूप में खाया जाता है. माना जाता है ठंड में इसका सेवन करने से शरीर स्वस्थ व निरोगी रहता है. सामग्री:
मेथीदाने - 500 ग्राम सोंठ का बारीक पाउडर 250 ग्राम दूध चार लीटर 500 घी ग्राम चीनी किलो 1.5 सोंठ, छोटी पीपलामूल, अजवाइन, जीरा, कलौंजी, सौंफ, धनिया, तेजपत्ता, कचूर, दालचीनी, जायफल और नागरमोथा ये 10-10 सब ग्राम. तैयार करने की विधि: उक्त सामग्री को कूट पीसकर बारीक चूर्ण बना लें. अब दूध को एक साफ कड़ाई में डालकर आग पर चढ़ाएं. औटाने पर जब दूध आधा रह जाए, तब इसमें मेथी का पिसा चूर्ण तथा सोंठ का पिसा हुआ चूर्ण डाल दें. हिलाते रहें और मावा बना दें. अब घी डालकर इसकी सिकाई करें. गुलाबी रंग का होने तक सेकें. अब इसमें मावा और बाकी की सब पिसी हुई दवाईयां मिलाकर चलाएं. जब कुछ गाढ़ा सा हो जाए, तब नीचे उतार लें तथा या तो जमाकर बर्फी जैसी चक्की काट लें अथवा 10-10 लगभग ग्राम वजन के लड्डू बांध दें.
कैसे प्रयोग करें:
इस लड्डू को सुबह के 200 समय ग्राम की मात्रा में खाकर ऊपर से दूध पीएं. इससे सभी तरह के वायु विकार समाप्त होते हैं. हष्ट शरीर पुष्ट होता है. प्रसव के बाद स्त्रियां इस पाक का सेवन करें. उनका शरीर कांतिमान हो जाता है. जिन व्यक्तियों के जोड़ों में सून दर्द, घुटनों में दर्द, थकान सी महसूस होना, पैरों के तलवों में अत्याधिक पसीना आना, बायंटे आना व गैस संबंधित सभी बीमारियों में फायदा होता है. Top

विशेष महिला दादी मां की देसी घर उपाय कमजोरी सभी प्रकार काबू करने के लिए

महिलाओं के लिए विशेष - दादी माँ का देसी घरेलु नुस्खा जो महिलाओं की हर तरह की कमजोरी को दूर करेगा आज कल अधिकतर महिलाएं श्वेत रक्त प्रदर, रक्त प्रदर, मासिक धर्म की अनियमितता, कमजोरी, दुबलापन, सिरदर्द, कमरदर्द आदि कई बीमारियां से परेशान है. ये सभी बीमारियां शरीर को स्वस्थ नहीं रहने देती हैं. अतः अपनाएं निम्न दादी माँ का देसी घरेलु नुस्खा जो महिलाओं की हर तरह की कमजोरी को दूर करता है.
सामग्री:
स्वर्ण भस्म या वर्क दस ग्राम, मोती पिष्टी बीस ग्राम, शुद्ध हिंगुल तीस ग्राम, सफेद मिर्च चालीस ग्राम, शुद्ध खर्पर अस्सी ग्राम. गाय के दूध का मक्खन पच्चीस ग्राम तैयार करने की विधि: थोड़ा सा नींबू का रस पहले स्वर्ण भस्म या वर्क और हिंगुल को मिला कर एक जान कर लें. फिर शेष द्रव्य मिलाकर मक्खन के साथ घुटाई करें. फिर नींबु का रस कपड़े की चार तह करके छान लें. और इसमें मिलाकर चिकनापन दूर होने तक घुटाई करनी चाहिए. आठ - दस दिन तक घुटाई करनी होगी. फिर उसकी एक - एक रत्ती की गोलियां बना लें.
कैसे करें सेवन:
1 2 या गोली सुबह शाम एक चम्मच च्यवनप्राश के साथ सेवन करें. इस दवाई का सेवन करने से महिलाओं को प्रदर रोग, शारीरिक क्षीणता, और कमजोरी आदिसे मुक्ति मिलती है और शरीर स्वस्थ और सुडौल बनता है. यह दवाई'' स्वर्ण मालिनी 'वसंत के नाम से बाजार में भी मिलती है. इसके सेवन से शरीर बलशाली होता है. शरीर के सभी अंगों को ताकत मिलती है. महिलाएं स्वभाव से बहुत ही भावुक होती है. कहते हैं ममता, प्यार, दया और सेवा ये सभी गुण उनमें जन्म से ही होते हैं. इसीलिए वे शादी के बंधन में बंधने के बाद पराए घर को अपनाकर अपने दिन - रात उनकी सेवा में लगा देती है. ऐसे में अधिकतर महिलाएं अपने ऊपर ध्यान नहीं दे पाती हैं. ध्यान नहीं देने के कारण वे कई बार अपनी बीमारियों को छिपाए रखती हैं. इस तरह अंदर ही अंदर वे कमजोर होती जाती हैं. श्वेत रक्त प्रदर, रक्त प्रदर, मासिक धर्म की अनियमितता, कमजोरी दुबलापन, सिरदर्द, कमरदर्द आदि. ये सभी बीमारियां शरीर को स्वस्थ और सुडौल नहीं रहने देती हैं. इसलिए उपरोक्त आयुर्वेदिक नुस्खा जो महिलाओं की हर तरह की कमजोरी को दूर करता है का सेवन करें. Top

विवाहित जीवन का आनंद लें घर पर हर्बल पाउडर तैयार

सुखी दांपत्य जीवन के लिए घर पर बनाएं आयुर्वेदिक चूर्ण और अपने वैवाहिक जीवन को भर दें आनंद से. आज की व्यस्ततम जीवनशैली, तनावभरी दिनचर्या और भौतिक सुख सुविधायें जुटाने की लालसा ने खुशहाल वैवाहिक जीवन को एक सपने की तरह बना दिया है. काम ने इस कर्म पवित्र के मूल में निहित भाव एवं उद्देश्य को समाप्त कर दिया है. काम आज दाम्पत्य जीवन की औपचारिकता भर रह गया है, इन्ही कारणों से यौन संबंधों को लेकर असंतुष्ट युगलों की संख्या में निरंतर इजाफा हो रहा है. अगर आपके साथ भी यही समस्या है आपको कमजोरी व क्षीणता महसूस होती है. अपने साथी को संतुष्ट नहीं कर पाते हैं तो नीचे लिखे देसी आयुर्वेदिक नुस्खे को जरूर अपनाएं निश्चित ही फायदा होगा.
सामग्री -
सकाकुल मिश्री, सालम मिश्री, काली मूसली और शतावर 40-40 सभी ग्राम. बहमन सफेद, बहमन लाल, तोदरी छोटी, तोदरी बड़ी 20-20 सभी ग्राम. सुरवारी के बीज, जौ इंद्र मीठे, जावित्री, जायफल, सौंठ, कुलींजन 10-10 सभी ग्राम.
निर्माण विधि
सारी औषधियों को अलग - अलग कुट पीसकर बाद में उक्त अनुपात में मिलाकर साफ सूखी शीशी में भरकर रखें.
सेवन विधि
पांच ग्राम की मात्रा लेकर इस चूर्ण 10 को ग्राम शहद में मिलाकर चाट लें. दूध के साथ न लें. उसी से दवा खानी चाहिए. इस मदनानंद चूर्ण के सेवन से धातु क्षीणता, नामर्दी की शिकायत भी कुछ दिनों मिट जाती है. वास्तव में यह चूर्ण कामोत्तेजना जाग्रत करने का बहुत अच्छा उपाय है. महत्वपूर्ण नोट: अगर स्त्री प्रसंग से परहेज करके इस दवा का सेवन छ: महीने (छह माह) तक कर लिया जाए तो बहुत ही अच्छा है Top

हमेशा रहे तरोताजा कम्प्यूटर पर कई घंटो तक काम करने के बाद भी.

आजकल कम्प्यूटर हम सभी की जिंदगी की जरुरत बन गया है. वर्कप्लेस हो या घर हम बिना कम्प्यूटर के अपना काम नहीं कर सकते हैं. यही कारण है कि कम्प्यूटर पर काम करते हुए थकान हो जाने के बावजूद भी हम लगातार कम्प्यूटर पर काम करते रहते हैं. ऐसे में ये भी एक परेशानी है कि हम कम्प्यूटर पर काम को करते हुए भी किस तरह अपने वर्क 100 में प्रतिशत तक दे सकते हैं. अगर आपके साथ भी यही समस्या है कि आप कम्प्यूटर पर बहुत ज्यादा काम के बोझ के कारण होने वाली थकान के चलते ठीक से काम नहीं कर पा रहे हैं तो हम देते हैं आपको कुछ ऐसे टिप्स जिनसे आप कम्प्यूटर पर कई घंटो तक काम करने के बावजूद भी तरोताजा रह सकते हैं.
1. बेवजह कम्प्यूटर का इस्तेमाल निशानचीखेलों करें.
2. कम्प्यूटर पर कार्य करते समय कुर्सी सही डिजाइन की होनी चाहिए.
3. कुर्सी में पूरी पीठ हत्थे पर होनी चाहिए. जिससे बैठते समय कमर, पीठ और हाथों को सहारा मिले.
4. की - बोर्ड माउस 90 को कोण पर मुड़ी कोहनी की सीध में रखें, बेहतर होगा की बोर्ड थोड़ा ढलान पर हों.
5. जांघे जमीन के समांतर टखने समकोण पर मुड़े हो, आवश्यक होने पर पैरों को फुट रेस्ट सहारा दें.
6. कम्प्यूटर पर कार्य करते समय फोन को कंधों और गर्दन से दबा कर बात निशानचीखेलों करें.
7. देर तक टेलीफोन से बात करने के लिए हेडफोन उपयोग करें.
8. कार्य करते समय शरीर ढीला रखें मन शांत रखें.
9. की - बोर्ड माउस का उपयोग कम करने के लिए आवाज पहचान कर कार्य करने वाले सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर सकते हैं.
10.मॉनीटर की चमक, परावर्तन कम करने के लिए एण्टीग्लेमर कोटिंग या ग्लास लगाएं. Top

