Friday 26 April 2013

ऐसी स्त्रियां होती हैं सुंदर, मालामाल और पति के लिए भाग्यशाली

ऐसी स्त्रियां होती हैं सुंदर, मालामाल और पति के लिए भाग्यशाली
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में ग्रहों की स्थिति के अनुसार भी व्यक्ति का स्वभाव बनता है और भविष्य बनता है।
हमारे जन्म के समय ग्रहों की जो स्थिति रहती है उसी के आधार पर जीवन में सुख-दुख और सफलता या असफलता प्राप्त होती है।

पुरुष और स्त्रियों की कुंडली में ग्रह अलग-अलग फल देने वाले होते हैं। केतु स्त्री की कुंडली में किस प्रकार से फल देता है। यहां जानिए...
- यदि किसी लड़की की कुंडली में प्रथम भाव में केतु स्थित हो तो स्त्री रोग ग्रस्त और पति को तकलीफ देने वाली होती है, यदि उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो स्त्री पति और पुत्र का सुख प्राप्त करती है।

- जिन लड़कियों की कुंडली में द्वितीय भाव में केतु हो तो स्त्री गरीबों और परिवार वालों से विरोध रखने वाली होती है और यदि इस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो वह धनवान और परिवार के सुख प्राप्त करने वाली होती है।

- कुंडली के तृतीय भाव जिसे सहज भाव कहां जाता है उसमें केतु हो तो स्त्री धनवान और शत्रुओं पर जीत प्राप्त करने वाली होती है। ऐसी स्त्रियां संतान सुख को प्राप्त करने वाली होती है लेकिन अपने छोटे भाई का इसे सुख प्राप्त नहीं होता है।

- कुंडली का चतुर्थ भाव जो कि सुख का भाव होता है इसमें केतु हो तो स्त्री सदैव माता के सुख से वंचित होती है और उसे अपनी किशोरावस्था के दौरान तकलीफों का सामना करती है। पिता की आर्थिक स्थिति और संपत्ति क्षीण हो जाती है।

- जिन महिलाओं की कुंडली में पंचम भाव जो कि पुत्र भाव होता है उसमें केतु हो तो स्त्री को पुत्र का सौभाग्य प्राप्त होता है किंतु छोटे भाई-बहनों को सुख नहीं दे पाती है। ऐसी स्त्रियां कभी-कभी झगड़ालु प्रवृत्ति की हो जाती हैं। ये किसी भी कार्य को कुशलता से करती हैं।

- कुंडली का षष्ठम भाव जो कि रिपु भाव होता है इसमें केतु होने पर स्त्री को दुश्मन और बीमारियों से भय नहीं होता है। इनके पास भूमि, गौ और भैसों आदि की संपत्ति होती है। कभी-कभी इनका मन छोटा हो जाता है और इसी वजह से गलत निर्णय कर लेती हैं।

- कुंडली का सप्तम भाव जो कि पति का भाव होता है उसमें केतु हो तो स्त्री यात्रा प्रिय होती है। सदैव शत्रु और रोग से भयभीत रहने वाली होती हैं। कभी-कभी पति को कष्ट भी देती हैं। इनका स्वभाव अधिक खर्च करने का होता है और इसी वजह से ये धन का नाश करने वाली होती है।

- कुंडली में अष्टम भाव जो कि मोक्ष का कारक है, किसी स्त्री की कुंडली में यहां केतु हो तो स्त्री को कोई गुप्त रोग होने की संभावनाएं रहती हैं, अत: इन्हें स्वास्थ्य के संबंध में विशेष सावधानी रखनी चाहिए। इन रोगों के कारण ये स्त्रियां पति को कष्ट देने वाली होती है।

- जिन महिलाओं की कुंडली के नवम भाव में केतु हो तो वे दान-पुण्य करने वाली होती हैं। नवम भाव जो कि धर्म का स्थान है इसमें केतु हो तो स्त्री गुणवान पुत्र वाली, रोग और शत्रु से रहित, छोटी जाति वालों से धन प्राप्त करने वाली, व्रत, तप और दान-पुण्य धर्म करने में सदैव तैयार रहती है।

- कुंडली के दशम भाव जो कि कर्म भाव है यहां केतु होने पर स्त्री कष्ट युक्त और पिता के सुख से रहित होती है। यदि किसी स्त्री की राशि कन्या है उसकी कुंडली के दशम भाव में केतु हो तो वह हमेशा धन-धान्य व सुख वैभव प्राप्त होती है।

- कुंडली का ग्यारहवां भाव जो कि लाभ स्थान है इसमें केतु होने पर स्त्री को सभी कार्यों में धन लाभ प्राप्त होता है। उसे सौभाग्य प्राप्त होता है। वह मधुरवाणी वाली सुंदर और धर्म को जानने वाली होती है। ऐसी कन्याएं सभी कार्यों में दक्ष होती है।

- कुंडली का बाहरवां भाव जो कि व्यय स्थान होता है इसमें केतु होने पर स्त्री आंख और पैरों में बीमारी होने की संभावनाएं रहती हैं। ये स्त्रियां बिना वजह खर्च करने वाली और पति को कभी-कभी कष्ट देने वाली हो जाती हैं। इन्हें अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त हो जाती है।


" मां कामाख्‍या "

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