Tuesday 30 April 2013

जाट जाति के गौरवशाली इतिहास को कभी किसी इतिहासकार ने वर्णित नहीं किया

जाट जाति के गौरवशाली इतिहास को कभी किसी इतिहासकार ने वर्णित नहीं किया। बहुत खोजने पर जो मिला उसके कुछ अंश प्रस्तुत हैं जिसे पढ़कर आप स्वतः कह उठेगें, "हमें जाट होने पर गर्व है।"

देवसंहिता के कुछ श्लोक जो जाटों के सम्बन्ध में प्रकाश डालते हैं_____

पार्वत्युवाचः

भगवन सर्व भूतेश सर्व धर्म विदाम्बरः
कृपया कथ्यतां नाथ जाटानां जन्म कर्मजम् ।।12।।

अर्थ- हे भगवन! हे भूतेश! हे सर्व धर्म विशारदों में श्रेष्ठ! हे स्वामिन! आप कृपा करके मेरे तईं जाट जाति का जन्म एवं कर्म कथन कीजिये ।।12।।

का च माता पिता ह्वेषां का जाति बद किकुलं ।
कस्तिन काले शुभे जाता प्रश्नानेतान बद प्रभो ।।13।।

अर्थ- हे शंकरजी ! इनकी माता कौन है, पिता कौन है, जाति कौन है, किस काल में इनका जन्म हुआ है ? ।।13।।

श्री महादेव उवाच:

श्रृणु देवि जगद्वन्दे सत्यं सत्यं वदामिते ।
जटानां जन्मकर्माणि यन्न पूर्व प्रकाशितं ।।14।।

अर्थ- महादेवजी पार्वती का अभिप्राय जानकर बोले कि जगतवन्दनीय भगवती ! जाट जाति का जन्म कर्म मैं तुम्हारी ताईं सत्य-सत्य कथन करता हूँ कि जो आज पर्यंत किसी ने न श्रवण किया है और न कथन किया है ।।14।।

महाबला महावीर्या, महासत्य पराक्रमाः ।
सर्वाग्रे क्षत्रिया जट्‌टा देवकल्पाक दृढ़-व्रता: || 15 ||

अर्थ- शिवजी बोले कि जाट महाबली हैं, महा वीर्यवान, महान सत्यवादी और बड़े पराक्रमी हैं। क्षत्रिय प्रभृति क्षितिपालों के पूर्व काल में ये जाट ही पृथ्वी पर राजे-महाराजे रहे हैं, जाट देव-जाति से भी श्रेष्ठ है, और दृढ़-प्रतिज्ञा वाले हैं || 15 ||

श्रृष्टेरादौ महामाये वीर भद्रस्य शक्तित: ।
कन्यानां दक्षस्य गर्भे जाता जट्टा महेश्वरी || 16 ||

अर्थ- शंकरजी बोले हे भगवती ! सृष्टि के आदि में वीरभद्रजी की योगमाया के प्रभाव से उत्पन्न जो पुरूष उनके द्वारा और ब्रह्मपुत्र दक्ष महाराज की कन्या गणी से जाट जाति उत्पन्न होती भई, सो आगे स्पष्ट होवेगा || 16 ||

गर्व खर्चोत्र विग्राणां देवानां च महेश्वरी ।
विचित्रं विस्मवयं सत्वां पौराण कै साङ्गीपितं || 17 ||

अर्थ- शंकरजी बोले हे देवि! जाट जाति की उत्पत्ति का जो इतिहास है सो अत्यन्त आश्चर्यमय है। इस इतिहास में विप्र जाति एवं देव जाति का गर्व खर्च होता है। इस कारण इतिहास वर्णनकर्ता कविगणों ने जाट जाति के इतिहास को प्रकाशमान नहीं किया है || 17 ||

गेहूं के जवारे : पृथ्वी की संजीवनी बूटी ---

गेहूं के जवारे : पृथ्वी की संजीवनी बूटी -----
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प्रकृति ने हमें अनेक अनमोल नियामतें दी हैं। गेहूं के जवारे उनमें से ही प्रकृति की एक अनमोल देन है। अनेक आहार शास्त्रियों ने इसे संजीवनी बूटी भी कहा है, क्योंकि ऐसा कोई रोग नहीं, जिसमें इसका सेवन लाभ नहीं देता हो। यदि किसी रोग से रोगी निराश है तो वह इसका सेवन कर श्रेष्ठ स्वास्थ्य पा सकता है।

गेहूं के जवारों में अनेक अनमोल पोषक तत्व व रोग निवारक गुण पाए जाते हैं, जिससे इसे आहार नहीं वरन्‌ अमृत का दर्जा भी दिया जा सकता है। जवारों में सबसे प्रमुख तत्व क्लोरोफिल पाया जाता है। प्रसिद्ध आहार शास्त्री डॉ. बशर के अनुसार क्लोरोफिल (गेहूंके जवारों में पाया जाने वाला प्रमुख तत्व) को केंद्रित सूर्य शक्ति कहा है।

गेहूं के जवारे रक्त व रक्त संचार संबंधी रोगों, रक्त की कमी, उच्च रक्तचाप, सर्दी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, स्थायी सर्दी, साइनस, पाचन संबंधी रोग, पेट में छाले, कैंसर, आंतों की सूजन, दांत संबंधी समस्याओं, दांत का हिलना, मसूड़ों से खून आना, चर्म रोग, एक्जिमा, किडनी संबंधी रोग, सेक्स संबंधी रोग, शीघ्रपतन, कान के रोग, थायराइड ग्रंथि के रोग व अनेक ऐसे रोग जिनसे रोगी निराश हो गया, उनके लिए गेहूं के जवारे अनमोल औषधि हैं। इसलिए कोई भी रोग हो तो वर्तमान में चल रही चिकित्सा पद्धति के साथ-साथ इसका प्रयोग कर आशातीत लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

हिमोग्लोबिन रक्त में पाया जाने वाला एक प्रमुख घटक है। हिमोग्लोबिन में हेमिन नामक तत्व पाया जाता है। रासायनिक रूप से हिमोग्लोबिन व हेमिन में काफी समानता है। हिमोग्लोबिन व हेमिन में कार्बन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन व नाइट्रोजन के अणुओं की संख्या व उनकी आपस में संरचना भी करीब-करीब एक जैसी होती है। हिमोग्लोबिन व हेमिन की संरचना में केवल एक ही अंतर होता है कि क्लोरोफिल के परमाणु केंद्र में मैग्नेशियम, जबकि हेमिन के परमाणु केंद्र में लोहा स्थित होता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि हिमोग्लोबिन व क्लोरोफिल में काफी समानता है और इसीलिए गेहूं के जवारों को हरा रक्त कहना भी कोई अतिशयोक्ति नहीं है।

गेहूं के जवारों में रोग निरोधक व रोग निवारक शक्ति पाई जाती है। कई आहार शास्त्री इसे रक्त बनाने वाला प्राकृतिक परमाणु कहते हैं। गेहूं के जवारों की प्रकृति क्षारीय होती है, इसीलिए ये पाचन संस्थान व रक्त द्वारा आसानी से अधिशोषित हो जाते हैं। यदि कोई रोगी व्यक्ति वर्तमान में चल रही चिकित्सा के साथ-साथ गेहूं के जवारों का प्रयोग करता है तो उसे रोग से मुक्ति में मदद मिलती है और वह बरसों पुराने रोग से मुक्ति पा जाता है।

यहां एक रोग से ही मुक्ति नहीं मिलती है वरन अनेक रोगों से भी मुक्ति मिलती है, साथ ही यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति इसका सेवन करता है तो उसकी जीवनशक्ति में अपार वृद्धि होती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गेहूं के जवारे से रोगी तो स्वस्थ होता ही है किंतु सामान्य स्वास्थ्य वाला व्यक्ति भी अपार शक्ति पाता है। इसका नियमित सेवन करने से शरीर में थकान तो आती ही नहीं है।

यदि किसी असाध्य रोग से पीड़ित व्यक्ति को गेहूं के जवारों का प्रयोग कराना है तो उसकी वर्तमान में चल रही चिकित्सा को बिना बंद किए भी गेहूं के जवारों का सेवन कराया जा सकता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि कोई चिकित्सा पद्धति गेहूं के जवारों के प्रयोग में आड़े नहीं आती है, क्योंकि गेहूं के जवारे औषधि ही नहीं वरन श्रेष्ठ आहार भी है।

जवारे का रस के बनाने की विधि:-
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आप सात बांस की टोकरी मंे अथवा गमलों मंे अच्छी मिट्टी भरकर उन मंे प्रति दिन बारी-बारी से कुछ उत्तम गेहूँ के दाने बो दीजिए और छाया मंे अथवा कमरे या बरामदे मंे रखकर यदाकदा थोड़ा-थोड़ा पानी डालते जाइये, धूप न लगे तो अच्छा है। तीन-चार दिन बाद गेहूँ उग आयेंगे और आठ-दस दिन के बाद 6-8 इंच के हो जायेंगे। तब आप उसमें से पहले दिन के बोए हुए 30-40 पेड़ जड़ सहित उखाड़कर जड़ को काटकर फेंक दीजिए और बचे हुए डंठल और पत्तियों को धोकर साफ सिल पर थोड़े पानी के साथ पीसकर छानकर आधे गिलास के लगभग रस तैयार कीजिए ।
वह ताजा रस रोगी को रोज सवेरे पिला दीजिये। इसी प्रकार शाम को भी ताजा रस तैयार करके पिलाइये आप देखेंगे कि भयंकर रोग दस बीस दिन के बाद भागने लगेगे और दो-तीन महीने मंे वह मरणप्रायः प्राणी एकदम रोग मुक्त होकर पहले के समान हट्टा-कट्ठा स्वस्थ मनुष्य हो जायेगा। रस छानने में जो फूजला निकले उसे भी नमक वगैरह डालकर भोजन के साथ रोगी को खिलाएं तो बहुत अच्छा है। रस निकालने के झंझट से बचना चाहें तो आप उन पौधों को चाकू से महीन-महीन काटकर भोजन के साथ सलाद की तरह भी सेवन कर सकते हैं परन्तु उसके साथ कोई फल न खाइये। आप देखेंगे कि इस ईश्वरप्रदत्त अमृत के सामने सब दवाइयां बेकार हो जायेगी।

गेहूँ के पौधे 6-8 इंच से ज्यादा बड़े न होने पायें, तभी उन्हें काम मंे लिया जाय। इसी कारण गमले में या चीड़ के बक्स रखकर बारी-बारी आपको गेहूँ के दाने बोने पड़ेंगे। जैसे-जैसे गमले खाली होते जाएं वैसे-वैसे उनमें गेहूँ बोते चले जाइये। इस प्रकार यह जवारा घर में प्रायः बारहों मास उगाया जा सकता है।

सावधानियाँ:-

रस निकाल कर ज्यादा देर नहीं रखना चाहिए।
रस ताजा ही सेवन कर लेना चाहिए। घण्टा दो घण्टा रख छोड़ने से उसकी शक्ति घट जाती है और तीन-चार घण्टे बाद तो वह बिल्कुल व्यर्थ हो जाता है।
ग्रीन ग्रास एक-दो दिन हिफाजत से रक्खी जाएं तो विशेष हानि नहीं पहुँचती है।
रस लेने के पूर्व व बाद मंे एक घण्टे तक कोई अन्य आहार न लें
गमलों में रासायनिक खाद नहीं डाले।
रस में अदरक अथवा खाने के पान मिला सकते हैं इससे उसके स्वाद तथा गुण में वृद्धि हो जाती है।
रस में नींबू अथवा नमक नहीं मिलाना चाहिए।
रस धीरे-धीरे पीना चाहिए।
इसका सेवन करते समय सादा भोजन ही लेना चाहिए। तली हुई वस्तुएं नहीं खानी चाहिए।

तीन घण्टे मंे जवारे के रस के पोषक गुण समाप्त हो जाते हैं। शुरु मंे कइयों को उल्टी होंगी और दस्त लगेंगे तथा सर्दी मालूम पड़ेगी। यह सब रोग होने की निशानी है। सर्दीं, उल्टी या दस्त होने से शरीर में एकत्रित मल बाहर निकल जायेगा, इससे घबराने की जरुरत नहीं है।
स्वामी रामदेव ने इस रस के साथ नीम गिलोय व तुलसी के 20 पत्तों का रस मिलाने की बात कहीं है।
कैलिफोर्निंया विश्वविद्यालय की शोध से प्रकट हुआ कि जवारे के रस में पी फोर डी वन नामक ऐसा ऐन्जाइम है जो दोषी डी एन ए की मरम्मत करता है। रक्त शोधन, यकृत से विषैले रयासनों को निकालने व मलशोधन मंे इसका बहुत योगदान है।डाॅ. हेन्स मिलर क्लोराॅिफल को रक्त बनाने वाले प्राकृतिक परमाणु कहते है। लिट्राइल से कैंसर तक को ठीक करने वाले तत्वों का पता लगा है। कोशिकाओं के म्यूटेशन को रोकता है। अर्थात् कार्सिनोजेनिक रसायनों जैसे बेन्जोंपायरीन को कम करता है। इससे कैंसर वृद्धि रूकती है। चीन में लीवर कैंसर इससे ठीक हुए है।

लगभग एक किलो ताजा जवारा के रस से चैबीस किलो अन्य साग सब्जियों के समान पोषक तत्व पाये जाते है।
डाक्टर विगमोर ने अपनी प्रयोगशाला मंे हजारों असाध्य रोगियों पर इस जवारे के रस का प्रयोग किया है और वे कहती हैं कि उनमें से किसी एक मामले मंे भी उन्हें असफलता नहीं मिली है।

आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति

घृतकुमारी के प्रयोगor aelovera


घृतकुमारी के प्रयोग:
"1. जलना :- *शरीर के जले हुए स्थान पर ग्वारपाठे
का गूदा बांधने से फफोले नहीं उठते तथा तुरन्त ठंडक
पहुंचती है।
*ग्वारपाठे के पत्तों के ताजे रस का लेप करने से जले हुए
घाव भर जाते हैं।
*घी ग्वार के पत्ते को चीरकर इसके गूदे को निकालकर
त्वचा पर दिन में 2-3 बार लगाने से जलन दूर होकर ठंडक
मिलती है और घाव भी जल्दी ठीक हो जाता है।
*ग्वारपाठा के छिलके को उतारकर इसे पीस लें फिर
शरीर के जले हुए भाग पर लेप करें इससे जलन मिट जाती है
और जख्म भी भर जाता है।
*ग्वारपाठे के गूदे के चार भाग में दो भाग शहद मिलाकर
जले हुए भाग पर लगाने से आराम मिलता है।
*आग से जले हुए भाग पर ग्वारपाठे का गूदा लगाने से जलन
शांत हो जाती है और फफोले भी नहीं उठते हैं।
2. सिर दर्द :- *ग्वारपाठे का रस निकालकर उसमें गेहूं
का आटा मिलाकर उसकी 2 रोटी बनाकर सेंक लें। इसके
बाद रोटी को हाथ से दबाकर देशी घी में डाल दें। इसे
सुबह सूरज उगने से पहले इसे खाकर सो जाएं। इस प्रकार
5-7 दिनों तक लगतार इसका सेवन करने से
किसी भी प्रकार का सिर दर्द हो वह ठीक हो जाता है।
*सिर में दर्द होने पर ग्वारपाठे के गूदे में
थोड़ी मात्रा में दारुहरिद्रा का चूर्ण मिलाकर गर्म करें
और दर्द वालें स्थान पर इसे लगाकर पट्टी कर लें इससे
दर्द ठीक हो जाएगा।
3. गंजापन :- लाल रंग का ग्वारपाठा (जिसमें नारंगी और
कुछ लाल रंग के फूल लगते हैं) के गूदे को स्प्रिट में गलाकर
सिर पर लेप करने से बाल काले हो जाते हैं तथा गंजे सिर
पर बाल उगने लगते हैं।
4. कुत्ते के काटने पर :- ग्वारपाठे को एक ओर से छीलकर
इसके गूदे पर पिसा हुआ सेंधानमक डालें, फिर इसे कुत्ते के
काटे हुए स्थान पर लगा दें। इस प्रयोग को लगातार दिन
में 4 बार करने से लाभ मिलता है।
5. पेट के रोग :- *5 चम्मच ग्वारपाठे का ताजा रस, 2
चम्मच शहद और आधे नींबू का रस मिलाकर सुबह-शाम दिन
में पीने से सभी प्रकार के पेट के रोग ठीक हो जाते हैं।
*25 ग्राम ग्वारपाठे के ताजे रस, 12 ग्राम शहद और आधे
नींबू का रस मिलाकर दिन में 2 बार सुबह और शाम पीने से
पेट के हर प्रकार के रोग ठीक हो जाते है।
*ग्वारपाठा के गूदे को गर्म करके सेवन करने से पेट में गैस
बनने की शिकायत दूर हो जाती है।
*6 ग्राम ग्वारपाठा का गूदा, 6 ग्राम गाय का घी, 1
ग्राम हरीतकी का चूर्ण और 1 ग्राम सेंधानमक को एक
साथ मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से पेट में गैस बनने
की शिकायत दूर हो जाती है।
*ग्वारपाठा के पत्तों के दोनों ओर के जो कांटे लगे होते हैं
उसे अच्छी प्रकार साफ कर लें, फिर उसके छोटे-छोटे टुकड़े
काटकर एक बर्तन में डाल दें और इसमें आधा किलो नमक
डालकर मुंह बंद कर दें। इसके बाद इसे 2-3 दिन तक धूप में
रखें, बीच-बीच में इसे हिलाते रहें। तीन दिन बाद इसमें
100 ग्राम हल्दी, 60 ग्राम भुनी हींग, 300 ग्राम
अजवायन, 100 ग्राम शूंठी, 60 ग्राम कालीमिर्च, 100
ग्राम धनिया, 100 गाम सफेद जीरा, 50 ग्राम
लालमिर्च, 60 ग्राम पीपल, 50 ग्राम लौंग, 50 ग्राम
अकरकरा, 100 ग्राम कालाजीरा, 50 ग्राम
बड़ी इलायची, 50 ग्राम दालचीनी, 50 ग्राम सुहागा,
300 ग्राम राई को बारीक पीसकर डाल दें। रोगी के
शरीर की ताकत के अनुसार इसमें से 3 ग्राम से 6 ग्राम तक
की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से पेट के वात-कफ
संबन्धी सभी रोग ठीक हो जाते हैं।
*ग्वारपाठा के 10-20 जड़ों को कुचलकर उबालकर छान लें
फिर इस पर भूनी हुई हींग छिड़ककर सेवन करें इससे पेट
का दर्द ठीक हो जाता है।
*10 ग्राम ग्वारपाठा के गूदे का ताजा रस में 1 चम्मच
शहद और 1 चम्मच नींबू का रस मिलाकर सेवन करने से पेट के
रोगों में लाभ मिलता है।
*ग्वारपाठा के गूदे से पेट पर लेप करें इससे आंतों में जमा मल
गुदा से निकल जाएगा और पेट के अन्दर की गांठे गल
जाएंगी जिसके फलस्वरूप पेट में कब्ज बनने की समस्या दूर
हो जाएगी तथा पेट में दर्द होना भी बंद हो जाएगा।
*ग्वारपाठे की जड़ और थोड़ी-हींग को भूनकर पीस लें और
इसे पानी में मिलाकर पीने से पेट का दर्द समाप्त
हो जाता है।
6. अम्लपित्त :- ग्वारपाठे के 14 से 28 मिलीमीटर
पत्तों का रस दिन में 2 बार पीने से अम्लपित्त में लाभ
मिलता है तथा इसके कारण से होने वाला सिर दर्द ठीक
हो जाता है।
7. प्लीहोदर (तिल्ली के कारण होने वाला पेट
का दर्द) :- ग्वारपाठे के पत्तों के रस 14 से 28
मिलीलीटर की मात्रा को 1 से 3 ग्राम सरफोंका के
पंचांग (जड़, पत्ता, तना, फल और फूल) के चूर्ण के साथ दिन
में सुबह और शाम सेवन करने से प्लीहोदर के रोग में लाभ
मिलता है।
8. स्त्री रोग :- स्त्री रोग को ठीक करने के लिए
ग्वारपाठे के 14-28 मिलीलीटर पत्तों के रस
को आधा ग्राम भुनी हींग के साथ दिन में दो बार सेवन
करना चाहिए।
9. सूजन :- * ग्वारपाठा के पत्तों का रस में सफेद
जीरा और हल्दी को पीसकर मिला दें, इससे लेप बन जाएग।
इस लेप को दिन में 2-3 बार सूजन पर लगाने से लाभ
मिलता है।
*लगभग 10-10 ग्राम ग्वारपाठे के पत्ते और सफेद
जीरा को पीसकर सूजन वाले अंग पर लगाने से सूजन दूर
हो जाती है।
10. फोड़े-फुंसियां :-
*ग्वारपाठा का गूदा गर्म करके फोड़े-फुंसियों पर बांधे
इससे या तो वह बैठ जाएगी या फिर पककर फूट जाएगी।
जब फोड़े-फुन्सी जाएं तो इस पर ग्वारपाठा के गूदे में
हल्दी मिलाकर लगाए इसे घाव जल्दी ठीक हो जाएगा।
*ग्वारपाठे का गूदा निकालकर गर्म करके उसमें 2
चुटकी हल्दी मिला लें, फिर इसकों फोड़े पर लगाकर ऊपर
से पट्टी बांध दें। थोड़े ही समय में फोड़ा पककर फूट
जायेगा और उसका मवाद बाहर निकल जायेगा। मवाद
निकलने के बाद फोड़ा जल्दी ही ठीक हो जायेगा।
11. बवासीर :- *ग्वारपाठा के गूदे में थोड़ा पिसा हुआ
गेरू मिलाकर मस्सों पर बांधने से जलन, पीड़ा, दूर होकर
बवासीर के मस्सों से खून बहना बंद हो जाता है और आराम
मिलता है।
*खूनी बवासीर में 50 ग्राम ग्वारपाठा के गूदे में 2
ग्राम पिसा हुआ गेरू मिलाकर इसकी टिकिया बना लें। इस
टिकिया को रुई के फोहे पर फैलाकर बवासीर के स्थान पर
लंगोटी की तरह पट्टी बांध दें। इससे मस्सों में होने
वाली जलन तथा दर्द ठीक हो जाता है और मस्से सिकुड़कर
दब जाते हैं। यह प्रयोग खूनी बवासीर में
लाभकारी होता है"
12. हिचकी :- *2 चम्मच ग्वारपाठा का रस आधे चम्मच
सोंठ के चूर्ण के साथ सेवन करने से हिचकी में आराम
मिलता है।
*6 ग्राम ग्वारपाठे के रस में 1 ग्राम सोंठ का चूर्ण
मिलाकर पीने से हिचकी जल्द बंद हो जाती है।
13. मासिकधर्म ठीक प्रकार से न आना :- *ग्वारपाठा के
20 गूदे में 10 ग्राम पुराना गुड़ मिलाकर सेवन करें।
ऐसी मात्रा दिन में दो बार 3-4 दिनों तक सेवन करने से
महिलाओं का मासिकधर्म ठीक समय पर आने लगता है।
*10 ग्राम ग्वारपाठा के गूदे पर लगभग आधा ग्राम
पलाश का क्षार छिडककर दिन में दो बार सेवन करने से
मासिकधर्म सही समय पर आने लगता है।
14. पौष्टिक, बलवर्द्धक योग :- ग्वारपाठा के 2
पत्तों को चीरकर उसका सारा गूदा निकाल लें। उसमें नीम
गिलोय का 1 चम्मच चूर्ण मिलाकर रोजाना 1 बार सेवन
करते रहने से शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है।
15. कमर दर्द :- *20-25 ग्राम ग्वारपाठा के गूदे में
शहद और सोंठ का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम कुछ दिन तक
सेवन करने से कमर का दर्द ठीक हो जाता है।
*10 ग्राम ग्वारपाठे का गूदा, 50 ग्राम सोंठ, 4 लौंग,
50 ग्राम नागौरी असगंध इन सबको पीसकर
चटनी बना लें। 4 ग्राम चटनी रोजाना सुबह सेवन करें।
इससे कमर दर्द में आराम मिलेगा।
*20 ग्राम ग्वारपाठा के गूदे में 2 ग्राम शहद और सोंठ
का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से शीत लहर के कारण उत्पन्न
कमर दर्द से राहत मिलता है।
*गेहूं के आटे में ग्वारपाठा का गूदा इतना मिलाए
जितना आटे को गूंथने के लिए काफी हो, इसके बाद आटे
को गूंथकर रोटी बना लें। इस रोटी का चूर्ण बनाकर इसमें
चीनी और घी मिला दें और लड्डू बना लें। इस लड्डू का सेवन
करने से कमर का दर्द ठीक हो जाता है।
16. कान दर्द :- *ग्वारपाठे के रस को गर्म करके जिस
कान में दर्द हो, उससे दूसरी तरफ के कान में 2-2 बूंद डालने
से कानों का दर्द दूर हो जाता है।
*ग्वारपाठे के रस को गुनगुना करके कान में डालने से कान
का दर्द ठीक हो जाता है।
17. मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन) :- 50 ग्राम
ग्वारपाठे के गूदे में चीनी मिलाकर खाने से पेशाब करने में
जलन और दर्द की समस्या दूर हो जाती है।
18. बच्चों की कब्ज :- छोटे बच्चों की नाभि पर साबुन के
साथ ग्वारपाठे के
गूदे का लेप करने से दस्त साफ होते हैं और कब्ज की शिकायत
दूर हो जाती है।
19. उपदंश (फिरंग) :- *उपदंश के कारण से उत्पन्न
घावों पर ग्वारपाठा के गूदे का लेप लगाने से लाभ
मिलता है।
*ग्वारपाठे के 5 ग्राम रस में 5 ग्राम जीरे को पीसकर
लेप करने से उपदंश की बीमारी दूर होती है।
20. मधुमेह :- मधुमेह रोग में ग्वारपाठा का 5 ग्राम
गूदा लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग आधा ग्राम
गूडूची के रस के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है।