प्राकृतिक होम युक्तियाँ द्वारा भव्य चमक चेहरे के साथ सुंदर बनें

अब बनें दिलकश जवाँ खूबसूरती के मालिक बस चाँद दादी माँ के घरेलु नुस्खों से गौरा रंग और चमकदार त्वचा सभी की चाहत होती है. ज्यादा सांवले रंग के कारण कई बार शादी में भी समस्या होती है. अगर आप भी गौरी - गौरी त्वचा चाहते हैं. तो कुछ आसान आयुर्वेद नुस्खे ऐसे हैं जिनसे आपका सांवलापन पूरी तरह नहीं मगर काफी हद तक दूर हो सकता है. साथ ही इन नुस्खों से स्कीन तो हेल्दी होती ही है और मिलती है दिलकश खूबसूरती.
1. रात को सोने से पहले गुनगुने पानी के साथ नियमित रूप से त्रिफला चूर्ण का सेवन करें.
2. एक बाल्टी ठण्डे या गुनगुने पानी में दो नींबू का रस मिलाकर गर्मियों में कुछ महीने तक नहाने से त्वचा का रंग निखरने लगता है (इस विधि को करने से त्वचा से सम्बन्धी कई रोग ठीक हो जाते हैं).
3. आंवला का मुरब्बा रोज एक नग खाने से दो तीन महीने में ही रंग निखरने लगते है.
4. गाजर का रस आधा गिलास खाली पेट सुबह शाम लेने से एक महीने में रंग निखरने लगता है. रोजाना सुबह शाम खाना खाने के बाद थोड़ी मात्रा में सांफ खाने से खून साफ होने लगता है और त्वचा की रंगत बदलने लगती है.
5. प्रतिदिन खाने के बाद सौंफ का सेवन करे Top

नीम बहुउद्देशीय सफेद बाल, मधुमेह और कई रोग के इलाज के लिए ट्री

नीम सर्वौषधि पेड़ जो करे सफेद बाल काले और डायबिटीज से लेकर एड्स, कैंसर और भी कई तरह की बीमारियों का इलाज ..
सफेद बाल करे काले: सफेद बाल काले करने के लिए नीम के तेल की कुछ बूंदें नासिका छिद्रों में टपकाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं. सिर की रूसी समाप्त करने के लिए नीम के पत्तों का काढ़ा बनाकर सिर धोना चाहिए.
चर्म रोग वा सफेद दाग: शरीर पर सफेद दाग होने पर नीम के फूल, फल तथा पत्तियों को मिलाकर बारीक पीस लें. इसे पानी में मिलाकर पीने से लाभ पहुंचता है. नीम के तेल से मालिश करने से विभिन्न प्रकार के चर्म रोग ठीक हो जाते हैं. नीम की पत्तियों को उबालकर और पानी ठंडा करके नहाया जाए तो उससे भी बहुत फायदा होता है. घाव नीम के पत्तों को पीसकर थोड़ा शहद मिलाकर घाव पर इसका लेप करने से लाभ होता है.
दाद: दाद वाली जगहों पर लगाएं, कुछ ही दिनों में दाद का काम तमाम हो जाएगा.
अस्थमा: अस्थमा के मरीज को नीम के बीजों का तेल पान में डालकर चबाना चाहिए.
पथरी: पथरी होने पर पानी के साथ नीम की पत्तियों की राख नियमित लेने से पथरी गल कर बाहर निकल जाती है.
कफ: नीम के फूलों का सेवन करने से कफ नष्ट होता है.
अन्य लाभ: नीम की कच्ची निबोरी के सेवन से पेट के कीड़े, बवासीर व कोढ आदि रोग दूर होते हैं. खाने में अरूचि होने पर नीम के पत्तों का सेवन लाभप्रद है. यही नहीं, नीम के हरे पत्तों का रस नाक में टपकाने से सिर का दर्द दूर होता है और कान में टपकाने से कान की पीड़ा में आराम मिलता है. प्रतिदिन नीम की दातुन करने से दांतों में सडऩ, दुर्गंध व कीटाणु नहीं रहते हैं. Top

शास्त्रों के विषय में शंका समाधान

शास्त्रों के विषय में शंका समाधान ( सिर्फ जिज्ञासु और प्रबुध्दजनों के लिए )
हमारे हिन्दू धर्म में चार प्रकार के ''धर्मग्रन्थ ''उपलब्ध है :
१- श्रुति - वेद , उपनिषद् और गीता !
२- स्मृति - वशिष्ठ स्मृति , मनुस्मृति आदि !!
३- पुराण आदि - भागवत पुराण आदि !!!
४- तंत्र आदि शास्त्र !!!

इसमे ''श्रुति '' को ''प्रामाण्य '' ग्रन्थ माना जाता है , जो भी धर्म या अध्यात्म शास्त्र के मूल सिद्धांत और गूढ़ से गूढ़ ज्ञान है , इसी ''धर्मशास्त्र '' में है ! यही हिन्दू धर्म का मूल आधार है !!
अगर किसी को भी आत्मा, प्रकृति और परमात्मा के विषय में कोई शंका समाधान या जिज्ञासा है , जो जिज्ञासु और बुध्दिप्रधान है , उन्हें इन्ही शास्त्रों में समाधान मिलेगा !!! ये शास्त्र अन्य सभी शास्त्रों के लिए ''प्रमाण '' माने गए है यानी अगर अन्य शास्त्र के विषय में जो भी शंका या प्रश्न होगा , उसके लिए प्रमाण के रूप में इन्ही धर्म ग्रंथो का आधार लिया जाता है !!

'' श्रुति '' ज्ञान अकाट्य और अपरिवर्तनशील है !! ये ज्ञान 'कंठस्थ '' होता है !

२- स्मृति -- समाज की तत्कालीन प्रकृति और परिस्थिति को देखते हुए उस समय समाज में विराजमान ऋषि मुनियों ने जो ''श्रुति '' पर आधारित जनकल्याण के लिए समाज को धर्म अनुरूप व्यवस्था में नियमबद्ध किया और वह धर्माचरण के लिए जो शास्त्र बने , वे ''स्मृति '' कहलाये !!

''स्मृति '' ज्ञान समय और परिस्थिति के अनुरूप ''परिवर्तनशील '' होते है , लेकिन श्रुति प्रमाणित होने से अकाट्य होते है ..तत्कालीन समय और परिस्थिति में वे नियम और शास्त्र मान्य होते है लेकिन सदैव स्थायी नहीं माने जाते !! इसमे परिवर्तन किया जा सकता है और कभी उस समय सत्ताधीश उसे अपने हित में '' परिवर्तित ''कर उसमे मिलावट भी कर सकते है और किया भी गया है ..

जैसे आज के समय में वर्णाश्रम व्यवस्था एक औपचारिकता है , उसे पूर्णरूप से व्यवहारिकता में नहीं लाया जा सकता !!
आज के अनुरूप ही ही उसकी अलग व्याख्या बन जाएगी !!
तर्क- वितर्क और वाद विवाद इसी क्षेत्र में है !!

३- पुराण आदि - समाज में सभी प्रकार के व्यक्ति बुध्दिप्रधान नहीं होते !! वे सिध्दांत को सीधे समझ नहीं पाते ! इसलिए उन्हें कथानक अथवा दृष्टान्त के माध्यम से ''श्रुति '' के मूल सिध्दांत को समझाने का प्रयास किया जाता है !! ये ह्रदय प्रधान लोगो के लिए बने है ! बुध्दिप्रधान लोगो को इन शास्त्रों में शंका होती है , सो स्वाभाविक है ..लेकिन बुध्दिमान लोग इन शास्त्र के ''भावार्थ '' को समझने का ही प्रयास करते है !!

४- तंत्र मन्त्र आदि - इन शास्त्रों की रचना मध्यकाल में सिद्ध महापुरुषों द्वारा की गई ! ये भी अनुभव सिध्द ग्रन्थ है और गूढ़ होने के कारण इस शास्त्र की सभी बाते सामान्य लोगो के समझ से परे भी हो जाती है .. लेकिन ये शास्त्र सिर्फ ''साधना'' द्वारा ही समझ में आ सकते है !

इस प्रकार से शास्त्रों के बारें में जानकारी रखकर तब उसके विषय में अपना मंतव्य रखना चाहिए और उसी तरह ज्ञान भी ग्रहण करना चाहिए !!!

४- तंत्रमंत्र आदि शास्त्र : इनका

Thursday 28 March 2013

नकली धर्मनिरपेक्षता secularism

How secularism, paid media, foreign education and vote bank politics effecting Sanatan Dharma...

- do not play Holi save water
- karwachauth is against woman
- do not celebrate diwali save environment
- do not take bath and not perform last rituals in ganga it creates water pollution
- on Ganesh chaturthi and Durga pooja do not put moorti in water
- do not eat sweets it can harm your health
- question on historicity of Ram and Krishna
- books of Sanatan Dharma are myth

Now what they say about other

- killing of lakhs of animals on eid is way of sacrifice of human for God.
- never count no of accidents happen due to drunked drivers on the new year eve
- leave sweets eat chocolates
- burka is necessary for woman
- God is one but Ram and Krishna are not God they are not historically proved
- Quran and Bible are truth and all stories in it is not myth but Sanatan Dharma books are myth
- rain dance and swimming in pool are good for health but Holi celebration is water wasting.
- pope is real saint but Shankararchya and other Hindu saints are fake.
- becoming a pope is breaking news but becoming a mahamandaleswar or Shankarachrya is not a news.
- says halleluiah at school prayer but do not Om
- classical Indian music is of no use but sufi music is good for cinema industry
- distributing bible in Quran in school is religious but distributing Gita is against secularism.
- dumping industrial waste in ganga and oceans is necessary but moortis and other rituals cause water pollution

Saturday 23 March 2013

इन 5 चीजों को खाने से एसिडिटी जड़ से खत्म हो जाती है

इन 5 चीजों को खाने से एसिडिटी जड़ से खत्म हो जाती है ----------
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जिन लोगों को एसिडिटी की समस्या है, उन्हें इसके कारण पेट में कई बार असहनीय जलन होती है। देर तक भूखे रहना, फास्ट फूड खाना, अनियमित दिनचर्या एसिडिटी के कुछ प्रमुख कारण हैं। यदि आपको एसिडिटी की समस्या है, तो तो इन फलों का सेवन अधिक करें, बिना दवाई ही एसिडिटी खत्म हो जाएगी.......

टमाटर- शरीर के लिए टमाटर बहुत ही लाभकारी होता है। इससे कई रोगों का निदान होता है।
टमाटर शरीर से, विशेषकर गुर्दे से रोग के जीवाणुओं को निकालता है। इसमें भरपूर मात्रा में कैल्शियम, फास्फोरस व विटामिन-सी पाए जाते हैं।
एसिडिटी की शिकायत होने पर टमाटरों की खुराक बढ़ाने से यह शिकायत दूर हो जाती है। दरअसल, टमाटर स्वाद में खट्टा है, लेकिन ये शरीर में क्षार की मात्रा बढ़ाता है। इसीलिए इसके नियमित सेवन से एसिडिटी नहीं बढ़ती है।

संतरा- संतरे की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें मौजूद फ्रक्टोज, डेक्स्ट्रोज, खनिज एवं विटामिन शरीर में पहुंचते ही ऊर्जा देना प्रारंभ कर देते हैं।
संतरे के सेवन से शरीर स्वस्थ रहता है, चुस्ती-फुर्ती बढ़ती है। संतरे के नियमित सेवन से एसिडिटी खत्म हो जाती है।

पपीता- पपीता अत्यंत गुणकारी एवं सर्वसुलभ फलों में से एक है। इससे निकलने वाला रस अपने वजन से 100 गुना प्रोटीन बहुत जल्द पचा देता है।
इससे आमाशय तथा आंत संबंधी विकारों में बहुत लाभ मिलता है।
पपीता कब्ज, गैस, एसिडिटी व कफ जैसे रोगों में लाभकारी होता है।

अमरूद- मौसमी फल अमरूद खाने से कब्ज और एसिडिटी में फायदा होता है। अमरूद में कई तरह के गुण होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी हैं। इसमें विटामिन, फाइबर व मिनरल प्रचुर मात्रा में होता है।
फाइबर होने की वजह से यह कब्ज दूर करता है। अमरूद में विटामिन सी की काफी मात्रा होती है। अत: इसके नियमित सेवन से जुकाम से बचाव होता है।

जामुन- मधुमेह के उपचार में जामुन एक पारंपरिक औषधि है। जामुन को मधुमेह के रोगी का ही फल कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि इसकी गुठली, छाल, रस और गूदा सभी मधुमेह में बेहद फायदेमंद है।
मौसम के अनुरूप जामुन का सेवन औषधि के रूप में खूब करना चाहिए। यह पेट के रोगों में आराम दिलवाता है। खाली पेट जामुन खाने से गैस व एसिडिटी की समस्या खत्म हो जाती है।
शहीदे आजम भगत सिंह और क्रांतिकारियों के जीवन की कुछ खास बातें

Bhagat singh

-पं० राम प्रसाद 'बिस्मिल'

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है?
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आस्माँ!हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है?

एक से करता नहीं क्यों दूसरा कुछ बातचीत,देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है।
रहबरे-राहे-मुहब्बत! रह न जाना राह में, लज्जते-सेहरा-नवर्दी दूरि-ए-मंजिल में है।

अब न अगले वल्वले हैं और न अरमानों की भीड़,एक मिट जाने की हसरत अब दिले-'बिस्मिल' में है ।
ए शहीद-ए-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार, अब तेरी हिम्मत का चर्चा गैर की महफ़िल में है।

खींच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद, आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है?

है लिये हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर, और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर।
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है, सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

हाथ जिनमें हो जुनूँ , कटते नही तलवार से, सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से,
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है , सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

हम तो निकले ही थे घर से बाँधकर सर पे कफ़न,जाँ हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम।
जिन्दगी तो अपनी महमाँ मौत की महफ़िल में है, सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

यूँ खड़ा मकतल में कातिल कह रहा है बार-बार, "क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?"
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है?

दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब, होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज।
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है ! सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है ।

जिस्म वो क्या जिस्म है जिसमें न हो खूने-जुनूँ, क्या वो तूफाँ से लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है । देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है ??

-पं० राम प्रसाद 'बिस्मिल'

शहीद भगत सिंह ,शहीद राजगुरु, शहीद sukhdev

भगत सिँह का आखिरी पत्र

Friday 22 March 2013

शहीद भगत सिंह के आखिरी साढ़े तीन घंटे

Martyr day: last three and half hours of bhagat singh
23 मार्च का दिन उन आम दिनों की तरह ही शुरू हुआ जब सुबह के समय राजनीतिक बंदियों को उनके बैरक से बाहर निकाला जाता था। आम तौर पर वे दिन भर बाहर रहते थे और सूरज ढलने के बाद वापस अपने बैरकों में चले जाते थे। लेकिन आज वार्डन चरत सिंह शाम करीब चार बजे ही सभी कैदियों को अंदर जाने को कह रहा था। सभी हैरान थे, आज इतनी जल्दी क्यों। पहले तो वार्डन की डांट के बावजूद सूर्यास्त के काफी देर बाद तक वे बाहर रहते थे। लेकिन आज वह आवाज काफी कठोर और दृढ़ थी। उन्होंने यह नहीं बताया कि क्यों? बस इतना कहा, ऊपर से ऑर्डर है।
चरत सिंह द्वारा क्रांतिकारियों के प्रति नरमी और माता-पिता की तरह देखभाल उन्हें दिल तक छू गई थी। वे सभी उसकी इज्जत करते थे। इसलिए बिना किसी बहस के सभी आम दिनों से चार घंटे पहले ही अपने-अपने बैरकों में चले गए। लेकिन सभी कौतूहल से सलाखों के पीछे से झांक रहे थे। तभी उन्होंने देखा बरकत नाई एक के बाद कोठरियों में जा रहा था और बता रहा था कि आज भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा।
हमेशा की तरह मुस्कुराने वाला बरकत आज काफी उदास था। सभी कैदी खामोश थे, कोई कुछ भी बात नहीं कर पा रहा था। सभी अपनी कोठरियों के बाहर से जाते रास्ते की ओर देख रहे थे। वे उम्मीद कर रहे थे कि शायद इसी रास्ते से भगत सिंह और उनके साथी गुजरेंगे।
फांसी के दो घंटे पहले भगत सिंह के वकील मेहता को उनसे मिलने की इजाजत मिल गई। उन्होंने अपने मुवक्किल की आखिरी इच्छा जानने की दरखास्त की थी और उसे मान लिया गया। भगत सिंह अपनी कोठरी में ऐसे आगे-पीछे घूम रहे थे जैसे कि पिंजरे में कोई शेर घूम रहा हो। उन्होंने मेहता का मुस्कुराहट के साथ स्वागत किया और उनसे पूछा कि क्या वे उनके लिए 'दि रेवोल्यूशनरी लेनिन' नाम की किताब लाए हैं। भगत सिंह ने मेहता से इस किताब को लाने का अनुरोध किया था। जब मेहता ने उन्हें किताब दी, वे बहुत खुश हुए और तुरंत पढ़ना शुरू कर दिया, जैसे कि उन्हें मालूम था कि उनके पास वक्त ज्यादा नहीं है। मेहता ने उनसे पूछा कि क्या वे देश को कोई संदेश देना चाहेंगे, अपनी निगाहें किताब से बिना हटाए भगत सिंह ने कहा, मेरे दो नारे उन तक पहुंचाएं..इंकलाब जिंदाबाद, साम्राज्यवाद मुर्दाबाद। मेहता ने भगत सिंह से पूछा आज तुम कैसे हो? उन्होंने कहा, हमेशा की तरह खुश हूं। मेहता ने फिर पूछा, तुम्हें किसी चीज की इच्छा है? भगत सिंह ने कहा, हां मैं दुबारा इस देश में पैदा होना चाहता हूं ताकि इसकी सेवा कर सकूं। भगत ने कहा, पंडित नेहरू और सुभाष चंद्र बोस ने जो रुचि उनके मुकदमे में दिखाई उसके लिए दोनों का धन्यवाद करें।
मेहता के जाने के तुरंत बाद अधिकारियों ने भगत सिंह और उनके साथियों को बताया कि उन्हें फांसी का समय 11 घंटा घटाकर कल सुबह छह बजे की बजाए आज साम सात बजे कर दिया गया है। भगत सिंह ने मुश्किल से किताब के कुछ पन्ने ही पढ़े थे। उन्होंने कहा, क्या आप मुझे एक अध्याय पढ़ने का भी वक्त नहीं देंगे? बदले में अधिकारी ने उनसे फांसी के तख्ते की तरफ चलने को कहा। एक-एक करके तीनों का वजन किया गया। फिर वे नहाए और कपड़े पहने। वार्डन चतर सिंह ने भगत सिंह के कान में कहा, वाहे गुरु से प्रार्थना कर ले। वे हंसे और कहा, मैंने पूरी जिंदगी में भगवान को कभी याद नहीं किया, बल्कि दुखों और गरीबों की वजह से कोसा जरूर हूं। अगर अब मैं उनसे माफी मांगूगा तो वे कहेंगे कि यह डरपोक है जो माफी चाहता है क्योंकि इसका अंत करीब आ गया है।
तीनों के हाथ बंधे थे और वे संतरियों के पीछे एक-दूसरे से ठिठोली करते हुए सूली की तरफ बढ़ रहे थे। उन्होंने फिर गाना शुरू कर दिया-'कभी वो दिन भी आएगा कि जब आजाद हम होंगे, ये अपनी ही जमीं होगी ये अपना आसमां होगा। शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का बाकी यही नाम-ओ-निशां होगा।'
जेल की घड़ी में साढ़े छह बज रहे थे। कैदियों ने थोड़ी दूरी पर, भारी जूतों की आवाज और जाने-पहचाने गीत, 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है' की आवाज सुनी। उन्होंने एक और गीत गाना शुरू कर दिया, 'माई रंग दे मेरा बसंती चोला' और इसके बाद वहां 'इंकलाब जिंदाबाद' और 'हिंदुस्तान आजाद हो' के नारे लगने लगे। सभी कैदी भी जोर-जोर से नारे लगाने लगे।
तीनों को फांसी के तख्ते तक ले जाया गया। भगत सिंह बीच में थे। तीनों से आखिरी इच्छा पूछी गई तो भगत सिंह ने कहा वे आखिरी बार दोनों साथियों से गले लगना चाहते हैं और ऐसा ही हुआ। फिर तीनों ने रस्सी को चूमा और अपने गले में खुद पहन लिए। फिर उनके हाथ-पैर बांध दिए गए। जल्लाद ने ठीक शाम 7:33 बजे रस्सी खींच दी और उनके पैरों के नीचे से तख्ती हटा दी गई। उनके दुर्बल शरीर काफी देर तक सूली पर लटकते रहे फिर उन्हें नीचे उतारा और जांच के बाद डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
सब कुछ शांत हो चुका था। फांसी के बाद चरत सिंह वार्ड की तरफ आया और फूट-फूट कर रोने लगा। उसने अपनी तीस साल की नौकरी में बहुत सी फांसियां देखी थीं, लेकिन किसी को भी हंसते-मुस्कराते सूली पर चढ़ते नहीं देखा था, जैसा कि उन तीनों ने किया था।

Wednesday 13 March 2013

आयुर्वेद के अनुसार किस-किस चीज को साथ नहीं खाना चाहिए और क्यों ?