21. कामला (पीलिया) :- *कामला (पीलिया) के रोग में
ग्वारपाठा का 10-20 मिलीलीटर रस दिन में 2 से 3
बार पीने से पित्त नलिका का अवरोध दूर होकर लाभ
मिलता है। इस प्रयोग से आंखों का पीलापन और कब्ज
की शिकायत दूर हो जाती है। इसके रस को रोगी की नाक
में बूंद-बूंद करके डालने से नाक से निकलने वाले पीले रंग
का स्राव होना बंद हो जाता है।
*लगभग 3 से 6 ग्राम ग्वारपाठा गूदे को मट्ठा के साथ
सेवन करने से प्लीहावृद्धि (तिल्ली का बढ़ना),
यकृतवृद्धि (जिगर का बढ़ना), आध्यमानशूल (पेट में गैस बनने
के कारण दर्द), तथा अन्य पाचन संस्थान के रोगों के कारण
होने वाला पीलिया रोग ठीक हो जाता है तथा ये रोग
भी ठीक हो जाते हैं।
*ग्वारपाठा के पत्तों का गूदा निकाल दें और इसके बाद
जो छिलका बचे उसे मटकी में भर दें तथा फिर इसमें बराबर
मात्रा में नमक मिलाकर मटकी का मुंह बंद करके
कंडों की आग में रख दें। जब मटकी के अन्दर का द्रव्य जलकर
काला हो जाए तो उसे बारीक पीसकर शीशी में भरकर रख
दें। इसमें में कुछ मात्रा में सुबह तथा शाम को सेवन करने से
पीलिया रोग ठीक हो जाता है।"
22. जिगर की कमजोरी :- 20 ग्राम ग्वारपाठा के
पत्तों का रस तथा 10 ग्राम शहद
दोनों द्रव्यों को चीनी मिट्टी के बर्तन में मुंह बंद करके
1 सप्ताह तक धूप में रखें, इसके बाद इसे छान लें। इसमें से
10-20 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से यकृत
विकारों (जिगर के रोगों) को दूर करने में लाभ मिलता है।
इसकी अधिक मात्रा विरेचक होती है परन्तु उचित
मात्रा में सेवन करने से मल एवं वात की प्रवृत्ति, ठीक
होने लगती है। इसमें सेवन से यकृत (जिगर) मजबूत
हो जाता है और उसकी क्रिया सामान्य हो जाती है।
23. तिल्ली :- ग्वारपाठा के गूदे पर सुहागा को छिड़ककर
सेवन करने से तिल्ली कट जाती है।
24. जोड़ों के (गठिया) दर्द :- 10 ग्वारपाठा के
गूदा का सेवन रोजाना सुबह-शाम करने से गठिया रोग दूर
हो जाता है।
25. ज्वर :- 10 से 20 ग्राम ग्वारपाठा की जड़
का काढ़ा दिन में 3 बार पीने से ज्वर कम हो जाता है।
26. व्रण (घाव), चोट और गांठ :- *यदि घाव पका न
हो तो ग्वारपाठे के गूदे में थोड़ी सज्जीक्षार
तथा हरिद्रा चूर्ण मिलाकर लेप बना लें और इस लेप
को घाव पर लगा दें इससे घाव पककर फूट जाएगा और यह
जल्दी ही ठीक हो जाएगा।
*शरीर की किसी ग्रंथि में गांठ पड़ जाए तो वहां पर
ग्वारपाठा का गूदा में लहसुन और हल्दी मिलाकर इसे
हल्का गर्म करके गांठ पर लगाए इससे आराम मिलता है।
*गांठों की सूजन पर ग्वारपाठे के पत्ते को एक ओर से
छीलकर तथा उस पर थोड़ा सा हरिद्रा चूर्ण छिड़ककर
इसे हल्का गर्म करके गांठों की सूजन पर लगाएं इससे आराम
मिलेगा।
*चोट, मोच तथा कुचले जाने पर दर्द या सूजन
हो रहा हो तो ग्वारपाठे के गूदें में अफीम
तथा हल्दी का चूर्ण मिलाकर इसे सूजन तथा दर्द वाले
भाग पर लगा लें इससे लाभ मिलेगा।
*औरतों के स्तन पर चोट लगने के कारण या किसी अन्य
कारण से गांठ या सूजन हो गया हो तो ग्वारपाठे की जड़
का चूर्ण बनाकर उसमें थोड़ा सा हरिद्रा चूर्ण मिलाकर
इसे हलक गर्म करें और गांठ या सूजन वाले भाग पर लगाकर
पट्टी बांध लें इससे सूजन कम हो जाती है और दर्द भी ठीक
हो जाता है। इस तरह से उपचार दिन में 2-3 बार करते
रहना चाहिए।
*ग्वारपाठे की जड़ को घाव पर लगाने से हड्डी के घाव
और पुराने घाव ठीक हो जाते हैं।
*ग्वारपाठे के पत्ते का टुकड़ा करके इसके एक ओर
का छिल्का हटा दें और छिल्के हटे हुए भाग पर रसोत और
हल्दी छिड़ककर हल्का गर्म करें फिर इसे गांठ वाले भाग
पर बांध दें इससे लाभ मिलेगा।
27. पेट की गांठ :- *ग्वारपाठे के गूदे को पेट के ऊपर
बांधने से पेट की गांठ बैठ जाती है। कठोर पेट मुलायम
हो जाता है और आंतों में जमा हुआ मल बाहर निकल
जाता है।
*60 ग्राम ग्वारपाठे का गूदा और 60 ग्राम घी को एक
साथ मिलाकर उसमें 10 ग्राम हरीतकी चूर्ण तथा 10
ग्राम सेंधा नमक मिलाकर अच्छी तरह घोंट लें, फिर इसमें
से 10-15 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से पेट
की गांठे बैठ जाती है। वातज गुल्म और वातजन्य
रोगों की अवस्था में गुनगुने पानी के साथ प्रयोग करने से
लाभ मिलता है।
28. नासूर :- ग्वारपाठे के गूदे को आग में पकाकर नासूर पर
बांधने से नासूर या उसका फोड़ा पककर फूट जाता है और
रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है
29. दमा :- *ग्वारपाठा के 250 ग्राम पत्तों और 25
ग्राम सेंधानमक के चूर्ण को एक मिट्टी के बर्तन में
डालकर, बर्तन को आग पर रखें जब ये पदार्थ जलकर राख
बन जाएं तब इसे आग से उतार दें। इस राख को 2 ग्राम
की मात्रा में 10 ग्राम मुनक्का के साथ सेवन करने से
दमा (श्वास रोग) में अधिक लाभ मिलता है।
*ग्वारपाठे का 1 किलो गूदा लेकर किसी साफ कपड़े से
छान लें फिर इसे किसी कलईदार बर्तन में डालकर
धीमी आंच पर पकाएं, जब यह अधपका हो जाए तब इसमें 36
ग्राम लाहौरी नमक का बारीक चूर्ण मिला दें
तथा स्टील के चम्मच से अच्छी तरह से घोट दें। जब सब
पानी जलकर चूर्ण शेष रह जाये तो बर्तन को आग पर से
उतारकर ठंडा करें और इसका बारीक चूर्ण बना लें
तथा साफ बोतल में भर दें। इसमें से लगभग 1 ग्राम
का चौथा भाग से लगभग आधा ग्राम की मात्रा को शहद
के साथ प्रतिदिन सेवन करने से पुरानी से पुरानी खांसी,
काली खांसी और दमा ठीक हो जाता है।
30. खांसी :- *आधा चम्मच ग्वारपाठे का रस में चुटकी भर
पिसी हुई सोंठ मिलाकर शहद के साथ चाटे इससे
खांसी ठीक हो जाती है।
*ग्वारपाठा का गूदा और सेंधा नमक दोनों को जलाकर
राख बना लें और इसमें से 12 ग्राम की मात्रा में मुनक्का के
साथ सुबह-शाम सेवन करने से
खांसी तथा पुरानी खांसी ठीक हो जाती है तथा कफ
की समस्या भी दूर होती है।
31. आंखों के दर्द :- *सोते समय ग्वारपाठे के गूदे का रस
आंखों मे डालने से आंखों का दर्द दूर होता है।
*ग्वारपाठे के गूदे में हल्दी का चूर्ण मिलाकर गर्म करें और
सहनीय अवस्था में पैरों के तलुवों में इसे लगाकर पट्टी बांध
दें इससे आंखों दर्द ठीक हो जाता है।
*ग्वारपाठे का गूदा आंखों के ऊपर लगाने से
आंखों की लाली मिट जाती है, गर्मी दूर होती है। वायरल
कंजक्टीवाइटिस में भी इसका उपयोग लाभदायक होता है।
*ग्वारपाठे के 1 ग्राम गूदे में लगभग 1 ग्राम
का चौथा भाग अफीम मिलाकर पोटली बना लें और इसे
पानी में भिगोंकर आंखों पर रखने से और इसमें से 1-2 बूंद
आंखों के अन्दर डालने से आंखों का दर्द ठीक हो जाता है।
*ग्वारपाठे के गूदे पर हल्दी डालकर थोड़ा गर्म करके
आंखों में लगाने से आंखों का दर्द चला जाता है।
32. कब्ज :- *ग्वारपाठे का गूदा 10 ग्राम में 4
पित्त्त्तयां तुलसी और थोड़ी-सी सनाय
की पित्त्त्तयां पीसकर मिलाकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट
का सेवन खाना खाने के बाद करने से कब्ज की शिकायत
खत्म हो जाती है।
*20 ग्राम ग्वारपाठा में थोड़ी-सी मात्रा में
काला नमक मिलाकर सुबह और शाम खाली पेट खाने से कब्ज
दूर होती है।
*ग्वारपाठा का रस 10 से 20 ग्राम की मात्रा में हरड़
के साथ सेवन करने से मलअवरोध की परेशानी दूर होती है
जिसके फलस्वरूप कब्ज की समस्या दूर होती है।
33. नपुंसकता (नामर्दी) :- ग्वारपाठे का गूदा और गेहूं
का आटा बराबर मात्रा में लेकर इसमें घी मिला लें फिर
इसके 2 गुने की मात्रा में चीनी इसमें मिलाकर हलुआ
बना लें और इसका सेवन 7 दिनों तक करने से नपुंसकता दूर
होती है।
34. अग्निमान्द्यता (अपच) :- *ग्वारपाठा को पीसकर
रस निकाल लें और इसमें नौसादा को मिलाकर रख लें, फिर
इसके इसमें से आधा-आधा चम्मच रस को खुराक के रूप में सुबह
और शाम सेवन करें इससे अपच की शिकायत दूर हो जाती है।
*ग्वारपाठे का गूदा सेंधा नमक के साथ सेवन करने से आराम
मिलेगा।"
35. जिगर का रोग :- *3 ग्राम ग्वारपाठे के रस में
सेंधा नमक व समुंद्री नमक मिलाकर दिन में 2 बार सेवन
करने से यकृत के बीमारी ठीक हो जाती है।
*लगभग आधा ग्राम ग्वारपाठे के रस में लगभग 1 ग्राम
का चौथा भाग हल्दी का चूर्ण और सेंधा नमक लगभग 1
ग्राम का चौथा भाग मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से
जिगर का बढ़ना बंद हो जाता है।
*10-20 ग्राम ग्वारपाठे का रस को सेंधा और
हरिद्रा के साथ सेवन करने से यकृत के बीमारी ठीक
हो जाती है तथा इससे यकृत का बढ़ना, दर्द होना, और
पीलिया का होना आदि रोग भी ठीक हो जाते हैं।
*लगभग आधा ग्राम ग्वारपाठे का रस में लगभग 1 ग्राम
का चौथा भाग हल्दी के चूर्ण और लगभग 1 ग्राम
का चौथा भाग सेंधा नमक का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम
सेवन करने से बढ़ा हुआ यकृत ठीक हो जाता है।
*ग्वारपाठे के पत्ते का रस आधा चम्मच, हल्दी का चूर्ण
एक चुटकी तथा पिसा हुआ सेंधा नमक 1
चुटकी तीनों को मिलाकर पानी के साथ सुबह-शाम सेवन
करें इससे यकृत रोग में लाभ मिलेगा।"
36. जलोदर (पेट में पानी भर जाना) :- ग्वारपाठे के रस
में हल्दी का चूर्ण मिलाकर पीने से प्लीहा और भोजन के न
पचने वाली बीमारी में लाभ मिलता है
37. स्तनों की जलन और सूजन :- ग्वारपाठे के रस में
हरिद्रा के चूर्ण को मिलाकर इससे स्तनों पर लेप करें।
इससे स्तनों पर होने वाली सूजन और जलन दूर हो जाती है।
38. हाथ-पैर का फटना :- भोजन में ग्वारपाठे
की सब्जी खाने से हाथ-पैर नहीं फटते हैं।