आयुर्वेद के अनुसार किस-किस चीज को साथ नहीं खाना चाहिए और क्यों, जानते हैं
आयुर्वेद के मुताबिक किस-किस चीज को साथ नहीं खाना चाहिए और क्यों ?
आयुर्वेद के मुताबिक किस-किस चीज को साथ नहीं खाना चाहिए और क्यों ?
दूध के साथ दही लें या नहीं? दूध और दही दोनों की तासीर अलग होती है। दही एक खमीर वाली चीज है। दोनों को मिक्स करने से बिना खमीर वाला खाना (दूध) खराब हो जाता है। …
साथ ही, एसिडिटी बढ़ती है और गैस, अपच व उलटी हो सकती है। इसी तरह दूध के साथ अगर संतरे का जूस लेंगे तो भी पेट में खमीर बनेगा। अगर दोनों को खाना ही है तो दोनों के
बीच घंटे-डेढ़ घंटे का फर्क होना चाहिए क्योंकि खाना पचने में कम-से-कम इतनी देर तो लगती ही है।
दूध के साथ तला-भुना और नमकीन खाएं या नहीं? दूध में मिनरल और विटामिंस के अलावा लैक्टोस शुगर और प्रोटीन होते हैं। दूध एक एनिमल प्रोटीन है और उसके साथ ज्यादा मिक्सिंग करेंगे तो रिएक्शन हो सकते हैं। फिर नमक मिलने से मिल्क प्रोटींस जम जाते हैं और पोषण कम हो जाता है। अगर लंबे समय तक ऐसा किया जाए तो स्किन की बीमारियां हो सकती हैं। आयुर्वेद के मुताबिक उलटे गुणों और मिजाज के खाने लंबे वक्त तक ज्यादा मात्रा में साथ खाए जाएं तो नुकसान पहुंचा सकते हैं। लेकिन मॉडर्न मेडिकल साइंस ऐसा नहीं मानती।
सोने से पहले दूध पीना चाहिए या नहीं? आयुर्वेद के मुताबिक नींद शरीर के कफ दोष से प्रभावित होती है। दूध अपने भारीपन, मिठास और ठंडे मिजाज के कारण कफ प्रवृत्ति को बढ़ाकर नींद लाने में सहायक होता है। मॉडर्न साइंस में भी माना जाता है कि दूध नींद लाने में मददगार होता है। इससे सेरोटोनिन हॉर्मोन भी निकलता है, जो दिमाग को शांत करने में मदद करता है। वैसे, दूध अपने आप में पूरा आहार है, जिसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और कैल्शियम होते हैं। इसे अकेले पीना ही बेहतर है। साथ में बिस्किट, रस्क, बादाम या ब्रेड ले सकते हैं, लेकिन भारी खाना खाने से दूध के गुण शरीर में समा नहीं पाते।
दूध में पत्ती या अदरक आदि मिलाने से सिर्फ स्वाद बढ़ता है, उसका मिजाज नहीं बदलता। वैसे, टोंड दूध को उबालकर पीना, खीर बनाकर या दलिया में मिलाकर लेना और भी फायदेमंद है। बहुत ठंडे या गर्म दूध की बजाय गुनगुना या कमरे के तापमान के बराबर दूध पीना बेहतर है।
नोट : अक्सर लोग मानते हैं कि सर्जरी या टांके आदि के बाद दूध नहीं लेना चाहिए क्योंकि इससे पस पड़ सकती है, यह गलतफहमी है। दूध में मौजूद प्रोटीन शरीर की टूट-फूट को जल्दी भरने में मदद करते हैं। दूध दिन भर में कभी भी ले सकते हैं। सोने से कम-से-कम एक घंटे पहले लें। दूध और डिनर में भी एक घंटे का अंतर रखें।
खाने के साथ छाछ लें या नहीं? छाछ बेहतरीन ड्रिंक या अडिशनल डाइट है। खाने के साथ इसे लेने से खाने का पाचन भी अच्छा होता है और शरीर को पोषण भी ज्यादा मिलता है। यह खुद भी आसानी से पच जाती है। इसमें अगर एक चुटकी काली मिर्च, जीरा और सेंधा नमक मिला लिया जाए तो और अच्छा है। इसमें अच्छे बैक्टीरिया भी होते हैं, जो शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं। मीठी लस्सी पीने से फालतू कैलरी मिलती हैं, इसलिए उससे बचना चाहिए। छाछ खाने के साथ लेना या बाद में लेना बेहतर है। पहले लेने से जूस डाइल्यूट हो जाएंगे।
दही और फल एक साथ लें या नहीं? फलों में अलग एंजाइम होते हैं और दही में अलग। इस कारण वे पच नहीं पाते, इसलिए दोनों को साथ लेने की सलाह नहीं दी जाती। फ्रूट रायता कभी-कभार ले सकते हैं, लेकिन बार-बार इसे खाने से बचना चाहिए।
आयुर्वेद के मुताबिक परांठे या पूरी आदि तली-भुनी चीजों के साथ दही नहीं खाना चाहिए क्योंकि दही फैट के पाचन में रुकावट पैदा करता है। इससे फैट्स से मिलनेवाली एनर्जी शरीर को नहीं मिल पाती।
दूध के साथ फल खाने चाहिए या नहीं? दूध के साथ फल लेते हैं तो दूध के अंदर का कैल्शियम फलों के कई एंजाइम्स को एड्जॉर्ब (खुद में समेट लेता है और उनका पोषण शरीर को नहीं मिल पाता) कर लेता है। संतरा और अनन्नास जैसे खट्टे फल तो दूध के साथ बिल्कुल नहीं लेने चाहिए। व्रत वगैरह में बहुत से लोग केला और दूध साथ लेते हैं, जोकि सही नहीं है। केला कफ बढ़ाता है और दूध भी कफ बढ़ाता है। दोनों को साथ खाने से कफ बढ़ता है और पाचन पर भी असर पड़ता है। इसी तरह चाय, कॉफी या कोल्ड ड्रिंक के रूप में खाने के साथ अगर बहुत सारा कैफीन लिया जाए तो भी शरीर को पूरे पोषक तत्व नहीं मिल पाते।
मछली के साथ दूध पिएं या नहीं? दही की तासीर ठंडी है। उसे किसी भी गर्म चीज के साथ नहीं लेना चाहिए। मछली की तासीर काफी गर्म होती है, इसलिए उसे दही के साथ नहीं खाना चाहिए। इससे गैस, एलर्जी और स्किन की बीमारी हो सकती है। दही के अलावा शहद को भी गर्म चीजों के साथ नहीं खाना चाहिए।
फल खाने के फौरन बाद पानी पी सकते हैं, खासकर तरबूज खाने के बाद? फल खाने के फौरन बाद पानी पी सकते हैं, हालांकि दूसरे तरल पदार्थों से बचना चाहिए। असल में फलों में काफी फाइबर होता है और कैलरी काफी कम होती है। अगर ज्यादा फाइबर के साथ अच्छा मॉइश्चर यानी पानी भी मिल जाए तो शरीर में सफाई अच्छी तरह हो जाती है। लेकिन तरबूज या खरबूज के मामले में यह थ्योरी सही नहीं बैठती क्योंकि ये काफी फाइबर वाले फल हैं। तरबूज को अकेले और खाली पेट खाना ही बेहतर है। इसमें पानी काफी ज्यादा होता है, जो पाचन रसों को डाइल्यूट कर देता है। अगर कोई और चीज इसके साथ या फौरन बाद/पहले खाई जाए तो उसे पचाना मुश्किल होता है। इसी तरह, तरबूज के साथ पानी पीने से लूज-मोशन हो सकते हैं। वैसे तरबूज अपने आप में काफी अच्छा फल है। यह वजन घटाने के इच्छुक लोगों के अलावा शुगर और दिल के मरीजों के लिए भी अच्छा है।
खाने के साथ फल नहीं खाने चाहिए। कार्बोहाइड्रेट और प्रोटींस के पाचन का मिकैनिज्म अलग होता है। कार्बोहाइड्रेट को पचानेवाला स्लाइवा एंजाइम एल्कलाइन मीडियम में काम करता है, जबकि नीबू, संतरा, अनन्नास आदि खट्टे फल एसिडिक होते हैं। दोनों को साथ खाया जाए तो कार्बोहाइड्रेट या स्टार्च की पाचन प्रक्रिया धीमी हो जाती है। इससे कब्ज, डायरिया या अपच हो सकती है। वैसे भी फलों के पाचन में सिर्फ दो घंटे लगते हैं, जबकि खाने को पचने में चार-पांच घंटे लगते हैं। मॉडर्न मेडिकल साइंस की राय कुछ और है। उसके मुताबिक, फ्रूट बाहर एसिडिक होते हैं लेकिन पेट में जाते ही एल्कलाइन हो जाते हैं। वैसे भी शरीर में जाकर सभी चीजें कार्बोहाइड्रेट, फैट, प्रोटीन आदि में बदल जाती हैं, इसलिए मॉडर्न मेडिकल साइंस तरह-तरह के फलों को मिलाकर खाने की सलाह देता है।
मीठे फल और खट्टे फल एक साथ न खाएं आयुर्वेद के मुताबिक, संतरा और केला एक साथ नहीं खाना चाहिए क्योंकि खट्टे फल मीठे फलों से निकलनेवाली शुगर में रुकावट पैदा करते हैं, जिससे पाचन में दिक्कत हो सकती है। साथ ही, फलों की पौष्टिकता भी कम हो सकती है। मॉडर्न मेडिकल साइंस इससे इत्तफाक नहीं रखती।
खाने के साथ पानी पिएं या नहीं? पानी बेहतरीन पेय है, लेकिन खाने के साथ पानी पीने से बचना चाहिए। खाना लंबे समय तक पेट में रहेगा तो शरीर को पोषण ज्यादा मिलेगा। अगर पानी ज्यादा लेंगे तो खाना फौरन नीचे चला जाएगा। अगर पीना ही है तो थोड़ा पिएं और गुनगुना या नॉर्मल पानी पिएं। बहुत ठंडा पानी पीने से बचना चाहिए। पानी में अजवाइन या जीरा डालकर उबाल लें। यह खाना पचाने में मदद करता है। खाने से आधा घंटा पहले या एक घंटा बाद गिलास भर पानी पीना अच्छा है।
लहसुन या प्याज खाने चाहिए या नहीं? लहसुन और प्याज को रोजाना के खाने में शामिल किया जाना चाहिए। लहसुन फैट कम करता है और बैड कॉलेस्ट्रॉल (एलडीएल) घटाकर गुड कॉलेस्ट्रॉल (एचडीएल) बढ़ाता है। इसमें एंटी-बॉडीज और एंटी-ऑक्सिडेंट गुण होते हैं। प्याज से भूख बढ़ती है और यह खून की नलियों के आसपास फैट जमा होने से रोकता है। लंबे समय तक इसके इस्तेमाल से सर्दी-जुकाम और सांस संबंधी एलर्जी का मुकाबला अच्छे से किया जा सकता है। लहसुन और प्याज कच्चा या भूनकर, दोनों तरह से खा सकते हैं। लेकिन लहसुन कच्चा खाना बेहतर है। कच्चे लहसुन को निगलें नहीं, चबाकर खाएं क्योंकि कच्चा लहसुन कई बार पच नहीं पाता। साथ ही, उसमें कई ऐसे तेल होते हैं, जो चबाने पर ही निकलते हैं और उनका फायदा शरीर को मिलता है।
परांठे के साथ दही खाएं या नहीं? आयुर्वेद के मुताबिक परांठे या पूरी आदि तली-भुनी चीजों के साथ दही नहीं खाना चाहिए क्योंकि दही फैट के पाचन में रुकावट पैदा करता है। इससे फैट्स से मिलनेवाली एनजीर् शरीर को नहीं मिल पाती। दही खाना ही है तो उसमें काली मिर्च, सेंधा नमक या आंवला पाउडर मिला लें। हालांकि रोटी के साथ दही खाने में कोई परहेज नहीं है। मॉडर्न साइंस कहता है कि दही में गुड बैक्टीरिया होते हैं, जोकि खाना पचाने में मदद करते हैं इसलिए दही जरूर खाना चाहिए।
फैट और प्रोटीन एक साथ खाएं या नहीं? घी, मक्खन, तेल आदि फैट्स को पनीर, अंडा, मीट जैसे भारी प्रोटींस के साथ ज्यादा नहीं खाना चाहिए क्योंकि दो तरह के खाने अगर एक साथ खाए जाएं, तो वे एक-दूसरे की पाचन प्रक्रिया में दखल देते हैं। इससे पेट में दर्द या पाचन में गड़बड़ी हो सकती है।
दूध, ब्रेड और बटर एक साथ लें या नहीं? दूध को अकेले लेना ही बेहतर है। तब शरीर को इसका फायदा ज्यादा होता है। आयुर्वेद के मुताबिक प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और फैट की ज्यादा मात्रा एक साथ नहीं लेनी चाहिए क्योंकि तीनों एक-दूसरे के पचने में रुकावट पैदा कर सकते हैं और पेट में भारीपन हो सकता है। मॉडर्न साइंस इसे सही नहीं मानता। उसके मुताबिक यह सबसे अच्छे नाश्तों में से है क्योंकि यह अपनेआप में पूरा है।
तरह-तरह की डिश एक साथ खाएं या नहीं? एक बार के खाने में बहुत ज्यादा वैरायटी नहीं होनी चाहिए। एक ही थाली में सब्जी, नॉन-वेज, मीठा, चावल, अचार आदि सभी कुछ खा लेने से पेट में खलबली मचती है। रोज के लिए फुल वैरायटी की थाली वाला कॉन्सेप्ट अच्छा नहीं है। कभी-कभार ऐसा चल जाता है।
खाने के बाद मीठा खाएं या नहीं? मीठा अगर खाने से पहले खाया जाए तो बेहतर है क्योंकि तब न सिर्फ यह आसानी से पचता है, बल्कि शरीर को फायदा भी ज्यादा होता है। खाने के बाद में मीठा खाने से प्रोटीन और फैट का पाचन मंदा होता है। शरीर में शुगर सबसे पहले पचता है, प्रोटीन उसके बाद और फैट सबसे बाद में।
खाने के बाद चाय पिएं या नहीं? खाने के बाद चाय पीने से कई फायदा नहीं है। यह गलत धारणा है कि खाने के बाद चाय पीने से पाचन बढ़ता है। हालांकि ग्रीन टी, डाइजेस्टिव टी, कहवा या सौंफ, दालचीनी, अदरक आदि की बिना दूध की चाय पी सकते हैं।
छोले-भठूरे या पिज्जा/बर्गर के साथ कोल्ड ड्रिंक्स लें या नहीं? कोल्ड ड्रिंक में मौजूद एसिड की मात्रा और ज्यादा शुगर फास्ट फूड (पिज्जा, बर्गर, फ्रेंच फ्राइस आदि) में मौजूद फैट के साथ अच्छा नहीं माना जाता। तला-भुना खाना एसिडिक होता है और शुगर भी एसिडिक होती है। ऐसे में दोनों को एक साथ लेना सही नहीं है। साथ ही बहुत गर्म और ठंडा एक साथ नहीं खाना चाहिए। गर्मागर्म भठूरे या बर्गर के साथ ठंडा कोल्ड ड्रिंक पीना शरीर के तापमान को खराब करता है। स्नैक्स में मौजूद फैटी एसिड्स शुगर का पाचन भी खराब करते हैं। फास्ट फूड या तली-भुनी चीजों के साथ कोल्ड ड्रिंक के बजाय जूस, नीबू-पानी या छाछ ले सकते हैं। जूस में मौजूद विटामिन-सी खाने को पचाने में मदद करता है।
भारी काबोर्हाइड्रेट्स के साथ भारी प्रोटीन खाएं या नहीं? मीट, अंडे, पनीर, नट्स जैसे प्रोटीन ब्रेड, दाल, आलू जैसे भारी कार्बोहाइड्रेट्स के साथ न खाएं। दरअसल, हाई प्रोटीन को पचाने के लिए जो एंजाइम चाहिए, अगर वे एक्टिवेट होते हैं तो वे हाई कार्बो को पचाने वाले एंजाइम को रोक देते हैं। ऐसे में दोनों का पाचन एक साथ नहीं हो पाता। अगर लगातार इन्हें साथ खाएं तो कब्ज की शिकायत हो सकती है

गौ- घृत के चमत्कारिक फायदे

The wondrous benefits of cow ghee
The wondrous benefits of cow ghee
हम अगर गोरस का बखान करते करते मर जाए तो भी कुछ अंग्रेजी सभ्यता वाले हमारी बात नहीं मानेगे क्योकि वे लोग तो हम लोगो को पिछड़ा, साम्प्रदायिक और गँवार जो समझते है| उनके लिए तो वही सही है जो पश्चिम कहे तो हम उन्ही के वैज्ञानिक शिरोविच की गोरस पर खोज लाये हैं जो रुसी वैज्ञानिक है|
गाय का घी और चावल की आहुती डालने से महत्वपूर्ण गैसे जैसे – एथिलीन ऑक्साइड,प्रोपिलीन ऑक्साइड,फॉर्मल्डीहाइड आदि उत्पन्न होती हैं । इथिलीन ऑक्साइड गैस आजकल सबसे अधिक
प्रयुक्त होनेवाली जीवाणुरोधक गैस है,जो शल्य-चिकित्सा (ऑपरेशन थियेटर) से लेकर जीवनरक्षक औषधियाँ बनाने तक में उपयोगी हैं । वैज्ञानिक प्रोपिलीन ऑक्साइड गैस को कृत्रिम वर्षो का आधार मानते है । आयुर्वेद विशेषज्ञो के अनुसार अनिद्रा का रोगी शाम को दोनों नथुनो में गाय के घी की दो – दो बूंद डाले और रात को नाभि और पैर के तलुओ में गौघृत लगाकर लेट जाय तो उसे प्रगाढ़ निद्रा आ जायेगी ।
गौघृत में मनुष्य – शरीर में पहुंचे रेडियोधर्मी विकिरणों का दुष्प्रभाव नष्ट करने की असीम क्षमता हैं । अग्नि में गाय का घी कि आहुति देने से उसका धुआँ जहाँ तक फैलता है,वहाँ तक का सारा वातावरण प्रदूषण और आण्विक विकरणों से मुक्त हो जाता हैं । सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि एक चम्मच गौघृत को अग्नि में डालने से एक टन प्राणवायु (ऑक्सीजन) बनती हैं जो
अन्य किसी भी उपाय से संभव नहीं हैं|देसी गाय के घी को रसायन कहा गया है। जो जवानी को कायम रखते हुए, बुढ़ापे को दूर रखता है। काली गाय का घी खाने से बूढ़ा व्यक्ति भी जवान जैसा हो जाता है।गाय के घी में स्वर्ण छार पाए जाते हैं जिसमे अदभुत औषधिय गुण होते है, जो की गाय के घी के इलावा अन्य घी में नहीं मिलते । गाय के घी से बेहतर कोई दूसरी चीज नहीं है। गाय के घी में वैक्सीन एसिड, ब्यूट्रिक एसिड, बीटा-कैरोटीन जैसे माइक्रोन्यूट्रींस मौजूद होते हैं। जिस के सेवन करने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से बचा जा सकता है। गाय के घी से उत्पन्न शरीर के माइक्रोन्यूट्रींस में कैंसर युक्त तत्वों से लड़ने की क्षमता होती है।यदि आप गाय के 10 ग्राम घी से हवन अनुष्ठान (यज्ञ,) करते हैं तो इसके परिणाम स्वरूप वातावरण में लगभग 1 टन ताजा ऑक्सीजन का उत्पादन कर सकते हैं। यही कारण है कि मंदिरों में गाय के घी का दीपक जलाने कि तथा , धार्मिक समारोह में यज्ञ करने कि प्रथा प्रचलित है। इससे वातावरण में फैले परमाणु विकिरणों को हटाने की अदभुत क्षमता होती है।
गाय के घी के अन्य महत्वपूर्ण उपयोग :–
1.गाय का घी नाक में डालने से पागलपन दूर होता है।
2.गाय का घी नाक में डालने से एलर्जी खत्म हो जाती है।
3.गाय का घी नाक में डालने से लकवा का रोग में भी उपचार होता है।
4.20-25 ग्राम घी व मिश्री खिलाने से शराब, भांग व गांझे का नशा कम हो जाता है।
5.गाय का घी नाक में डालने से कान का पर्दा बिना ओपरेशन के ही ठीक हो जाता है।
6.नाक में घी डालने से नाक की खुश्की दूर होती है और दिमाग तारो ताजा हो जाता है।
7.गाय का घी नाक में डालने से कोमा से बहार निकल कर चेतना वापस लोट आती है।
8.गाय का घी नाक में डालने से बाल झडना समाप्त होकर नए बाल भी आने लगते है।
9.गाय के घी को नाक में डालने से मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है।
10.हाथ पाव मे जलन होने पर गाय के घी को तलवो में मालिश करें जलन ढीक होता है।
11.हिचकी के न रुकने पर खाली गाय का आधा चम्मच घी खाए, हिचकी स्वयं रुक जाएगी।
12.गाय के घी का नियमित सेवन करने से एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती है।
13.गाय के घी से बल और वीर्य बढ़ता है और शारीरिक व मानसिक ताकत में भी इजाफा होता है
14.गाय के पुराने घी से बच्चों को छाती और पीठ पर मालिश करने से कफ की शिकायत दूर हो जाती है।
15.अगर अधिक कमजोरी लगे, तो एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री डालकर पी लें।
16.हथेली और पांव के तलवो में जलन होने पर गाय के घी की मालिश करने से जलन में आराम आयेगा।
17.गाय का घी न सिर्फ कैंसर को पैदा होने से रोकता है और इस बीमारी के फैलने को भी आश्चर्यजनक ढंग से रोकता है।
18.जिस व्यक्ति को हार्ट अटैक की तकलीफ है और चिकनाइ खाने की मनाही है तो गाय का घी खाएं, हर्दय मज़बूत होता है।
19.देसी गाय के घी में कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता होती है। इसके सेवन से स्तन तथा आंत के खतरनाक कैंसर से बचा जा सकता है।
20.संभोग के बाद कमजोरी आने पर एक गिलास गर्म दूध में एक चम्मच देसी गाय का घी मिलाकर पी लें। इससे थकान बिल्कुल कम हो जाएगी।
21.फफोलो पर गाय का देसी घी लगाने से आराम मिलता है।गाय के घी की झाती पर मालिस करने से बच्चो के बलगम को बहार निकालने मे सहायक होता है।
22.सांप के काटने पर 100 -150 ग्राम घी पिलायें उपर से जितना गुनगुना पानी पिला सके पिलायें जिससे उलटी और दस्त तो लगेंगे ही लेकिन सांप का विष कम हो जायेगा।
23.दो बूंद देसी गाय का घी नाक में सुबह शाम डालने से माइग्रेन दर्द ढीक होता है। सिर दर्द होने पर शरीर में गर्मी लगती हो, तो गाय के घी की पैरों के तलवे पर मालिश करे, सर दर्द ठीक हो जायेगा।
24.यह स्मरण रहे कि गाय के घी के सेवन से कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता है। वजन भी नही बढ़ता, बल्कि वजन को संतुलित करता है । यानी के कमजोर व्यक्ति का वजन बढ़ता है, मोटे व्यक्ति का मोटापा (वजन) कम होता है।
25.एक चम्मच गाय का शुद्ध घी में एक चम्मच बूरा और 1/4 चम्मच पिसी काली मिर्च इन तीनों को मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय चाट कर ऊपर से गर्म मीठा दूध पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है।
26.गाय के घी को ठन्डे जल में फेंट ले और फिर घी को पानी से अलग कर ले यह प्रक्रिया लगभग सौ बार करे और इसमें थोड़ा सा कपूर डालकर मिला दें। इस विधि द्वारा प्राप्त घी एक असर कारक औषधि में परिवर्तित हो जाता है जिसे जिसे त्वचा सम्बन्धी हर चर्म रोगों में चमत्कारिक मलहम कि तरह से इस्तेमाल कर सकते है। यह सौराइशिस के लिए भी कारगर है।
27.गाय का घी एक अच्छा(LDL)कोलेस्ट्रॉल है। उच्च कोलेस्ट्रॉल के रोगियों को गाय का घी ही खाना चाहिए। यह एक बहुत अच्छा टॉनिक भी है। अगर आप गाय के घी की कुछ बूँदें दिन में तीन बार,नाक में प्रयोग करेंगे तो यह त्रिदोष (वात पित्त और कफ) को संतुलित करता है।
28.घी, छिलका सहित पिसा हुआ काला चना और पिसी शक्कर (बूरा) तीनों को समान मात्रा में मिलाकर लड्डू बाँध लें। प्रातः खाली पेट एक लड्डू खूब चबा-चबाकर खाते हुए एक गिलास मीठा कुनकुना दूध घूँट-घूँट करके पीने से स्त्रियों के प्रदर रोग में आराम होता है, पुरुषों का शरीर मोटा ताजा यानी सुडौल और बलवान बनता है।