10 Kitchen Ingredients That Work Like Medicines


10 Kitchen Ingredients That Work Like Medicines


1. Turmeric
Turmeric is one of the most common spices used in kitchen. It has got antiseptic, antibacterial, anti-inflammatory as well as antioxidant properties. You can use this spice to treat common cold, cough, joint inflammation,arthritis, bruised skin, acne, pimples as well as various stomach ailments. At the same time turmeric can also be used to prevent Alzheimer’s disease, to minimize liver damages caused due to excessive alcohol consumption or regular use of pain-killers and to disinfect minor cuts and burns. It has also been proved that due to its antibacterial properties, turmeric is beneficial in treating many types of cancer, most noticeably breast cancer, colon cancer, lung cancer and leukemia.
2. Ginger
Ginger has got anti-inflammatory, antispasmodic, antifungal, antiseptic, antibacterial and antiviral properties. At the same time it is also a powerful natural analgesic or painkiller. Ginger is also a good source of potassium, manganese, silicon, phosphorus, sodium, iron, zinc, calcium, beta-carotene and vitamins A, C, E, B-complex. You can use ginger to treat an upset stomach, indigestion, nausea, motion sickness, regular body pain, arthritis pain, cold, cough or any other respiratory health problem, fever, heartburnand menstrual cramps. It has also been proved that ginger can be used to control ovarian cancer cells due to its ability to slow down the growth of cancer cells.
3. Cinnamon
Cinnamon has got anti-oxidant, anti-diabetic, anti-septic, anti-inflammatory, carminative and anti-flatulent properties. At the same time this particular spice is also an excellent source of minerals such as potassium, calcium, manganese, iron, zinc and copper along with vitamin A, niacin, and pyridoxine. Cinnamon is often used in the treatment of common cold, flatulence, indigestion, heartburn, nausea, diarrhea, arthritis pain and painful menstrual periods. It has also been found that regular consumption of cinnamon can help people suffering from type II diabetes to control their sugar level. It also helps to lower cholesterol level and reduces the risk of various types of heart diseases.
4. Garlic
Garlic is often referred to as a super food due to its diaphoretic, diuretic, expectorant, stimulant, antibacterial, antifungal, antiviral, antifungal and antiseptic properties. In addition, garlic is also packed with vitamins and nutrients such as protein, potassium, calcium, zinc and many others. Garlic can be used in the treatment of asthma, hoarseness, cough, chronicbronchitis, ear infection, scratchy throat infection, flatulence, menstrual cramps, ringworm, stomach ache, colic, toothache, sinus, bug bites and indigestion. It even helps to lower cholesterol level and prevents strokes. Also this strong smelling herb reduces the risk of several types of cancer and heart diseases.
5. Clove
Clove has got antioxidant, anti-septic, anti-inflammatory, carminative and anti-flatulent properties. At the same time it is also high in vitamins, minerals and fiber. You can use clove in the treatment for various health conditions such as athlete’s foot, minor burns, bruises, malaria, cholera, flatulence, tooth ache, joint inflammation, oral ulcer, sore gums, loose motions, muscle ache, body pain, indigestion, nausea, gastric irritability andvomiting. Clove oil can be also used as an inhalant for various respiratory problems such as cold, cough, sinusitis, asthma, bronchitis and tuberculosis. Although clove is generally considered safe, it may cause allergic reactions in some individuals.
6. Cardamom
This aromatic spice is also known as the ‘queen of spices’. It has got carminative, anti-oxidant, therapeutic, antiseptic, antispasmodic, diuretic and expectorant properties. At the same time cardamom is a good source of minerals such as potassium, calcium, copper, iron and magnesium. Cardamom is used in the treatment of stomach cramps, indigestion, flatulence, stomach gas, asthma, bronchitis, heartburn, acidity, bad breath, mouth ulcer, nausea, urinary tract infection and various kinds of respiratory allergies. Also cardamom helps to increase appetite, reduce stress level and to ease muscle tension. Although there are no known side effects of cardamom, it should be avoided during pregnancy.
7. Cumin Seeds
Cumin seeds have got anti inflammatory, carminative, antioxidant and anti-flatulent properties. The seeds are an excellent source of dietary fiber along with various minerals such as iron, copper, calcium, potassium, manganese, selenium and zinc. Cumin seeds are used in the treatment of indigestion, flatulence, stomach pain, diarrhea, morning sickness, nausea, acidity, common cold, cough, fever, sore throat, renal colic, amnesia and insomnia. It also boosts the metabolic rate and facilitates the absorption of nutrients throughout the body. Recent research has revealed that cumin also supports healthy prenatal development in pregnant women and slows down the growth of breast and colon cancer cells.
8. Honey
Honey has got anti-viral, anti-fungal, antiseptic, anti-microbial and anti-parasitic properties. At the same time honey is also loaded with many essential vitamins and minerals like magnesium, potassium, calcium, sodium chlorine, calcium, copper, iron, manganese, sulphur, zinc and phosphate. Honey can be used in the treatment of cough, throat irritation, urinary tract infection, morning sickness, laryngitis, eczema, and stomach ulcer, canker sores, bleeding gums, minor wound, minor burn, skin infection and bed wetting. A great natural source of carbohydrate, honey can even instantly boost the performance, endurance and reduce muscle fatigue of athletes. It also reduces the risk of some cancers and heart disease. Raw honey is also used as a medication for issues related to male impotence and female infertility.
9. Onion
Onion has got outstanding anti-inflammatory, antiseptic, antibiotic, carminative and antimicrobial properties. It is also a very good source of vitamin C, B6, biotin, chromium, calcium, dietary fiber, folic acid and vitamin B1 and K. Onion is hugely effective in the treatment of pneumonia,chronic bronchitis, insect bite, asthma, hay fever, diabetes, atherosclerosis, stomach infections, nausea, diarrhea, common cold and cough. The diverse anti-cancer powers present in onion play a significant role in reducing the risk of various kinds of cancer. Also onion contains chromium, which assists in regulating blood sugar level amongst people who suffer from Type IIdiabetes.
10. Lemon
Lemon is known for its therapeutic, antioxidant and anti-cancer properties along with immune-boosting powers. It also has got many nourishing elements like vitamin C, vitamin B, phosphorous, proteins, and carbohydrates. Lemon has a multitude of medicinal uses and is often used in the treatment ofheadache, arthritis, pneumonia, minor cut, throat infections, indigestion,constipation, dental problems, fever, dandruff, internal bleeding, rheumatism, burns, overweight, respiratory disorders, cholera, kidney stone and high blood pressure. When consumed regularly, lemon also helps to prevent many dangerous diseases like stroke, cardiovascular diseases and various types of cancers

What is Mouth ulcers and its Home remedy cure


What is Mouth ulcers and its Home remedy cure?


Anyone who suffers from mouth ulcers knows how painful and irritating they can be. In severe cases multiple ulcers may appear and the discomfort can make talking and eating difficult. But what causes these little sores? And how can you get rid of them naturally?

An ulcer is an open sore that appears in the soft tissue of the mouth. There can be many reasons why ulcers may appear such as prescription drugs and infectious diseases such as thrush or herpes. But poor oral hygiene, accidental biting of the lip, tongue or cheek and constant rubbing against sharp misaligned teeth or braces are the main causes behind the annoying little sores. There are those who regularly get multiple mouth ulcers for no specific reason at all. In fact it is thought that around 20% of the American population suffers from what are known as aphthous ulcers. This type of ulcer may appear during times of stress or trauma and in some cases may be due to a vitamin and mineral deficiency.
The first sign of the sore may be a tingling, burning sensation inside the mouth. They can occur either singly or in clusters. They are usually white or yellow in color, surrounded by red halos. Usually they heal within 7 to 10 days. There are 3 types of ulcers:
• Minor ulcers
• Large ulcers
• Herpetiform ulcers (where one can have up to 100 very small painful ulcers)
Common Causes of Mouth ulcers
• Nutritional deficiencies such as iron, vitamins, especially B12 and C
• Poor dental hygiene
• Food allergies
• Stress
• Infections particularly herpes simplex
• Biting the cheek
• Hormonal imbalance
• Bowel disease
• Skin disease
Home Remedies for Mouth Ulcers
If your ulcers are mainly due to a poor diet there are some simple steps that you can take to prevent them. Eat more fruit and veggies and foods that are rich in vitamin B as these are thought to work wonders. Avoid eating hot and spicy foods as these can irritate your mouth and make you more prone to ulcers.
These are few effective home remedies/ tips for Mouth Ulcer
Tip 1:
Coconut oil is fast becoming known as a great home remedy for a number of things including curing mouth ulcers. Simply rub some of the oil directly on to your ulcers twice a day and you should notice a massive difference.
Grate some fresh coconut. Extract the milk and gargle with this 3-4 times a day.

Tip 2:

Keep 1 glass of chilled water and 1 glass of hot water ready at hand. Gargle alternately with hot and cold water.

Tip 3:

Boil 2 cups of water. Add 1 cup fenugreek leaves and remove. Cover and keep for sometime. Strain the water and gargle 2-3 times a day.

Tip 4:

Boil 1 tsp of coriander seeds in 1 cup of water. Remove when slightly warm gargle. Repeat 3-4 times a day.

Tip 5:

Chew on 5-6 tulsi (holy basil leaves) and sip some water. Repeat 5-6 times a day.

Tip 6:

Eating raw tomatoes helps rid mouth ulcers. Can also gargle with tomato juice 3-4 times a day.

Tip 7:

Mix 7 parts of sugar candy (mishri) with 1 part of camphor. Apply on the blister.

Tip 8:

Mix a pinch of turmeric powder to 1 tsp glycerine and apply.


Tip 9:
Add a teaspoon of honey to a glass of water and gargle.

Friday 26 April 2013

ऐसी स्त्रियां होती हैं सुंदर, मालामाल और पति के लिए भाग्यशाली

ऐसी स्त्रियां होती हैं सुंदर, मालामाल और पति के लिए भाग्यशाली
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में ग्रहों की स्थिति के अनुसार भी व्यक्ति का स्वभाव बनता है और भविष्य बनता है।
हमारे जन्म के समय ग्रहों की जो स्थिति रहती है उसी के आधार पर जीवन में सुख-दुख और सफलता या असफलता प्राप्त होती है।

पुरुष और स्त्रियों की कुंडली में ग्रह अलग-अलग फल देने वाले होते हैं। केतु स्त्री की कुंडली में किस प्रकार से फल देता है। यहां जानिए...
- यदि किसी लड़की की कुंडली में प्रथम भाव में केतु स्थित हो तो स्त्री रोग ग्रस्त और पति को तकलीफ देने वाली होती है, यदि उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो स्त्री पति और पुत्र का सुख प्राप्त करती है।

- जिन लड़कियों की कुंडली में द्वितीय भाव में केतु हो तो स्त्री गरीबों और परिवार वालों से विरोध रखने वाली होती है और यदि इस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो वह धनवान और परिवार के सुख प्राप्त करने वाली होती है।

- कुंडली के तृतीय भाव जिसे सहज भाव कहां जाता है उसमें केतु हो तो स्त्री धनवान और शत्रुओं पर जीत प्राप्त करने वाली होती है। ऐसी स्त्रियां संतान सुख को प्राप्त करने वाली होती है लेकिन अपने छोटे भाई का इसे सुख प्राप्त नहीं होता है।

- कुंडली का चतुर्थ भाव जो कि सुख का भाव होता है इसमें केतु हो तो स्त्री सदैव माता के सुख से वंचित होती है और उसे अपनी किशोरावस्था के दौरान तकलीफों का सामना करती है। पिता की आर्थिक स्थिति और संपत्ति क्षीण हो जाती है।

- जिन महिलाओं की कुंडली में पंचम भाव जो कि पुत्र भाव होता है उसमें केतु हो तो स्त्री को पुत्र का सौभाग्य प्राप्त होता है किंतु छोटे भाई-बहनों को सुख नहीं दे पाती है। ऐसी स्त्रियां कभी-कभी झगड़ालु प्रवृत्ति की हो जाती हैं। ये किसी भी कार्य को कुशलता से करती हैं।

- कुंडली का षष्ठम भाव जो कि रिपु भाव होता है इसमें केतु होने पर स्त्री को दुश्मन और बीमारियों से भय नहीं होता है। इनके पास भूमि, गौ और भैसों आदि की संपत्ति होती है। कभी-कभी इनका मन छोटा हो जाता है और इसी वजह से गलत निर्णय कर लेती हैं।

- कुंडली का सप्तम भाव जो कि पति का भाव होता है उसमें केतु हो तो स्त्री यात्रा प्रिय होती है। सदैव शत्रु और रोग से भयभीत रहने वाली होती हैं। कभी-कभी पति को कष्ट भी देती हैं। इनका स्वभाव अधिक खर्च करने का होता है और इसी वजह से ये धन का नाश करने वाली होती है।

- कुंडली में अष्टम भाव जो कि मोक्ष का कारक है, किसी स्त्री की कुंडली में यहां केतु हो तो स्त्री को कोई गुप्त रोग होने की संभावनाएं रहती हैं, अत: इन्हें स्वास्थ्य के संबंध में विशेष सावधानी रखनी चाहिए। इन रोगों के कारण ये स्त्रियां पति को कष्ट देने वाली होती है।

- जिन महिलाओं की कुंडली के नवम भाव में केतु हो तो वे दान-पुण्य करने वाली होती हैं। नवम भाव जो कि धर्म का स्थान है इसमें केतु हो तो स्त्री गुणवान पुत्र वाली, रोग और शत्रु से रहित, छोटी जाति वालों से धन प्राप्त करने वाली, व्रत, तप और दान-पुण्य धर्म करने में सदैव तैयार रहती है।

- कुंडली के दशम भाव जो कि कर्म भाव है यहां केतु होने पर स्त्री कष्ट युक्त और पिता के सुख से रहित होती है। यदि किसी स्त्री की राशि कन्या है उसकी कुंडली के दशम भाव में केतु हो तो वह हमेशा धन-धान्य व सुख वैभव प्राप्त होती है।

- कुंडली का ग्यारहवां भाव जो कि लाभ स्थान है इसमें केतु होने पर स्त्री को सभी कार्यों में धन लाभ प्राप्त होता है। उसे सौभाग्य प्राप्त होता है। वह मधुरवाणी वाली सुंदर और धर्म को जानने वाली होती है। ऐसी कन्याएं सभी कार्यों में दक्ष होती है।

- कुंडली का बाहरवां भाव जो कि व्यय स्थान होता है इसमें केतु होने पर स्त्री आंख और पैरों में बीमारी होने की संभावनाएं रहती हैं। ये स्त्रियां बिना वजह खर्च करने वाली और पति को कभी-कभी कष्ट देने वाली हो जाती हैं। इन्हें अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त हो जाती है।


" मां कामाख्‍या "

तुलसी का पौधा यूं ही हर घर-आंगन की शोभा नहीं बनता

तुलसी ...
तुलसी का पौधा यूं ही हर घर-आंगन की शोभा नहीं बनता। घरों तथा मंदिरों में तो इसका पौधा अनिवार्य माना जाता है। धार्मिक दृष्टि से तो इसकी उपयोगिता है ही, स्वास्थ्य रक्षक के रूप में भी यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

आज के जमाने में घरों में मनीप्लांट या अन्य सुन्दर सजावटी पौधे लगाये जाते हैं, वहीं तुलसी का पौधा भी जरूर नजर आता है। दरअसल, हम सभी जानते हैं कि तुलसी का पौधा लगा कर कई बीमारियों से बचा जा सकता है। इसके रख-रखाव में भी विशेष परिश्रम नहीं करनी पड़ती। इसके पौधे के पास जाने से इससे स्पर्श हुई हवा से ही कई परेशानियां दूर हो जाती हैं।