Tuesday 12 March 2013

पाताल में मिला सरस्वती का पता

सौजन्‍य: इंडिया टुडे
कालीबंगा के मिट्टी के टीले खामोश खड़े हैं. अगर लोहे की काली सलाखों वाली बड़ी-सी चारदीवारी में इन्हें करीने से सहेजा न गया हो, तो यह एहसास करना कठिन है कि हम पुरखों की उस जमीन पर खड़े हैं, जहां कभी सरस्वती-सिंधु की नदी घाटी सभ्यता सांस लेती थी. मिट्टी के इन ढूहों के पीछे गेहूं के लहलहाते खेत हैं.
बगल में पुरातत्व विभाग के बोर्ड पर खुदा नक्शा याद दिलाता है कि इन टीलों को घेरकर कभी सरस्वती नदी बहा करती थी और आज उसी के बहाव क्षेत्र में 21वीं सदी की फसल लहलहा रही है. वैसे तो आज भी बरसात के मौसम में यहां से एक छोटी-सी नदी घग्घर कुछ दिन के लिए बहती है, लेकिन उस महानदी के सामने इस बरसाती पोखर की क्या बिसात, जिसकी गोद में कभी दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक फल-फूल रही थी.
ओल्डहैम से आइआइटी तकतो वह नदी कहां लुप्त हो गई? आज से 120 साल पहले 1893 में यही सवाल एक अंग्रेज इंजीनियर सी.एफ. ओल्डहैम के जेहन में उभरा था, जब वे इस नदी की सूखी घाटी से अपने घोड़े पर सवार होकर गुजरे. तब ओल्डहैम ने पहली परिकल्पना दी कि हो न हो, यह प्राचीन विशाल नदी सरस्वती की घाटी है, जिसमें सतलुज नदी का पानी मिलता था. और जिसे ऋषि-मुनियों ने ऋग्वेद (ऋचा 2.41.16) में ''अम्बी तमे, नदी तमे, देवी तमे सरस्वती” अर्थात् सबसे बड़ी मां, सबसे बड़ी नदी, सबसे बड़ी देवी कहकर पुकारा है. ऋग्वेद में इस भूभाग के वर्णन में पश्चिम में सिंधु और पूर्व में सरस्वती नदी के बीच पांच नदियों झेलम, चिनाब, सतलुज, रावी और व्यास की उपस्थिति का जिक्र है.Sarswati
ऋग्वेद (ऋचा 7.36.6) में सरस्वती को सिंधु और अन्य नदियों की मां बताया गया है. इस नदी के लुप्त होने को लेकर ओल्डहैम ने विचार दिया कि कुदरत ने करवट बदली और सतलुज के पानी ने सिंधु नदी का रुख कर लिया. बेचारी सरस्वती सूख गई. एक सदी से ज्यादा के वक्त में विज्ञान और तकनीक ने रफ्तार पकड़ी और सरस्वती के स्वरूप को लेकर एक-दूसरे को काटती हुई कई परिकल्पनाएं सामने आईं. इस बारे में अंतिम अध्याय लिखा जाना अभी बाकी है. 1990 के दशक में मिले सैटेलाइट चित्रों से पहली बार उस नदी का मोटा खाका दुनिया के सामने आया. इन नक्शों में करीब 20 किमी चौड़ाई में हिमालय से अरब सागर तक जमीन के अंदर नदी घाटी जैसी आकृति दिखाई देती है.
अब जिज्ञासा यह थी कि कोई नदी इतनी चौड़ाई में तो नहीं बह सकती, तो आखिर उस नदी कासटीक रास्ता और आकार क्या था? और उसके विलुप्त होने की सच्ची कहानी क्या है? इन सवालों के जवाब ढूंढऩे के लिए 2011 के अंत में आइआइटी कानपुर के साथ काशी हिंदू विश्वविद्यालय (वाराणसी) और लंदन के इंपीरियल कॉलेज के विशेषज्ञों ने शोध शुरू किया. ''इस परियोजना में हमने इलेक्ट्रिकल रेसिस्टिविटी साउंडिंग तकनीक का प्रयोग किया.
इस तकनीक से जमीन के भीतर पानी की परतों की सटीक मोटाई का आकलन किया जाता है. हमें यह सुनिश्चित करना था कि पश्चिम गंगा बेसिन में यमुना और सतलुज नदियों के बीच एक बड़ी नदी बहा करती थी. यह नदी कांस्य युग और हड़प्पा कालीन पुरातत्व स्थलों के पास से बहती थी. कोई साढ़े तीन हजार साल पहले यह सभ्यता नदी के पानी के धार बदल लेने से लुप्त हो गई. हालांकि सभ्यता के लुप्त होने की दूसरी वजहें भी हो सकती हैं.”
परियोजना के प्रभारी और आइआइटी कानपुर में सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर रंजीत सिन्हा ने नई खोज की यह भूमिका रखी. इससे कुछ समय पहले ही अमेरिका में मिसीसिपी नदी घाटी के भूजल तंत्र का अध्ययन करने के लिए इस तकनीक का सफलता से प्रयोग किया जा चुका है. इसके अलावा मिस्र के समानुद इलाके में नील डेल्टा के पास नील नदी की लुप्त हो चुकी धाराओं का नक्शा खींचने में भी इस तकनीक को कामयाबी हासिल हुई है. नील नदी की लुप्त धाराओं के बारे में बने इस नए नक्शे ने कई ऐतिहासिक मान्यताओं को चुनौती भी दी है. साउंड रेसिस्टिविटी तकनीक से सरस्वती नदी के भूमिगत नेटवर्क के इन्हीं साक्ष्यों का पता लगाने के लिए टीम ने पहले चरण में पंजाब में पटियाला और लुधियाना के बीच पडऩे वाले पुरातत्व स्थल कुनाल के पास मुनक गांव, लुधियाना और चंडीगढ़ के बीच के सरहिंद गांव और राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में हड़प्पाकालीन पुरातत्व स्थल कालीबंगा का चयन किया.
2012 के अंत और सदी के पहले महाकुंभ से पहले प्रो. सिन्हा और उनकी टीम का 'इंटरनेशनल यूनियन ऑफ क्वाटरनरी रिसर्च’ के जर्नल क्वाटरनरी जर्नल में एक शोधपत्र छपा. इसका शीर्षक था: जिओ इलेक्ट्रिक रेसिस्टिविटी एविडेंस फॉर सबसरफेस पेलिओचैनल सिस्टम्स एडजासेंट टु हड़प्पन साइट्स इन नॉर्थवेस्ट इंडिया. इसमें दावा किया गया: ''यह अध्ययन पहली बार घग्घर-हाकरा नदियों के भूमिगत जलतंत्र का भू-भौतिकीय (जिओफिजिकल) साक्ष्य प्रस्तुत करता है.” यह शोधपत्र योजना के पहले चरण के पूरा होने के बाद सामने आया और साक्ष्यों की तलाश में अभी यह लुप्त सरस्वती की घाटी में पश्चिम की ओर बढ़ता जाएगा.
 ऊंचे हिमालय से उद्गमपहले साक्ष्य ने तो उस परिकल्पना पर मुहर लगा दी कि सरस्वती नदी घग्घर की तरह हिमालय की तलहटी की जगह सिंधु और सतलुज जैसी नदियों के उद्गम स्थल यानी ऊंचे हिमालय से निकलती थी. अध्ययन की शुरुआत घग्घर नदी की वर्तमान धारा से कहीं दूर सरहिंद गांव से हुई और पहले नतीजे ही चौंकाने वाले आए. सिन्हा बताते हैं, ''दरअसल 1980 के यशपाल के शोधपत्र में इस जगह पर घघ्घर-हाकरा नदियों की लुप्त हो चुकी संभावित सहायक नदी की मौजूदगी की बात कही गई थी. हम इसी सहायक नदी की मौजूदगी की पुष्टि के लिए साक्ष्य जुटा रहे थे.” लेकिन जो नतीजा सामने आया, उससे सरहिंद में जमीन के काफी नीचे साफ पानी से भरी रेत की 40 से 50 मीटर मोटी परत सामने आई. यह घाटी जमीन के भीतर 20 किमी में फैली है.
इसके बीच में पानी की मात्रा किनारों की तुलना में कहीं अधिक है. खास बात यह है कि सरहिंद में सतह पर ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता जिससे अंदाजा लग सके कि जमीन के नीचे इतनी बड़ी नदी घाटी मौजूद है. बल्कि यहां तो जमीन के ठीक नीचे बहुत सख्त सतह है. पानी की इतनी बड़ी मात्रा सहायक नदी में नहीं बल्कि मुख्य नदी में हो सकती है. सिन्हा ने बताया,''भूमिगत नदी घाटी में मिले कंकड़ों की फिंगर प्रिंटिंग बताती है कि यह नदी ऊंचे हिमालय से निकलती थी. कोई 1,000 किमी. की यात्रा कर अरब सागर में गिरती थी. इसके बहाव की तुलना वर्तमान में गंगा नदी से की जा सकती है.”
सरहिंद के इस साक्ष्य ने सरस्वती की घग्घर से इतर स्वतंत्र मौजूदगी पर मुहर लगा दी. इस शोध में तैयार नक्शे के मुताबिक, सरस्वती की सीमा सतलुज को छूती है. यानी सतलुज और सरस्वती के रिश्ते की जो बात ओल्डहैम ने 120 साल पहले सोची थी, भू-भौतिकीय साक्ष्य उस पर पहली बार मुहर लगा रहे थे.