स्पर्श और गंध में जादू
इसकी गंध युक्त हवा जहां-जहां जाती है, वहां का वायुमण्डल शुद्ध हो जाता है। इसे दूषित पानी एवं गंदगी से बचाना जरूरी होता है। धार्मिक दृष्टि से तुलसी पर पानी चढ़ाना नित्य नेम का हिस्सा माना जाता है। विद्वानों का मत है कि जल चढ़ाते समय इसका स्पर्श और गंध रोग पैदा करने वाले जीवाणुओं को नष्ट करने में सक्षम है। वैसे तो इसकी कई जातियां हैं, लेकिन श्वेत और श्याम या रामा तुलसी और श्यामा तुलसी ही प्रमुख हैं। पहचान के लिए श्वेत के पत्ते तथा शाखाएं श्वेताय (हल्की सफेदी) तथा कृष्णा के कृष्णाय (हल्का कालापन) लिये होते हैं।

काले पत्ते वाली तुलसी
कुछ विज्ञान काले पत्ते वाली तुलसी को औषधीय गुणों में उत्तम मानते हैं तो कुछ दोनों को ही सामान्य गुण वाली मानते हैं। इसके पत्ते मूल, बीज, जड़ तथा इसकी लकड़ी सभी उपयोगी होती है। इसके पत्तों की रस की मात्र बड़ों के लिए दो तोला (लगभग तीन चम्मच) तथा बीजों का चूर्ण एक से दो ग्राम की मात्रा में लिया जाता है।

औषधीय गुणों में यह हृदय को बल देने वाली, भूख बढ़ाने वाली, वायु, कफ, खांसी-हिचकी, उल्टी, कुष्ठ (कोढ़), रक्त विकार, अपस्भार हिस्टीरीया और सभी प्रकार के बुखारों में उपयोगी है।

जीवाणुओं को नष्ट करता है
तुलसी में एक उड़नशील तेल होता है, जो हवा में मिलकर मलेरिया बुखार फैलाने वाले जीवाणुओं को नष्ट करता है। विद्वानों का मत है कि तुलसी के पत्तों के दो तोले रस में तीन माशे काली मिर्च का चूर्ण मिला कर पीने से मलेरिया में बहुत लाभ होता है।

और भी हैं औषधीय गुण
इसके पत्ते चाय के साथ या अनाज उबाल कर पिलाने से छाती की सर्दी में लाभ होता है। सर्दी के कारण जमा कफ बाहर निकल जाता है जिससे छाती के दर्द में आराम मिलता है।

बढ़े हुए कफ में इस का रस शहद में मिलाकर देना लाभकारी है। पुराने बुखार में इसके पत्तों का रस सारे शरीर पर मलने से लाभ होता है। आंतों में छिपे कीड़ों के लिये पत्तों का चूर्ण सेवन करना हितकर है। उल्टी में इसके पत्तों का रस और अदरख का रस मिला कर पिलाने से लाभ होता है। पेट साफ होता है।

दाद हो तो इसका रस लगाने से फायदा होता है। पुराना घाव हो तो इसके रस से घाव धोने से संक्रमण नहीं होता, उसमें कीड़े नहीं पड़ते, दुगर्न्ध दूर होती है। घाव भरता है।

इसका पाचांग फल-फूल पत्ते तना जड़ का चूर्ण बना कर नीबू के रस में घोल कर लगाने से दाद खाज एक्जिमा एवं अन्य चर्म रोगों में लाभकारी है।

शरीर के सफेद दाग, मुंह पर कील-मुहांसे, झाई पर इसका रस लगाना लाभकारी है। सांप काटे व्यक्ति को एक से दो मुट्ठी तुलसी के पत्ते चबवा दिये जाएं तो सांप का जहर मिट जाएगा। पत्ते खिलाने के साथ इसकी जड़ का चूर्ण मक्खन में मिला सांप काटी जगह पर लेप करना हितकर है। इसकी पहचान यह है कि लेप करते समय इसका रंग सफेद होगा लेकिन जैसे-जैसे जहर इस लेप से कम होगा, लेप का रंग काला होता जाएगा। तभी तुरन्त उस लेप को हटा दूसरा लेप लगा देना चाहिये। जब तक लेप का रंग काला होना बंद हो जाए तो समझना चाहिये ये जहर का असर खत्म हो गया।

बिच्छू या ततैया, बर्र आदि के डंक मारने पर तुलसी का रस लगाने से और पिलाने से दर्द दूर होता है।

खांसी, श्वास में तुलसी के पत्तों का रस वासा के पत्तों का रस एक से दो चम्मच मिला कर पीने से लाभ होता है। बल पौरुष बढ़ाने, शरीर को बलवान बनाने में तुलसी बीज का चूर्ण चमत्कारी है। यह बलवर्धक, शीघ्र पतन व नपुंसकता नाशक और पौष्टिक होता है। इसके सेवन से असमय वृद्धा अवस्था नहीं आती, शरीर बलवान चेहरा कान्तिमान होता है।

बच्चों के लिवर की कमजोरी में इसका काढ़ा पिलाना बहुत लाभकारी है। कान के दर्द में इसके पत्तों का रस गर्म कर कान में टपकाने से दर्द में चैन मिलता है।

इसकी मंजरी (फूल) सौंठ, प्याज रस और शहद मिलाकर चाटने से सूखी खांसी और दमा में लाभ होता है। इसे पत्तों का चूर्ण या मंजरी का चूर्ण सूंघने से जुकाम (सायनोसायटिस) नाक की दुर्गन्ध दूर होती है तथा मस्तक के कीड़े नष्ट होते हैं।

दांत दर्द में तुलसी के पत्ते तथा काली मिर्च साथ पीस कर गोली बना कर खाने से लाभ होता है। तुलसी के पत्ते और जीरा मिलाकर पीस कर शहद से लेने से मरोड़ और दस्त में लाभ होता है।

ग्वारपाठे (Aloe Vera) के प्रयोग:

ग्वारपाठे (Aloe Vera) के प्रयोग:

"1. जलना :- *शरीर के जले हुए स्थान पर ग्वारपाठे का गूदा बांधने से फफोले नहीं उठते तथा तुरन्त ठंडक पहुंचती है।
*ग्वारपाठे के पत्तों के ताजे रस का लेप करने से जले हुए घाव भर जाते हैं।
*घी ग्वार के पत्ते को चीरकर इसके गूदे को निकालकर त्वचा पर दिन में 2-3 बार लगाने से जलन दूर होकर ठंडक मिलती है और घाव भी जल्दी ठीक हो जाता है।
*ग्वारपाठा के छिलके को उतारकर इसे पीस लें फिर शरीर के जले हुए भाग पर लेप करें इससे जलन मिट जाती है और जख्म भी भर जाता है।
*ग्वारपाठे के गूदे के चार भाग में दो भाग शहद मिलाकर जले हुए भाग पर लगाने से आराम मिलता है।
*आग से जले हुए भाग पर ग्वारपाठे का गूदा लगाने से जलन शांत हो जाती है और फफोले भी नहीं उठते हैं।

2. सिर दर्द :- *ग्वारपाठे का रस निकालकर उसमें गेहूं का आटा मिलाकर उसकी 2 रोटी बनाकर सेंक लें। इसके बाद रोटी को हाथ से दबाकर देशी घी में डाल दें। इसे सुबह सूरज उगने से पहले इसे खाकर सो जाएं। इस प्रकार 5-7 दिनों तक लगतार इसका सेवन करने से किसी भी प्रकार का सिर दर्द हो वह ठीक हो जाता है।
*सिर में दर्द होने पर ग्वारपाठे के गूदे में थोड़ी मात्रा में दारुहरिद्रा का चूर्ण मिलाकर गर्म करें और दर्द वालें स्थान पर इसे लगाकर पट्टी कर लें इससे दर्द ठीक हो जाएगा।

3. गंजापन :- लाल रंग का ग्वारपाठा (जिसमें नारंगी और कुछ लाल रंग के फूल लगते हैं) के गूदे को स्प्रिट में गलाकर सिर पर लेप करने से बाल काले हो जाते हैं तथा गंजे सिर पर बाल उगने लगते हैं।

4. कुत्ते के काटने पर :- ग्वारपाठे को एक ओर से छीलकर इसके गूदे पर पिसा हुआ सेंधानमक डालें, फिर इसे कुत्ते के काटे हुए स्थान पर लगा दें। इस प्रयोग को लगातार दिन में 4 बार करने से लाभ मिलता है।

5. पेट के रोग :- *5 चम्मच ग्वारपाठे का ताजा रस, 2 चम्मच शहद और आधे नींबू का रस मिलाकर सुबह-शाम दिन में पीने से सभी प्रकार के पेट के रोग ठीक हो जाते हैं।
*25 ग्राम ग्वारपाठे के ताजे रस, 12 ग्राम शहद और आधे नींबू का रस मिलाकर दिन में 2 बार सुबह और शाम पीने से पेट के हर प्रकार के रोग ठीक हो जाते है।
*ग्वारपाठा के गूदे को गर्म करके सेवन करने से पेट में गैस बनने की शिकायत दूर हो जाती है।
*6 ग्राम ग्वारपाठा का गूदा, 6 ग्राम गाय का घी, 1 ग्राम हरीतकी का चूर्ण और 1 ग्राम सेंधानमक को एक साथ मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से पेट में गैस बनने की शिकायत दूर हो जाती है।
*ग्वारपाठा के पत्तों के दोनों ओर के जो कांटे लगे होते हैं उसे अच्छी प्रकार साफ कर लें, फिर उसके छोटे-छोटे टुकड़े काटकर एक बर्तन में डाल दें और इसमें आधा किलो नमक डालकर मुंह बंद कर दें। इसके बाद इसे 2-3 दिन तक धूप में रखें, बीच-बीच में इसे हिलाते रहें। तीन दिन बाद इसमें 100 ग्राम हल्दी, 60 ग्राम भुनी हींग, 300 ग्राम अजवायन, 100 ग्राम शूंठी, 60 ग्राम कालीमिर्च, 100 ग्राम धनिया, 100 गाम सफेद जीरा, 50 ग्राम लालमिर्च, 60 ग्राम पीपल, 50 ग्राम लौंग, 50 ग्राम अकरकरा, 100 ग्राम कालाजीरा, 50 ग्राम बड़ी इलायची, 50 ग्राम दालचीनी, 50 ग्राम सुहागा, 300 ग्राम राई को बारीक पीसकर डाल दें। रोगी के शरीर की ताकत के अनुसार इसमें से 3 ग्राम से 6 ग्राम तक की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से पेट के वात-कफ संबन्धी सभी रोग ठीक हो जाते हैं।
*ग्वारपाठा के 10-20 जड़ों को कुचलकर उबालकर छान लें फिर इस पर भूनी हुई हींग छिड़ककर सेवन करें इससे पेट का दर्द ठीक हो जाता है।
*10 ग्राम ग्वारपाठा के गूदे का ताजा रस में 1 चम्मच शहद और 1 चम्मच नींबू का रस मिलाकर सेवन करने से पेट के रोगों में लाभ मिलता है।
*ग्वारपाठा के गूदे से पेट पर लेप करें इससे आंतों में जमा मल गुदा से निकल जाएगा और पेट के अन्दर की गांठे गल जाएंगी जिसके फलस्वरूप पेट में कब्ज बनने की समस्या दूर हो जाएगी तथा पेट में दर्द होना भी बंद हो जाएगा।
*ग्वारपाठे की जड़ और थोड़ी-हींग को भूनकर पीस लें और इसे पानी में मिलाकर पीने से पेट का दर्द समाप्त हो जाता है।


6. अम्लपित्त :- ग्वारपाठे के 14 से 28 मिलीमीटर पत्तों का रस दिन में 2 बार पीने से अम्लपित्त में लाभ मिलता है तथा इसके कारण से होने वाला सिर दर्द ठीक हो जाता है।

7. प्लीहोदर (तिल्ली के कारण होने वाला पेट का दर्द) :- ग्वारपाठे के पत्तों के रस 14 से 28 मिलीलीटर की मात्रा को 1 से 3 ग्राम सरफोंका के पंचांग (जड़, पत्ता, तना, फल और फूल) के चूर्ण के साथ दिन में सुबह और शाम सेवन करने से प्लीहोदर के रोग में लाभ मिलता है।

8. स्त्री रोग :- स्त्री रोग को ठीक करने के लिए ग्वारपाठे के 14-28 मिलीलीटर पत्तों के रस को आधा ग्राम भुनी हींग के साथ दिन में दो बार सेवन करना चाहिए।

9. सूजन :- * ग्वारपाठा के पत्तों का रस में सफेद जीरा और हल्दी को पीसकर मिला दें, इससे लेप बन जाएग। इस लेप को दिन में 2-3 बार सूजन पर लगाने से लाभ मिलता है।
*लगभग 10-10 ग्राम ग्वारपाठे के पत्ते और सफेद जीरा को पीसकर सूजन वाले अंग पर लगाने से सूजन दूर हो जाती है।


10. फोड़े-फुंसियां :-
*ग्वारपाठा का गूदा गर्म करके फोड़े-फुंसियों पर बांधे इससे या तो वह बैठ जाएगी या फिर पककर फूट जाएगी। जब फोड़े-फुन्सी जाएं तो इस पर ग्वारपाठा के गूदे में हल्दी मिलाकर लगाए इसे घाव जल्दी ठीक हो जाएगा।
*ग्वारपाठे का गूदा निकालकर गर्म करके उसमें 2 चुटकी हल्दी मिला लें, फिर इसकों फोड़े पर लगाकर ऊपर से पट्टी बांध दें। थोड़े ही समय में फोड़ा पककर फूट जायेगा और उसका मवाद बाहर निकल जायेगा। मवाद निकलने के बाद फोड़ा जल्दी ही ठीक हो जायेगा।

11. बवासीर :- *ग्वारपाठा के गूदे में थोड़ा पिसा हुआ गेरू मिलाकर मस्सों पर बांधने से जलन, पीड़ा, दूर होकर बवासीर के मस्सों से खून बहना बंद हो जाता है और आराम मिलता है।
*खूनी बवासीर में 50 ग्राम ग्वारपाठा के गूदे में 2 ग्राम पिसा हुआ गेरू मिलाकर इसकी टिकिया बना लें। इस टिकिया को रुई के फोहे पर फैलाकर बवासीर के स्थान पर लंगोटी की तरह पट्टी बांध दें। इससे मस्सों में होने वाली जलन तथा दर्द ठीक हो जाता है और मस्से सिकुड़कर दब जाते हैं। यह प्रयोग खूनी बवासीर में लाभकारी होता है"

12. हिचकी :- *2 चम्मच ग्वारपाठा का रस आधे चम्मच सोंठ के चूर्ण के साथ सेवन करने से हिचकी में आराम मिलता है।
*6 ग्राम ग्वारपाठे के रस में 1 ग्राम सोंठ का चूर्ण मिलाकर पीने से हिचकी जल्द बंद हो जाती है।

13. मासिकधर्म ठीक प्रकार से न आना :- *ग्वारपाठा के 20 गूदे में 10 ग्राम पुराना गुड़ मिलाकर सेवन करें। ऐसी मात्रा दिन में दो बार 3-4 दिनों तक सेवन करने से महिलाओं का मासिकधर्म ठीक समय पर आने लगता है।
*10 ग्राम ग्वारपाठा के गूदे पर लगभग आधा ग्राम पलाश का क्षार छिडककर दिन में दो बार सेवन करने से मासिकधर्म सही समय पर आने लगता है।


14. पौष्टिक, बलवर्द्धक योग :- ग्वारपाठा के 2 पत्तों को चीरकर उसका सारा गूदा निकाल लें। उसमें नीम गिलोय का 1 चम्मच चूर्ण मिलाकर रोजाना 1 बार सेवन करते रहने से शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है।

15. कमर दर्द :- *20-25 ग्राम ग्वारपाठा के गूदे में शहद और सोंठ का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम कुछ दिन तक सेवन करने से कमर का दर्द ठीक हो जाता है।
*10 ग्राम ग्वारपाठे का गूदा, 50 ग्राम सोंठ, 4 लौंग, 50 ग्राम नागौरी असगंध इन सबको पीसकर चटनी बना लें। 4 ग्राम चटनी रोजाना सुबह सेवन करें। इससे कमर दर्द में आराम मिलेगा।
*20 ग्राम ग्वारपाठा के गूदे में 2 ग्राम शहद और सोंठ का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से शीत लहर के कारण उत्पन्न कमर दर्द से राहत मिलता है।
*गेहूं के आटे में ग्वारपाठा का गूदा इतना मिलाए जितना आटे को गूंथने के लिए काफी हो, इसके बाद आटे को गूंथकर रोटी बना लें। इस रोटी का चूर्ण बनाकर इसमें चीनी और घी मिला दें और लड्डू बना लें। इस लड्डू का सेवन करने से कमर का दर्द ठीक हो जाता है।

16. कान दर्द :- *ग्वारपाठे के रस को गर्म करके जिस कान में दर्द हो, उससे दूसरी तरफ के कान में 2-2 बूंद डालने से कानों का दर्द दूर हो जाता है।
*ग्वारपाठे के रस को गुनगुना करके कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।

17. मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन) :- 50 ग्राम ग्वारपाठे के गूदे में चीनी मिलाकर खाने से पेशाब करने में जलन और दर्द की समस्या दूर हो जाती है।

18. बच्चों की कब्ज :- छोटे बच्चों की नाभि पर साबुन के साथ ग्वारपाठे के
गूदे का लेप करने से दस्त साफ होते हैं और कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है।

19. उपदंश (फिरंग) :- *उपदंश के कारण से उत्पन्न घावों पर ग्वारपाठा के गूदे का लेप लगाने से लाभ मिलता है।
*ग्वारपाठे के 5 ग्राम रस में 5 ग्राम जीरे को पीसकर लेप करने से उपदंश की बीमारी दूर होती है।

20. मधुमेह :- मधुमेह रोग में ग्वारपाठा का 5 ग्राम गूदा लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग आधा ग्राम गूडूची के रस के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है।

21. कामला (पीलिया) :- *कामला (पीलिया) के रोग में ग्वारपाठा का 10-20 मिलीलीटर रस दिन में 2 से 3 बार पीने से पित्त नलिका का अवरोध दूर होकर लाभ मिलता है। इस प्रयोग से आंखों का पीलापन और कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है। इसके रस को रोगी की नाक में बूंद-बूंद करके डालने से नाक से निकलने वाले पीले रंग का स्राव होना बंद हो जाता है।
*लगभग 3 से 6 ग्राम ग्वारपाठा गूदे को मट्ठा के साथ सेवन करने से प्लीहावृद्धि (तिल्ली का बढ़ना), यकृतवृद्धि (जिगर का बढ़ना), आध्यमानशूल (पेट में गैस बनने के कारण दर्द), तथा अन्य पाचन संस्थान के रोगों के कारण होने वाला पीलिया रोग ठीक हो जाता है तथा ये रोग भी ठीक हो जाते हैं।
*ग्वारपाठा के पत्तों का गूदा निकाल दें और इसके बाद जो छिलका बचे उसे मटकी में भर दें तथा फिर इसमें बराबर मात्रा में नमक मिलाकर मटकी का मुंह बंद करके कंडों की आग में रख दें। जब मटकी के अन्दर का द्रव्य जलकर काला हो जाए तो उसे बारीक पीसकर शीशी में भरकर रख दें। इसमें में कुछ मात्रा में सुबह तथा शाम को सेवन करने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।"

22. जिगर की कमजोरी :- 20 ग्राम ग्वारपाठा के पत्तों का रस तथा 10 ग्राम शहद दोनों द्रव्यों को चीनी मिट्टी के बर्तन में मुंह बंद करके 1 सप्ताह तक धूप में रखें, इसके बाद इसे छान लें। इसमें से 10-20 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से यकृत विकारों (जिगर के रोगों) को दूर करने में लाभ मिलता है। इसकी अधिक मात्रा विरेचक होती है परन्तु उचित मात्रा में सेवन करने से मल एवं वात की प्रवृत्ति, ठीक होने लगती है। इसमें सेवन से यकृत (जिगर) मजबूत हो जाता है और उसकी क्रिया सामान्य हो जाती है।

23. तिल्ली :- ग्वारपाठा के गूदे पर सुहागा को छिड़ककर सेवन करने से तिल्ली कट जाती है।

24. जोड़ों के (गठिया) दर्द :- 10 ग्वारपाठा के गूदा का सेवन रोजाना सुबह-शाम करने से गठिया रोग दूर हो जाता है।

25. ज्वर :- 10 से 20 ग्राम ग्वारपाठा की जड़ का काढ़ा दिन में 3 बार पीने से ज्वर कम हो जाता है।

26. व्रण (घाव), चोट और गांठ :- *यदि घाव पका न हो तो ग्वारपाठे के गूदे में थोड़ी सज्जीक्षार तथा हरिद्रा चूर्ण मिलाकर लेप बना लें और इस लेप को घाव पर लगा दें इससे घाव पककर फूट जाएगा और यह जल्दी ही ठीक हो जाएगा।
*शरीर की किसी ग्रंथि में गांठ पड़ जाए तो वहां पर ग्वारपाठा का गूदा में लहसुन और हल्दी मिलाकर इसे हल्का गर्म करके गांठ पर लगाए इससे आराम मिलता है।
*गांठों की सूजन पर ग्वारपाठे के पत्ते को एक ओर से छीलकर तथा उस पर थोड़ा सा हरिद्रा चूर्ण छिड़ककर इसे हल्का गर्म करके गांठों की सूजन पर लगाएं इससे आराम मिलेगा।
*चोट, मोच तथा कुचले जाने पर दर्द या सूजन हो रहा हो तो ग्वारपाठे के गूदें में अफीम तथा हल्दी का चूर्ण मिलाकर इसे सूजन तथा दर्द वाले भाग पर लगा लें इससे लाभ मिलेगा।
*औरतों के स्तन पर चोट लगने के कारण या किसी अन्य कारण से गांठ या सूजन हो गया हो तो ग्वारपाठे की जड़ का चूर्ण बनाकर उसमें थोड़ा सा हरिद्रा चूर्ण मिलाकर इसे हलक गर्म करें और गांठ या सूजन वाले भाग पर लगाकर पट्टी बांध लें इससे सूजन कम हो जाती है और दर्द भी ठीक हो जाता है। इस तरह से उपचार दिन में 2-3 बार करते रहना चाहिए।
*ग्वारपाठे की जड़ को घाव पर लगाने से हड्डी के घाव और पुराने घाव ठीक हो जाते हैं।
*ग्वारपाठे के पत्ते का टुकड़ा करके इसके एक ओर का छिल्का हटा दें और छिल्के हटे हुए भाग पर रसोत और हल्दी छिड़ककर हल्का गर्म करें फिर इसे गांठ वाले भाग पर बांध दें इससे लाभ मिलेगा।

27. पेट की गांठ :- *ग्वारपाठे के गूदे को पेट के ऊपर बांधने से पेट की गांठ बैठ जाती है। कठोर पेट मुलायम हो जाता है और आंतों में जमा हुआ मल बाहर निकल जाता है।
*60 ग्राम ग्वारपाठे का गूदा और 60 ग्राम घी को एक साथ मिलाकर उसमें 10 ग्राम हरीतकी चूर्ण तथा 10 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर अच्छी तरह घोंट लें, फिर इसमें से 10-15 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से पेट की गांठे बैठ जाती है। वातज गुल्म और वातजन्य रोगों की अवस्था में गुनगुने पानी के साथ प्रयोग करने से लाभ मिलता है।

28. नासूर :- ग्वारपाठे के गूदे को आग में पकाकर नासूर पर बांधने से नासूर या उसका फोड़ा पककर फूट जाता है और रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है

29. दमा :- *ग्वारपाठा के 250 ग्राम पत्तों और 25 ग्राम सेंधानमक के चूर्ण को एक मिट्टी के बर्तन में डालकर, बर्तन को आग पर रखें जब ये पदार्थ जलकर राख बन जाएं तब इसे आग से उतार दें। इस राख को 2 ग्राम की मात्रा में 10 ग्राम मुनक्का के साथ सेवन करने से दमा (श्वास रोग) में अधिक लाभ मिलता है।
*ग्वारपाठे का 1 किलो गूदा लेकर किसी साफ कपड़े से छान लें फिर इसे किसी कलईदार बर्तन में डालकर धीमी आंच पर पकाएं, जब यह अधपका हो जाए तब इसमें 36 ग्राम लाहौरी नमक का बारीक चूर्ण मिला दें तथा स्टील के चम्मच से अच्छी तरह से घोट दें। जब सब पानी जलकर चूर्ण शेष रह जाये तो बर्तन को आग पर से उतारकर ठंडा करें और इसका बारीक चूर्ण बना लें तथा साफ बोतल में भर दें। इसमें से लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग आधा ग्राम की मात्रा को शहद के साथ प्रतिदिन सेवन करने से पुरानी से पुरानी खांसी, काली खांसी और दमा ठीक हो जाता है।

30. खांसी :- *आधा चम्मच ग्वारपाठे का रस में चुटकी भर पिसी हुई सोंठ मिलाकर शहद के साथ चाटे इससे खांसी ठीक हो जाती है।
*ग्वारपाठा का गूदा और सेंधा नमक दोनों को जलाकर राख बना लें और इसमें से 12 ग्राम की मात्रा में मुनक्का के साथ सुबह-शाम सेवन करने से खांसी तथा पुरानी खांसी ठीक हो जाती है तथा कफ की समस्या भी दूर होती है।

31. आंखों के दर्द :- *सोते समय ग्वारपाठे के गूदे का रस आंखों मे डालने से आंखों का दर्द दूर होता है।
*ग्वारपाठे के गूदे में हल्दी का चूर्ण मिलाकर गर्म करें और सहनीय अवस्था में पैरों के तलुवों में इसे लगाकर पट्टी बांध दें इससे आंखों दर्द ठीक हो जाता है।
*ग्वारपाठे का गूदा आंखों के ऊपर लगाने से आंखों की लाली मिट जाती है, गर्मी दूर होती है। वायरल कंजक्टीवाइटिस में भी इसका उपयोग लाभदायक होता है।
*ग्वारपाठे के 1 ग्राम गूदे में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग अफीम मिलाकर पोटली बना लें और इसे पानी में भिगोंकर आंखों पर रखने से और इसमें से 1-2 बूंद आंखों के अन्दर डालने से आंखों का दर्द ठीक हो जाता है।
*ग्वारपाठे के गूदे पर हल्दी डालकर थोड़ा गर्म करके आंखों में लगाने से आंखों का दर्द चला जाता है।

32. कब्ज :- *ग्वारपाठे का गूदा 10 ग्राम में 4 पित्त्त्तयां तुलसी और थोड़ी-सी सनाय की पित्त्त्तयां पीसकर मिलाकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट का सेवन खाना खाने के बाद करने से कब्ज की शिकायत खत्म हो जाती है।
*20 ग्राम ग्वारपाठा में थोड़ी-सी मात्रा में काला नमक मिलाकर सुबह और शाम खाली पेट खाने से कब्ज दूर होती है।
*ग्वारपाठा का रस 10 से 20 ग्राम की मात्रा में हरड़ के साथ सेवन करने से मलअवरोध की परेशानी दूर होती है जिसके फलस्वरूप कब्ज की समस्या दूर होती है।

33. नपुंसकता (नामर्दी) :- ग्वारपाठे का गूदा और गेहूं का आटा बराबर मात्रा में लेकर इसमें घी मिला लें फिर इसके 2 गुने की मात्रा में चीनी इसमें मिलाकर हलुआ बना लें और इसका सेवन 7 दिनों तक करने से नपुंसकता दूर होती है।