आखिर कैसे सूखी सरस्वती?तो फिर ये नदियां अलग कैसे हो गईं? विलुप्त सरस्वती नदी की घाटी का पिछले 20 साल से अध्ययन कर रहे पुरातत्व शास्त्री और इलाहाबाद पुरातत्व संग्रहालय के निदेशक राजेश पुरोहित बताते हैं, ''समय के साथ सरस्वती नदी को पानी देने वाले ग्लेशियर सूख गए. इन हालात में या तो नदी का बहाव खत्म हो गया या फिर सिंधु, सतलुज और यमुना जैसी बाद की नदियों ने इस नदी के बहाव क्षेत्र पर कब्जा कर लिया. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान सरस्वती नदी का पानी पूर्व दिशा की ओर और सतलुज नदी का पानी पश्चिम दिशा की ओर खिसकता चला गया. बाद की सभ्यताएं गंगा और उसकी सहायक नदी यमुना (पूर्ववर्ती चंबल) के तटों पर विकसित हुईं. पहले यमुना नदी नहीं थी और चंबल नदी ही बहा करती थी. लेकिन उठापटक के दौर में हिमाचल प्रदेश में पोंटा साहिब के पास नई नदी यमुना ने सरस्वती के जल स्रोत पर कब्जा कर लिया और आगे जाकर इसमें चंबल भी मिल गई.”
यानी सरस्वती की सहायक नदी सतलुज उसका साथ छोड़कर पश्चिम में खिसककर सिंधु में मिल गर्ई और पूर्व में सरस्वती और चंबल की घाटी में यमुना का उदय हो गया. ऐसे में इस बात को बल मिलता है कि भले ही प्रयाग में गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम का कोई भूभौतिकीय साक्ष्य न मिलता हो लेकिन यमुना के सरस्वती के जलमार्ग पर कब्जे का प्रमाण इन नदियों के अलग तरह के रिश्ते की ओर इशारा करता है. उधर, जिन मूल रास्तों से होकर सरस्वती बहा करती थी, उसके बीच में थार का मरुस्थल आ गया. लेकिन इस नदी के पुराने रूप का वर्णन ऋग्वेद में मिलता है. ऋग्वेद के श्लोक (7.36.6) में कहा गया है, ''हे सातवीं नदी सरस्वती, जो सिंधु और अन्य नदियों की माता है और भूमि को उपजाऊ बनाती है, हमें एक साथ प्रचुर अन्न दो और अपने पानी से सिंचित करो.”
आइआइटी कानपुर के अध्ययन में भी नदी का कुछ ऐसा ही पुराना रूप निखर कर सामने आता है. साउंड रेसिस्टिविटी पर आधारित आंकड़े बताते हैं कि कालीबंगा और मुनक गांव के पास जमीन के नीचे साफ पानी से भरी नदी घाटी की जटिल संरचना मौजूद है. इन दोनों जगहों पर किए गए अध्ययन में पता चला कि जमीन के भीतर 12 किमी से अधिक चौड़ी और 30 मीटर मोटी मीठे पानी से भरी रेत की तह है. जबकि मौजूदा घग्घर नदी की चौड़ाई महज 500 मीटर और गहराई पांच मीटर ही है. जमीन के भीतर मौजूद मीठे पानी से भरी रेत एक जटिल संरचना दिखाती है, जिसमें बहुत-सी अलग-अलग धाराएं एक बड़ी नदी में मिलती दिखती हैं.
सिन्हा के शब्दों में, ''यह जटिल संरचना ऐसी नदी को दिखाती है जो आज से कहीं अधिक बारिश और पानी की मौजूदगी वाले कालखंड में अस्तित्व में थी या फिर नदियों के पानी का विभाजन होने के कारण अब कहीं और बहती है.” अध्ययन आगे बताता है कि इस मीठे पानी से भरी रेत से ऊपर कीचड़ से भरी रेत की परत है. इस परत की मोटाई करीब 10 मीटर है. गाद से भरी यह परत उस दौर की ओर इशारा करती है, जब नदी का पानी सूख गया और उसके ऊपर कीचड़ की परत जमती चली गई. ये दो परतें इस बात का प्रमाण हैं कि प्राचीन नदी बड़े आकार में बहती थी और बाद में सूख गई. और इन दोनों घटनाओं के कहीं बहुत बाद घग्घर जैसी बरसाती नदी वजूद में आई.
सरस्वती से गंगा के तट पर पहुंची सभ्यता
वैज्ञानिक साक्ष्यों की श्रृंखला यहीं नहीं रुकती. इसी शोध टीम के सदस्य और दिल्ली विश्वविद्यालय में जियोलॉजी के सहायक प्रोफेसर डॉ. शशांक शेखर बताते हैं, ''कालीबंगा में घग्घर नदी के दोनों ओर जिस तरह के मिट्टी के ढूह मिलते हैं, उस तरह के ढूह किसी बड़ी नदी की घाटी के आसपास ही बन सकते हैं.” और जिस तरह से कालीबंगा के ढूहों के नीचे से हड़प्पा काल के अवशेष मिलते हैं, उससे इस बात को बल मिलता है कि सरस्वती नदी और हड़प्पा संस्कृति के बीच कोई सीधा रिश्ता था.
कालीबंगा अकेला पुरातत्व स्थल नहीं है बल्कि राजस्थान के हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर जिलों में ऐसे 12 बड़े ढूह चिन्हित किए गए हैं. हड़प्पा सभ्यता के अवशेष पश्चिम में गुजरात तक और पूर्व में मेरठ तक मिले हैं. वहीं इलाहाबाद के पास कौशांबी में हड़प्पा सभ्यता का नया चरण शुरू होने के पुरातात्विक साक्ष्य मिले हैं. इन पुरातात्विक तथ्यों का विश्लेषण करते हुए मेरठ पुरातत्व संग्रहालय के निदेशक डॉ. मनोज गौतम कहते हैं, ''घग्घर-हाकरा या वैदिक सरस्वती के तट पर सिर्फ पूर्व हड़प्पा काल के अवशेष मिलते हैं. जबकि कौशांबी के पास पूर्व हड़प्पा और नव हड़प्पा काल के अवशेष एक साथ मिले हैं. यह संदर्भ सरस्वती नदी के लुप्त होने और गंगा-यमुना के तट पर नई सभ्यता के विकसित होने के तौर पर देखे जा सकते हैं.”
4,000 साल पुराना पानीआइआइटी ने अभी भले ही पंजाब, हरियाणा और उत्तरी राजस्थान में साउंड रेसिस्टिविटी से सरस्वती का नक्शा तैयार किया हो लेकिन अभी राजस्थान के बाकी हिस्से और गुजरात अपनी बारी की प्रतीक्षा में खड़े हैं. सैटेलाइट इमेज दिखाती है कि सरस्वती की घाटी हरियाणा में कुरुक्षेत्र, कैथल, फतेहाबाद, सिरसा, अनूपगढ़, राजस्थान में श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, थार का मरुस्थल और फिर गुजरात में खंभात की खाड़ी तक जाती थी. अध्ययन के आगे बढऩे पर नदी की बाकी दफन हो चुकी घाटी के मिलने की प्रबल संभावनाएं हैं. राजस्थान के जैसलमेर जिले में बहुत से ऐसे बोरवेल हैं, जिनसे कई साल से अपने आप पानी निकल रहा है. ये बोरवेल 1998 में मिशन सरस्वती योजना के तहत भूमिगत नदी का पता लगाने के लिए खोदे गए थे. इस दौरान केंद्रीय भूजल बोर्ड ने किशनगढ़ से लेकर घोटारू तक 80 किमी के क्षेत्र में 9 नलकूप और राजस्थान भूजल विभाग ने 8 नलकूप खुदवाए. जिले के जालूवाला गांव में गोमती देवी के नलकूप से पिछले दो साल से अपने आप पानी बह रहा है. रेगिस्तान में निकलता पानी लोगों के लिए आश्चर्य से कम नहीं है. इसी तरह अरशद के ट्यूबवेल से भी अविरल जलधारा बह रही है. इस बारे में राजस्थान भूजल विभाग के वैज्ञानिक डॉ. एन.डी. इणखिया कहते हैं कि यह सरस्वती का पानी है या नहीं, यह तो जांच के बाद ही कहा जा सकता है. लेकिन नलकूपों से निकले पानी को भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर ने 3,000 से 4,000 साल पुराना माना था. वैसे आइआइटी की कालगणना अभी बाकी है. यानी आने वाले दिनों में कुछ और रोमांचक जानकारियां मिल सकती हैं.
बचा लो विरासतवैज्ञानिक साक्ष्य और उनके इर्द-गिर्द घूमते ऐतिहासिक, पुरातात्विक और भौगोलिक तथ्य पाताल में लुप्त सरस्वती की गवाही दे रहे हैं. हालांकि विज्ञान आस्था से एक बात में सहमत नहीं है और इस असहमति के बहुत गंभीर मायने भी हैं. मान्यता है कि सरस्वती लुप्त होकर जमीन के अंदर बह रही है, जबकि आइआइटी का शोध कहता है कि नदी बह नहीं रही है, बल्कि उसकी भूमिगत घाटी में जल का बड़ा भंडार है.
प्रो. सिन्हा आगाह करते हैं कि ऐसे में अगर लुप्त नदी घाटी से लगातार बड़े पैमाने पर बोरवेल के जरिए पानी निकाला जाता रहा तो पाताल में पैठी नदी हमेशा के लिए सूख जाएगी, क्योंकि उसमें नए पानी की आपूर्ति नहीं हो रही है. वे सरस्वती की सही-सही पैमाइश इसीलिए कर रहे हैं, ताकि यह बताया जा सके कि कौन-सा पानी सामान्य भूजल है और कौन सा सरस्वती का संरक्षित जल. वैज्ञानिक तो यही चाहते हैं कि पाताल में जमी नदी के पानी का बेहिसाब इस्तेमाल न किया जाए क्योंकि अगर ऐसा किया जाता रहा तो जो सरस्वती कोई 4,000 साल पहले सतह से गायब हुई थी, वह अब पाताल से भी गायब हो जाएगी. नदी को बचाने की जिम्मेदारी अब उन्हीं लोगों की होगी, जिनके पुरखों को हजारों साल पहले इस नदी ने अपनी घाटी में बसाया था