34. अग्निमान्द्यता (अपच) :- *ग्वारपाठा को पीसकर रस निकाल लें और इसमें नौसादा को मिलाकर रख लें, फिर इसके इसमें से आधा-आधा चम्मच रस को खुराक के रूप में सुबह और शाम सेवन करें इससे अपच की शिकायत दूर हो जाती है।
*ग्वारपाठे का गूदा सेंधा नमक के साथ सेवन करने से आराम मिलेगा।"

35. जिगर का रोग :- *3 ग्राम ग्वारपाठे के रस में सेंधा नमक व समुंद्री नमक मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करने से यकृत के बीमारी ठीक हो जाती है।
*लगभग आधा ग्राम ग्वारपाठे के रस में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग हल्दी का चूर्ण और सेंधा नमक लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से जिगर का बढ़ना बंद हो जाता है।
*10-20 ग्राम ग्वारपाठे का रस को सेंधा और हरिद्रा के साथ सेवन करने से यकृत के बीमारी ठीक हो जाती है तथा इससे यकृत का बढ़ना, दर्द होना, और पीलिया का होना आदि रोग भी ठीक हो जाते हैं।
*लगभग आधा ग्राम ग्वारपाठे का रस में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग हल्दी के चूर्ण और लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग सेंधा नमक का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से बढ़ा हुआ यकृत ठीक हो जाता है।
*ग्वारपाठे के पत्ते का रस आधा चम्मच, हल्दी का चूर्ण एक चुटकी तथा पिसा हुआ सेंधा नमक 1 चुटकी तीनों को मिलाकर पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करें इससे यकृत रोग में लाभ मिलेगा।"

36. जलोदर (पेट में पानी भर जाना) :- ग्वारपाठे के रस में हल्दी का चूर्ण मिलाकर पीने से प्लीहा और भोजन के न पचने वाली बीमारी में लाभ मिलता है

37. स्तनों की जलन और सूजन :- ग्वारपाठे के रस में हरिद्रा के चूर्ण को मिलाकर इससे स्तनों पर लेप करें। इससे स्तनों पर होने वाली सूजन और जलन दूर हो जाती है।

38. हाथ-पैर का फटना :- भोजन में ग्वारपाठे की सब्जी खाने से हाथ-पैर नहीं फटते हैं।

Tuesday 23 April 2013

गायत्री मन्त्र का वैज्ञानिक आधार

गायत्री मन्त्र का वैज्ञानिक आधार

गायत्री मन्त्र का अर्थ है उस परम सत्ता की महानता की स्तुति जिसने इस ब्रह्माण्ड को रचा है । यह मन्त्र उस ईश्वरीय सत्ता की स्तुति है जो इस संसार में ज्ञान और और जीवन का स्त्रोत है, जो अँधेरे से प्रकाश का पथ दिखाती है । गायत्री मंत्र लोकप्रिय यूनिवर्सल मंत्र के रूप में जाना जाता है. के रूप में मंत्र किसी भी धर्म या एक देश के लिए नहीं है, यह पूरे ब्रह्मांड के अंतर्गत आता है। यह अज्ञान को हटा कर ज्ञान प्राप्ति की स्तुति है । मन्त्र विज्ञान के ज्ञाता अच्छी तरह से जानते हैं कि शब्द, मुख के विभिन्न अंगों जैसे जिह्वा, गला, दांत, होठ और जिह्वा के मूलाधार की सहायता से उच्चारित होते हैं । शब्द उच्चारण के समय मुख की सूक्ष्म ग्रंथियों और तंत्रिकाओं में खिंचाव उत्पन्न होता है जो शरीर के विभिन्न अंगों से जुडी हुई हैं । योगी इस बात को भली प्रकार से जानते हैं कि मानव शरीर में संकड़ों दृश्य -अदृश्य ग्रंथियां होती है जिनमे अलग अलग प्रकार की अपरिमित उर्जा छिपी है । अतः मुख से उच्चारित हर अच्छे और बुरा शब्द का प्रभाव अपने ही शरीर पर पड़ता है । पवित्र वैदिक मंत्रो को मनुष्य के आत्मोत्थान के लिए इन्ही नाड़ियों पर पड़ने वाले प्रभाव के अनुसार रचा गया है । आर्य समाज का प्रचलित गायत्री मन्त्र है ” ॐ भूर्भुव: स्व:, तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि, धियो यो न: प्रचोदयात्”.

शरीर में षट्चक्र हैं जो सात उर्जा बिंदु हैं - मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपूर चक्र, अनाहद चक्र, विशुद्ध चक्र, आज्ञा चक्र एवं सहस्त्रार चक्र ये सभी सुषुम्ना नाड़ी से जुड़े हुए है । गायत्री मन्त्र में २४ अक्षर हैं जो शरीर की २४ अलग अलग ग्रंथियों को प्रभावित करते हैं और व्यक्ति का दिव्य प्रकाश से एकाकार होता है । गायत्री मन्त्र के उच्चारण से मानव शरीर के २४ बिन्दुओं पर एक सितार का सा कम्पन होता है जिनसे उत्पन्न ध्वनी तरंगे ब्रह्माण्ड में जाकर पुनः हमारे शरीर में लौटती है जिसका सुप्रभाव और अनुभूति दिव्य व अलौकिक है। ॐ की शब्द ध्वनी को ब्रह्म माना गया है । ॐ के उच्च्यारण की ध्वनी तरंगे संसार को, एवं ३ अन्य तरंगे सत, रज और तमोगुण क्रमशः ह्रीं श्रीं और क्लीं पर अपना प्रभाव डालती है इसके बाद इन तरंगों की कई गूढ़ शाखाये और उपशाखाएँ है जिन्हें बीज-मन्त्र कहते है ।

गायत्री मन्त्र के २४ अक्षरों का संयोजन और रचना सकारात्मक उर्जा और परम प्रभु को मानव शरीर से जोड़ने और आत्मा की शुद्धि और बल के लिए रचा गया है । गायत्री मन्त्र से निकली तरंगे ब्रह्माण्ड में जाकर बहुत से दिव्य और शक्तिशाली अणुओं और तत्वों को आकर्षित करके जोड़ देती हैं और फिर पुनः अपने उदगम पे लौट आती है जिससे मानव शरीर दिव्यता और परलौकिक सुख से भर जाता है । मन्त्र इस प्रकार ब्रह्माण्ड और मानव के मन को शुद्ध करते हैं। दिव्य गायत्री मन्त्र की वैदिक स्वर रचना के प्रभाव से जीवन में स्थायी सुख मिलता है और संसार में असुरी शक्तियों का विनाश होने लगता है । गायत्री मन्त्र जाप से ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति होती है । गायत्री मन्त्र से जब आध्यात्मिक और आतंरिक शक्तियों का संवर्धन होता है तो जीवन की समस्याए सुलझने लगती है वह सरल होने लगता है । हमारे शरीर में सात चक्र और 72000 नाड़ियाँ है, हर एक नाडी मुख से जुडी हुई है और मुख से निकला हुआ हर शब्द इन नाड़ियों पर प्रभाव डालता है । अतः आइये हम सब मिलकर वैदिक मंत्रो का उच्चारण करें .. उन्हें समझें और वेद विज्ञान को जाने । भारत वर्ष का नव-उत्कर्ष सुनिश्चित करें । गायत्री मंत्र ऋग्वेद के छंद 'तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्' 3.62.10 और यजुर्वेद के मंत्र ॐ भूर्भुवः स्वः से मिलकर बना है।

Friday 19 April 2013

आयुर्वेद से एसीडिटी का इलाज ::

आयुर्वेद से एसीडिटी का इलाज ::

• आंवला चूर्ण को एक महत्वपूर्ण औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। आपको एसीडिटी की शिकायत होने पर सुबह- शाम आंवले का चूर्ण लेना चाहिए।
• अदरक के सेवन से एसीडिटी से निजात मिल सकती हैं, इसके लिए आपको अदरक को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटकर गर्म पानी में उबालना चाहिए और फिर उसका पानी अदरक की चाय भी ले सकते हैं।
• मुलैठी का चूर्ण या फिर इसका काढ़ा भी आपको एसीडिटी से निजात दिलाएगा इतना ही नहीं गले की जलन भी इस काढ़े से ठीक हो सकती है।
• नीम की छाल को पीसकर उसका चूर्ण बनाकर पानी से लेने से एसीडिटी से निजात मिलती है। इतना ही नहीं यदि आप चूर्ण का सेवन नहीं करना चाहते तो रात को पानी में नीम की छाल भिगो दें और सुबह इसका पानी पीएं आपको इससे निजात मिलेगी।
• मुनक्का या गुलकंद के सेवन से भी एसीडिटी से निजात पा सकते हैं, इसके लिए आप मुनक्का को दूध में उबालकर ले सकते हैं या फिर आप गुलकंद के बजाय मुनक्का भी दूध के साथ ले सकते हैं।
• त्रि‍फला चूर्ण के सेवन से आपको एसीडिटी से छुटकारा मिलेगा, इसके लिए आपको चाहिए कि आप पानी के साथ त्रि‍फला चूर्ण लें या फिर आप दूध के साथ भी त्रि‍फला ले सकते हैं।
हरड: यह पेट की एसिडिटी और सीने की जलन को ठीक करता है ।
• लहसुन: पेट की सभी बीमारियों के उपचार के लिए लहसून रामबाण का काम करता है।
• मेथी: मेथी के पत्ते पेट की जलन दिस्पेप्सिया के उपचार में सहायक सिद्ध होते हैं।
• सौंफ:सौंफ भी पेट की जलन को ठीक करने में सहायक सिद्ध होती है। यह एक तरह की सौम्य रेचक होती है और शिशुओं और बच्चों की पाचन और एसिडिटी से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए भी मदद करती है।

• दूध के नियमित सेवन से आप एसीडिटी से निजात पा सकते हैं, इसके साथ ही आपको चाहिए कि आप चौलाई, करेला, धनिया, अनार, केला इत्यादि फलों का सेवन नियमित रूप से करें।
• शंख भस्म, सूतशेखर रस, कामदुधा रस, धात्री लौह, प्रवाल पिष्टी इत्यादि औषधियों को मिलाकर आपको भोजन के बाद पानी के साथ लेना चाहिए।
• इसके अलावा आप अश्वगंधा, बबूना , चन्दन, चिरायता, इलायची, अहरड, लहसुन, मेथी, सौंफ इत्यादि के सेवन से भी एसीडिटी की समस्या से निजात पा सकते हैं।

एसीडिटी दूर करने के अन्य उपाय
• अधिक मात्रा में पानी पीना
• पपीता खाएं
• दही और ककड़ी खाएं
• गाजर, पत्तागोभी, बथुआ, लौकी इत्यातदि को मिक्सत करके जूस लें।
• पानी में नींबू और मिश्री मिलाकर दोपहर के खाने से पहले लें।
• तनावमुक्त रहें और मानसिक रूप से स्वस्थ रहें।
• नियमित रूप से व्यायाम करें।
• दोपहर और रात के खाने के बीच सही अंतराल रखें।
• नियमित रूप से पुदीने के रस का सेवन करें ।
• तुलसी के पत्ते एसिडिटी और मतली से काफी हद तक राहत दिलाते हैं।
• नारियल पानी का सेवन अधिक करें।


एसीडिटी के कारण
• नियमित रूप से चटपटा मसालेदार और जंकफूड का सेवन
• अधिक एल्‍‍कोहल और नशीले पदार्थों का सेवन
• लंबे समय तक दवाईयों का सेवन
• शरीर में गर्मी बढ़-बढ़ जाना
• बहुत देर रात भोजन करना
• भोजन के बाद भी कुछ न कुछ खाना या लंबे समय तक भूखे रहकर एकदम बहुत सारा खाना खाना


एसीडिटी के लक्षण
• एसीडिटी के तुरंत बाद पेट में जलन होने लगती है।
• कड़वी और खट्टी डकारें आना
• लगातार गैस बनना और सिर दर्द की शिकायत
• उल्टी होने का अहसास और खाने का बाहर आने का अहसास होना
• थकान और भारीपन महसूस होना

Sunday 14 April 2013

महर्षि पतंजलि का अष्टांग-योग

महर्षि पतंजलि का अष्टांग-योग


अगर हम योग की बात करें तो सबसे पहले जो नाम मस्तिस्क में उभरता है वो हैं स्वामी रामदेवजी। आज के समय में इन्होने योग को समूचे विश्व में फैला दिया है। लोगों में योग के प्रति जो लगाव पैदा किया है उसका सारा श्रेय उन्हें जाता है। उन्होंने जब भी लोगों को योग सिखाया हमेशा ही यह बात कही की -"यह ज्ञान हमारे ऋषियों ने हमें दिया है, हमें इसका अनुपालन तथा अनुप्रयोग अपने जीवन में करना चाहिए।"
स्वामी रामदेवजी 




           जिस ऋषि ने इस योग विज्ञान की धारा को प्रथम बार जनमानस तक पहुँचाने का काम किया उनका नाम है – महर्षि पतंजलि 
महर्षि पतंजलि
 

महर्षि पतंजलि ने योग के नियमों को सुत्रवत संकलित कर योगदर्शन नामक ग्रन्थ संसार को दिया है। जिसमे उन्होंने योग के अन्य प्रकल्पों के साथ-साथ अष्टांग योग का विस्तार से विवरण किया है। अष्टांग-योग मूल रूप से संस्कृत में लिखी गयी है। कालांतर में इसका बहुत सारे भाषायों में अनुवाद किया गया है ताकि यह ज्ञान को सम्पूर्ण जगत में फैलाया जा सके। बहुत लोग इसको धार्मिक ग्रंथ मानते हैं लेकिन मूलतः यह किसी देवता पर आधारित नहीं है। लेकिन यह शारीरिक योग मुद्राओं का शास्त्र भी नहीं है। यह तो आत्मा और परमात्मा के योग अथवा एकत्व के विषय में है तथा उसको प्राप्त करने के नियमों व उपायों के बारे में है।
  