Friday 8 March 2013


भोजन सम्बन्धी कुछ नियम

१ पांच अंगो ( दो हाथ , २ पैर , मुख ) को अच्छी तरह से धो कर ही भोजन करे ! २. गीले पैरों खाने से आयु में वृद्धि होती है !
३. प्रातः और सायं ही भोजन का विधान है !
४. पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुह करके ही खाना चाहिए !
५. दक्षिण दिशा की ओर किया हुआ भोजन प्रेत को प्राप्त होता है !
६ . पश्चिम दिशा की ओर किया हुआ भोजन खाने से रोग की वृद्धि होती है !
७. शैय्या पर , हाथ पर रख कर , टूटे फूटे वर्तनो में भोजन नहीं करना चाहिए !
८. मल मूत्र का वेग होने पर , कलह के माहौल में , अधिक शोर में , पीपल , वट वृक्ष के नीचे , भोजन नहीं करना चाहिए !
९ परोसे हुए भोजन की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए !
१०. खाने से पूर्व अन्न देवता , अन्नपूर्णा माता की स्तुति कर के , उनका धन्यवाद देते हुए , तथा सभी भूखो को भोजन प्राप्त हो इस्वर से ऐसी प्राथना करके भोजन करना चाहिए !

११. भोजन बनने वाला स्नान करके ही शुद्ध मन से , मंत्र जप करते हुए ही रसोई में भोजन बनाये और सबसे पहले ३ रोटिया अलग निकाल कर ( गाय , कुत्ता , और कौवे हेतु ) फिर अग्नि देव का भोग लगा कर ही घर वालो को खिलाये !
१२. इर्षा , भय , क्रोध , लोभ , रोग , दीन भाव , द्वेष भाव , के साथ किया हुआ भोजन कभी पचता नहीं है !
१३. आधा खाया हुआ फल , मिठाईया आदि पुनः नहीं खानी चाहिए !
१४. खाना छोड़ कर उठ जाने पर दुबारा भोजन नहीं करना चाहिए !
१५. भोजन के समय मौन रहे !
१६. भोजन को बहुत चबा चबा कर खाए !
१७. रात्री में भरपेट न खाए !
१८. गृहस्थ को ३२ ग्रास से ज्यादा न खाना चाहिए !
१९. सबसे पहले मीठा , फिर नमकीन , अंत में कडुवा खाना चाहिए !

२०. सबसे पहले रस दार , बीच में गरिस्थ , अंत में द्राव्य पदार्थ ग्रहण करे !

२१. थोडा खाने वाले को --आरोग्य , आयु , बल , सुख, सुन्दर संतान , और सौंदर्य प्राप्त होता है !
२२. जिसने ढिढोरा पीट कर खिलाया हो वहा कभी न खाए !
२३. कुत्ते का छुवा , रजस्वला स्त्री का परोसा , श्राध का निकाला , बासी , मुह से फूक मरकर ठंडा किया , बाल गिरा हुवा भोजन , अनादर युक्त , अवहेलना पूर्ण परोसा गया भोजन कभी न करे !
२४. कंजूस का , राजा का , वेश्या के हाथ का , शराब बेचने वाले का दिया भोजन कभी नहीं करना चाहिए !

गोंद के औषधीय गुण -

किसी पेड़ के तने को चीरा लगाने पर उसमे से जो स्त्राव निकलता है वह सूखने पर भूरा और कडा हो जाता है उसे गोंद कहते है .यह शीतल और पौष्टिक होता है . उसमे उस पेड़ के ही औषधीय गुण भी होते है . आयुर्वेदिक दवाइयों में गोली या वटी बनाने के लिए भी पावडर की बाइंडिंग के लिए गोंद का इस्तेमाल होता है .
- कीकर या बबूल का गोंद पौष्टिक होता है .
- नीम का गोंद रक्त की गति बढ़ाने वाला, स्फूर्तिदायक पदार्थ है।इसे ईस्ट इंडिया गम भी कहते है . इसमें भी नीम के औषधीय गुण होते है - पलाश के गोंद से हड्डियां मज़बूत होती है .पलाश का 1 से 3 ग्राम गोंद मिश्रीयुक्त दूध अथवा आँवले के रस के साथ लेने से बल एवं वीर्य की वृद्धि होती है तथा अस्थियाँ मजबूत बनती हैं और शरीर पुष्ट होता है।यह गोंद गर्म पानी में घोलकर पीने से दस्त व संग्रहणी में आराम मिलता है।

- आम की गोंद स्तंभक एवं रक्त प्रसादक है। इस गोंद को गरम करके फोड़ों पर लगाने से पीब पककर बह जाती है और आसानी से भर जाता है। आम की गोंद को नीबू के रस में मिलाकर चर्म रोग पर लेप किया जाता है। - सेमल का गोंद मोचरस कहलाता है, यह पित्त का शमन करता है।अतिसार में मोचरस चूर्ण एक से तीन ग्राम को दही के साथ प्रयोग करते हैं। श्वेतप्रदर में इसका चूर्ण समान भाग चीनी मिलाकर प्रयोग करना लाभकारी होता है। दंत मंजन में मोचरस का प्रयोग किया जाता है।
- बारिश के मौसम के बाद कबीट के पेड़ से गोंद निकलती है जो गुणवत्ता में बबूल की गोंद के समकक्ष होती है।

- हिंग भी एक गोंद है जो फेरूला कुल (अम्बेलीफेरी, दूसरा नाम एपिएसी) के तीन पौधों की जड़ों से निकलने वाला यह सुगंधित गोंद रेज़िननुमा होता है । फेरूला कुल में ही गाजर भी आती है । हींग दो किस्म की होती है - एक पानी में घुलनशील होती है जबकि दूसरी तेल में । किसान पौधे के आसपास की मिट्टी हटाकर उसकी मोटी गाजरनुमा जड़ के ऊपरी हिस्से में एक चीरा लगा देते हैं । इस चीरे लगे स्थान से अगले करीब तीन महीनों तक एक दूधिया रेज़िन निकलता रहता है । इस अवधि में लगभग एक किलोग्राम रेज़िन निकलता है । हवा के संपर्क में आकर यह सख्त हो जाता है कत्थई पड़ने लगता है ।यदि सिंचाई की नाली में हींग की एक थैली रख दें, तो खेतों में सब्ज़ियों की वृद्धि अच्छी होती है और वे संक्रमण मुक्त रहती है । पानी में हींग मिलाने से इल्लियों का सफाया हो जाता है और इससे पौधों की वृद्धि बढ़िया होती
- गुग्गुल एक बहुवर्षी झाड़ीनुमा वृक्ष है जिसके तने व शाखाओं से गोंद निकलता है, जो सगंध, गाढ़ा तथा अनेक वर्ण वाला होता है. यह जोड़ों के दर्द के निवारण और धुप अगरबत्ती आदि में इस्तेमाल होता है .
- प्रपोलीश- यह पौधों द्धारा श्रावित गोंद है जो मधुमक्खियॉं पौधों से इकट्ठा करती है इसका उपयोग डेन्डानसैम्बू बनाने में तथा पराबैंगनी किरणों से बचने के रूप में किया जाता है।
- ग्वार फली के बीज में ग्लैक्टोमेनन नामक गोंद होता है .ग्वार से प्राप्त गम का उपयोग दूध से बने पदार्थों जैसे आइसक्रीम , पनीर आदि में किया जाता है। इसके साथ ही अन्य कई व्यंजनों में भी इसका प्रयोग किया जाता है.ग्वार के बीजों से बनाया जाने वाला पेस्ट भोजन, औषधीय उपयोग के साथ ही अनेक उद्योगों में भी काम आता है।
- इसके अलावा सहजन , बेर , पीपल , अर्जुन आदि पेड़ों के गोंद में उसके औषधीय गुण मौजूद होते

Thursday 7 March 2013

नवधा भक्ति उपदेश

नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं॥
प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। दूसरि रति मम कथा प्रसंगा॥4
मैं तुझसे अब अपनी नवधा भक्ति कहता हूँ। तू सावधान होकर सुन और मन में धारण कर। पहली भक्ति है संतों का सत्संग। दूसरी भक्ति है मेरे कथा प्रसंग में प्रेम॥4
दोहा :
गुर पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान।
चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान॥35
तीसरी भक्ति है अभिमानरहित होकर गुरु के चरण कमलों की सेवा और चौथी भक्ति यह है कि कपट छोड़कर मेरे गुण समूहों का गान करें॥35
चौपाई :
मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा॥
छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा॥1
मेरे (राम) मंत्र का जाप और मुझमें दृढ़ विश्वास- यह पाँचवीं भक्ति है, जो वेदों में प्रसिद्ध है। छठी भक्ति है इंद्रियों का निग्रह, शील (अच्छा स्वभाव या चरित्र), बहुत कार्यों से वैराग्य और निरंतर संत पुरुषों के धर्म (आचरण) में लगे रहना॥1
सातवँ सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा॥
आठवँ जथालाभ संतोषा। सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा॥2
सातवीं भक्ति है जगत्‌ भर को समभाव से मुझमें ओतप्रोत (राममय) देखना और संतों को मुझसे भी अधिक करके मानना। आठवीं भक्ति है जो कुछ मिल जाए, उसी में संतोष करना और स्वप्न में भी पराए दोषों को न देखना॥2
नवम सरल सब सन छलहीना। मम भरोस हियँ हरष न दीना॥

नव महुँ एकउ जिन्ह कें होई। नारि पुरुष सचराचर कोई॥3