महर्षि पतंजलि  ने योग की परिभाषा देते हुए इसे  "चित्त की वृत्तियों का निरोधक" कहा है। इसमें उन्होंने पूर्ण कल्याण तथा शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धि के लिए आठ अंगों वाले योग का एक मार्ग विस्तार से बताया है। अष्टांग, आठ अंगों वाले, योग को आठ अलग-अलग चरणों वाला मार्ग नहीं समझना चाहिए; यह आठ आयामों वाला मार्ग है जिसमें आठों आयामों का अभ्यास एक साथ किया जाता है। योग के ये आठ अंग हैं:

               १. यम
               २. नियम
               ३. आसन
               ४. प्राणायाम
               ५. प्रत्याहार
               ६. धारणा
               ७. ध्यान
               ८. समाधि
   
. यम : पाच सामाजिक नैतिकता
() अहिंसा - शब्दों से, विचारों से और कर्मों से किसी को हानि नहीं पहुँचाना
() सत्य - विचारों में सत्यता, परम-सत्य में स्थित रहना
() अस्तेय - चोर-प्रवृति का न होना
() ब्रह्मचर्य - दो अर्थ हैं:
चेतना को ब्रह्म के ज्ञान में स्थिर करना
सभी इन्द्रिय-जनित सुखों में संयम बरतना
() अपरिग्रह - आवश्यकता से अधिक संचय नहीं करना और दूसरों की वस्तुओं की इच्छा नहीं करना


. नियम: पाँच व्यक्तिगत नैतिकता

() शौच - शरीर और मन की शुद्धि
() संतोष - संतुष्ट और प्रसन्न रहना
() तप - स्वयं से अनुशाषित रहना
() स्वाध्याय - आत्मचिंतन करना
() इश्वर-प्रणिधान - इश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण, पूर्ण श्रद्धा

नियम का अर्थ है पवित्रता। महर्षि पतंजलि के योग सूत्र का दूसरा चरण नियम है। पहला चरण यम जहां मन को शांति देता है, वहीं दूसरा चरण नियम हमें पवित्र बताता है। योग मार्ग पर चलने के लिए आत्मशांति के साथ मन, कर्म, वचन की पवित्रता भी आवश्यक है। नियम के पालन से हमारे आचरण, विचार और व्यवहार पवित्र होते हैं।

महर्षि पातंजलि के योग सूत्र में नियम के पांच अंग बताए गए हैं- शौचसन्तोषतप: स्वाध्यायेश्वर प्रमिधानानि नियमा:(योगदर्शन- 2/३२) अर्थात- पवित्रता, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर की भक्ति यही नियम है। 
 
योग मार्ग की सिद्धि के लिए हमारे आचार-विचार पवित्र होना चाहिए। शरीर और विचारों की शुद्धि से संतोष का गुण आता है। तभी हम शास्त्रों के ज्ञान से ईश्वर की भक्ति की साधना में सफल हो सकते हैं। योग मार्ग से ईश्वर को प्राप्त करने की दिशा में नियम की यह अवस्था भी आवश्यक योग्यता है।
पवित्रता- धर्म क्षेत्र में पवित्रता का मतलब सभी तरह की शुद्धता से है। जैसे शरीर की शुद्धता स्नान से, व्यवहार और आचरण की शुद्धता त्याग से, सही तरीके से कमाए धन से प्राप्त सात्विक भोजन से आहार की शुद्धता रहती है। इसी तरह दुगरुणों से बचकर हम मन को शुद्ध रखते हैं। घमंड, ममता, राग-द्वेष, ईष्र्या, भय, काम-क्रोध आदि दुगरुण हैं।
संतोष- संतोष का अर्थ है हर स्थिति में प्रसन्न रहना। दु:ख हो या सुख, लाभ हो या हानि, मान हो या अपमान, कैसी भी परिस्थिति हो, हमें समान रूप से प्रसन्न रहना चाहिए। तप- तप का मतलब है लगन। अपने लक्ष्य को पाने के लिए संयमपूर्वक जीना।
व्रत-उपवास करना तप कहलाता है, जिनसे हमारे अंदर लगन पैदा होती है।
स्वाध्याय- स्वाध्याय का अर्थ है हम शास्त्रों के अध्ययन से ज्ञान प्राप्त करें तथा जप, स्त्रोतपाठ आदि से ईश्वर का स्मरण करें। ईश्वर प्रणिधान- ईश्वर-प्रणिधान का मतलब है हम ईश्वर के अनुकूल ही कर्म करें। अर्थात हमारा प्रत्येक कार्य ईश्वर के लिए और ईश्वर के अनुकूल ही हो।

 
. आसन: योगासनों द्वारा शरीरिक नियंत्रण

योगासन बहुत सारे हैं। जैसे -- चक्रासन, भुजङ्गासन, धनुरासन, गर्भासन, गरुडासन, गोमुखासन, हलासन, मकरासन, मत्स्यासन, पद्मासन, पश्चिमोत्तानासन, सर्वाङ्गासिद्धासन, सिंहासन, शीर्षासन, सुखासन, ताडासन, उड्डीयानबन्ध, वज्रासन, पवनमुक्तासन, कटिपिण्डमर्दनासन, अर्धमत्स्येन्द्रासन, योगमुद्रासन, गोरक्षासन या भद्रासन, मयूरासन, सुप्तवज्रासन, शवासन इत्यादि। इस जगह पर कुछ आसनों को सचित्र दिखाया गया है।

 
. प्राणायाम: श्वास-लेने सम्बन्धी खास तकनीकों द्वारा प्राण पर नियंत्रण
प्राणायाम भी बहुत सारे हैं। यहाँ कुछ प्रचलित के नाम लिख रहा हूँ। भ्रष्टिका प्राणायाम, कपालभाति प्राणायाम, बाह्य प्राणायाम, अनुलोम-विलोम प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम, उद्गीथ प्राणायाम इत्यादि।


. प्रत्याहार: इन्द्रियों को अंतर्मुखी करना 
प्रत्याहार योग का पांचवां चरण है। योग मार्ग का साधक जब यम (मन के संयम), नियम (शारीरिक संयम) रखकर एक आसन में स्थिर बैठकर अपने वायु रूप प्राण पर नियंत्रण सीखता है, तब उसके विवेक को ढंकने वाले अज्ञान का अंत होता है। तब जाकर मन प्रत्याहार और धारणा के लिए तैयार होता है। चेतना, शरीर और मन से ऊपर उठकर अपने स्वरूप में रुक जाने की स्थिति है प्रत्याहार। प्राणायाम तक योग साधना आंखों से दृष्टिगोचर होती है।
प्रत्याहार से साधना का रूपांतरण होता है और साधना सूक्ष्मतर होकर मानसिक हो जाती है। प्रत्याहार का अर्थ है- एक ओर आहरण यानि खींचना। प्रश्न उठता है किसका खींचा जाना? मन का। योग दर्शन के अनुसार मन इंद्रियों के माध्यम से जगत के भोगों के पीछे दौड़ता है। बहिर्गति को रोक उसे इंद्रियों के अधीन से मुक्त करना, भीतर की ओर खींचना प्रत्याहार है।

स्वामी विवेकानंद ने प्रत्याहार की साधना का सरल मार्ग बताया है। वे कहते हैं मन को संयत करने के लिए- -कुछ समय चुपचाप बैठें और मन को उसके अनुसार चलने दें। मन में विचारों की हलचल होगी, बुरी भावनाएं प्रकट होंगी। सोए संस्कार जाग्रत होंगे। उनसे विचलित न होकर उन्हें देखते रहें। धैर्यपूर्वक अपना अभ्यास करते रहें। धीरे-धीरे मन के विकार कम होंगे और एक दिन मन स्थिर हो जाएगा तथा उसका इंद्रियों से संबंध टूट जाएगा। 
 
. धारणा: एकाग्रचित्त होना 
 
धारणा अष्टांग योग का छठा चरण है। इससे पहले पांच चरण योग में बाहरी साधन माने गए हैं। इसके बाद सातवें चरण में ध्यान और आठवें में समाधि की अवस्था प्राप्त होती है। धारणा का अर्थ धारणा शब्द ‘धृ’ धातु से बना है। इसका अर्थ होता है संभालना, थामना या सहारा देना। योग दर्शन के अनुसार- देशबन्धश्चित्तस्य धारणा। अर्थात- किसी स्थान (मन के भीतर या बाहर) विशेष पर चित्त को स्थिर करने का नाम धारणा है। स्थिर हुए चित्त को एक ‘स्थान’ पर रोक लेना ही धारणा है।

धारणा में चित्त को स्थिर होने के लिए एक स्थान दिया जाता है। योगी मुख्यत: हृदय के बीच में, मस्तिष्क में और सुषुम्ना नाड़ी के विभिन्न चक्रों पर मन की धारणा करता है। हृदय में धारणा:- योगी अपने हृदय में एक उज्‍जवल आलोक की भावना कर चित्त को वहां स्थित करते हैं। मस्तिष्क में धारणा:- कुछ योगी मस्तिष्क में सहस्र (हजार) दल के कमल पर धारणा करते हैं। सुषुम्ना नाड़ी के विभिन्न चक्रों पर धारणा:- योग शास्त्र के अनुसार मेरुदंड के मूल में मूलाधार से मस्तिष्क के बीच में सहस्रार तक सुषुम्ना नाड़ी होती है। इसके भीतर स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध और आज्ञा जैसे ऐसे चक्र होते हैं। योगी सुषुम्ना नाड़ी पर चक्र के देखते हुए चित्त को लगाता है।

धारणा धैर्य की स्थिति है। स्वामी विवेकानंद इसकी उपमा प्रचलित किंवदंती से देते हैं। सीप स्वाति नक्षत्र के जल की बूंद धारण कर गहरे समुद्र में चली जाती है और परिणामस्वरूप मोती बनता है।
धारणा सिद्ध होने पर योगी को कई लक्षण प्रकट होने लगते हैं -- 
 
. देह स्वस्थ होती है।
. गले का स्वर मधुर होता है।
. योगी की हिंसा भावना नष्ट हो जाती है।
. योगी को मानसिक शांति और विवेक प्राप्त होता है।
. आध्यात्मिक अनुभूतियां जैसे प्रकाश दिखता, घंटे की ध्वनि सुनाई देना आरंभ होता है, इत्यादि।
  ७. ध्यान: निरंतर ध्यान

योग साधना का सातवां चरण है ध्यान। योगी प्रत्याहार से इंद्रियों को चित्त में स्थिर करता है और धारणा द्वारा उसे एक स्थान पर बांध लेता है। इसके बाद ध्यान की स्थिति आती है। धारणा की निरंतरता ही ध्यान है। ध्यान की उपमा तेल की धारा से की गई है। जब वृत्ति समान रूप से अविच्छिन्न प्रवाहित हो यानि बीच में कोई दूसरी वृत्ति ना आए उस स्थिति को ध्यान कहते हैं। पांतजलि योग सूत्र द्वारा इसे स्पष्ट करते हुए कहते हैं- तत्र प्रत्ययैकतानसा ध्यानम्, अर्थात- चित्त (वस्तु विषयक ज्ञान) निरंतर रूप से प्रवाहित होते रहने पर उसे ध्यान कहते हैं।
अष्टांग योग में ध्यान एक खास जीवन शैली का अंग है। आज के प्रचलित तरीकों से अलग यह ध्यान एक लंबी साधना पद्धति की चरम अनुभूति का अंग है। यह मन की सूक्ष्म स्थिति है, जहां जाग्रतिपूर्वक एक वृत्ति को प्रवाह में रहना होता है। धारण और ध्यान से प्राप्त एकाग्रता चेतना को अहंकार से मुक्त करती है। सर्वत्र चेतनता का पूर्ण बोध समाधि बन जाती है। 
 
. समाधि: आत्मा से जुड़ना: शब्दों से परे परम-चैतन्य की अवस्था

अष्टांग योग की उच्चतम सोपान समाधि है। यह चेतना का वह स्तर है, जहां मनुष्य पूर्ण मुक्ति का अनुभव करता है। योग शास्त्र के अनुसार ध्यान की सिद्धि होना ही समाधि है।
पातंजलि योगसूत्र में कहा गया है- तदेवार्थमात्र निर्भासं स्वरूपशून्यमिव समाधि:। अर्थात - वह ध्यान ही समाधि है जब उसमें ध्येय अर्थमात्र से भाषित होता है और ध्यान का स्वरूप शून्य जैसा हो जाता है। यानि ध्याता (योगी), ध्यान (प्रक्रिया) तथा ध्येय (ध्यान का लक्ष्य) इन तीनों में एकता-सी होती है। समाधि अनुभूति की अवस्था है। वह शब्द, विचार व दर्शन सबसे परे है।
समाधि युक्ति-तर्क से परे एक अतिचेतन का अनुभव है। इस स्थिति में मन उन गूढ़ विषयों का भी ज्ञान प्राप्त कर लेता है, जो साधारण अवस्था में बुद्धि द्वारा प्राप्त नहीं होते। समाधि और नींद में हमें एक जैसी अवस्था प्रतीत होती है, दोनों में हमारा (बाह्य) स्वरूप सुप्त हो जाता है लेकिन स्वामी विवेकानंद स्पष्ट करते हैं ‘जब कोई गहरी नींद में सोया रहता है, तब वह ज्ञान या चेतन की निम्न भूमि में चला जाता है। नींद से उठने पर वह पहले जैसे ही रहता है। उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता। किंतु जब मनुष्य समाधिस्थ होता है तो समाधि प्राप्त करने के पहले यदि वह महामूर्ख रहा हो, अज्ञानी रहा हो तो समाधि से वह महाज्ञानी होकर व्युत्थित होता है।’